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Aligarh News: गणेश चतुर्थी के लिए तैयार हुईं इको फ्रेंडली गणेशजी की मूर्तियां, गेहूं, चावल और दाल मिलाकर बनीं; जानिए खासियत

Aligarh News: मिट्टी की इन मूर्तियों में दाल, चावल और गेहूं मिलाया गया है। दरअसल, इन दिनों प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां अधिकतर मार्केट में उपलब्ध रहती हैं।

Lakshman Singh Raghav
Published on: 18 Sept 2023 2:13 PM IST
Eco friendly lord Ganesh idols
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Eco friendly lord Ganesh idols  (photo: social media )

Aligarh News: अलीगढ़ में गणेश चतुर्थी के लिए खास इको फ्रेंडली गणेश जी की मूर्तियां तैयार हुई हैं। यहां खास तौर पर मूर्तियां मिट्टी से तैयार की गई हैं। मिट्टी की इन मूर्तियों में दाल, चावल और गेहूं मिलाया गया है। दरअसल, इन दिनों प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां अधिकतर मार्केट में उपलब्ध रहती हैं। ऐसे में कुछ कारीगरों ने पीओपी की मूर्तियों को छोड़कर मिट्टी की मूर्तियां बनाने के काम शुरू किया है। इससे पर्यावरण में प्रभाव नहीं पड़ेगा।

समाज सेवा के रूप में कार्य करने वाले सुरेंद्र कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि गणेश की मूर्ति कोई शोपीस और खिलौना नहीं है। पूरे मार्केट में पीओपी की मूर्तियां सजी हुई हैं। राजस्थानी लोग यहां पर आकर पीओपी की मूर्तियां बनाते हैं। हम पिछले 5 साल से लोगों में जन जागृति अभियान चलाए हुए हैं क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल होता है ये कभी गलती नहीं है। मिट्टी से तैयार की गई इन मूर्तियों में हम अनाज मिलवाते हैं। विसर्जन के दौरान ये मिट्टी गल जाती है। इनमें मिलाया दाल व अनाज जल चरों का भोजन बन जाता है। पुराने जमाने में जितनी भी मिट्टी की मूर्तियां रखी जाती थी। उन सब के साथ अनाज रखने की परंपरा होती थी। वह परंपरा इसलिए बनाई गई थी कि हमारे जितने भी जल स्रोत है। वह जीवित रहे। नदिया तलाब मूर्ति विसर्जन करने के काम में आया करती थी। हम पुरानी परंपरा को जीवित कर रहे हैं। लोगों को जागरुक कर रहे हैं।

जलचरों के लिए पांच तरह की मूर्तियां

मूर्ति बनाने वाली कारीगर लाडो ने जानकारी देते हुए बताया है कि हम लोग इको फ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं। यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं। कल गणेश चतुर्थी है। इन मूर्तियों में हमने पांच तरीके की दाल, गेहूं, चावल डाले हैं। इससे यह फायदा होता है कि मिट्टी गल जाती है। पीओपी नहीं गल पाती है। पीओपी से काफी नुकसान है। वह गलती नहीं है। गंगाजी में जलचर मर जाते हैं।

बचपन से मूर्ति का कारोबार करते आ रहे बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने जानकारी देते हुए बताया है कि हम गणेश जी की मूर्ति बचपन से बनाते हैं। इन मूर्तियों में हम दाल, चावल मिलाते हैं। यह मूर्तियां गंगा में जब विसर्जन होती है तो मिट्टी बह जाती है। दाल मछलियों के काम आ जाती है। जल में जो जानवर हैं वह चावल दाल खा जाते हैं।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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