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Aligarh Muslim University: जानिए क्या है अल्पसंख्यक दर्जा मामले का घटनाक्रम

Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम भारतीय विधान परिषद द्वारा पारित किया गया, जिसने औपचारिक रूप से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में बदल दिया।

Neel Mani Lal
Published on: 8 Nov 2024 2:12 PM IST
Aligarh Muslim University
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Aligarh Muslim University   (photo: social media )

Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का स्टेटस अल्पसंख्यक है कि नहीं, ये मसला सौ से ज्यादा वर्षों से तय नहीं हो पा रहा है। मामला अदालतों में ही उलझा हुआ है।जानते हैं इसकी टाइमलाइन

1875: मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना

- सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की। इसका उद्देश्य भारत में मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था, जिन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना जाता था। यह संस्था बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी AMU का आधार बनी।

1920: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने आकार लिया

- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम भारतीय विधान परिषद द्वारा पारित किया गया, जिसने औपचारिक रूप से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में बदल दिया।

1967: सर्वोच्च न्यायालय का फैसला - एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ

- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी AMU को अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, भले ही वह मुस्लिम मूल का हो। न्यायालय ने कहा कि एएमयू की स्थापना केंद्रीय विधानमंडल के एक अधिनियम (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920) द्वारा की गई थी, न कि केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था, न कि केवल मुस्लिम समुदाय द्वारा “स्थापित या प्रशासित” किया गया, इसलिए यह अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है।

1981: एएमयू अधिनियम में संशोधन

- सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले के जवाब में, केंद्र सरकार ने 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन किया, जिसमें घोषणा की गई कि एएमयू वास्तव में मुसलमानों की शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिए “भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित” था। इस संशोधन ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दे दिया।

2005: आरक्षण विवाद

- एएमयू ने पीजी चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 फीसदी आरक्षण लागू किया। लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2006 में आरक्षण नीति को खारिज कर दिया, फैसला सुनाया गया कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जा का दावा नहीं कर सकता क्योंकि यह 1967 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था। यह इस तर्क पर आधारित था कि एएमयू मुस्लिम समुदाय द्वारा “स्थापित या प्रशासित” नहीं था, इसलिए यह अनुच्छेद 30 के तहत मानदंडों को पूरा नहीं करता है।

2016: सरकार ने अपील वापस ली

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील वापस ले ली। सरकार का तर्क था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है। अतः 1967 के फैसले के आधार पर इसकी स्थिति बहाल की गई। ​​सरकार का कहना है कि 1920 में केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित होने पर एएमयू ने अपना धार्मिक दर्जा त्याग दिया था।

2019: सात न्यायाधीशों की पीठ

- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े कानूनी सवालों को हल करने के लिए इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को सौंप दिया।

2024: नवीनतम फैसला

- सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:3 बहुमत के फैसले में 1967 के अज़ीज़ बाशा वाले केस में शीर्ष न्यायालय के दिए फैसले को खारिज कर दिया। उस फैसले में तय किया गया था कि किसी संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का निर्धारण कैसे किया जाता है। अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को यह दर्जा मिलने का रास्ता साफ हो गया।



Ragini Sinha

Ragini Sinha

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