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UP Nikay Chunav 2022: OBC आरक्षण रद्द, जानें क्या होगा इस फैसले का असर

UP Nikay Chunav 2022: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के एक आदेश ने नगर निकाय चुनाव की तैयारियों पर ब्रेक लगा दिया है। अदालत ने बिना ओबीसी आरक्षण को रद्द कर चुनाव करवाने का आदेश दिया है।

Krishna Chaudhary
Published on: 27 Dec 2022 4:56 PM IST
Allahabad High Court
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय (photo: social media ) 

UP Nikay Chunav 2022: उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के एक आदेश ने नगर निकाय चुनाव की तैयारियों पर ब्रेक लगा दिया है। अदालत ने बिना ओबीसी आरक्षण को रद्द कर चुनाव करवाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक ओबीसी आरक्षण नहीं होगा। होईकोर्ट के इस फैसले को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। योगी सरकार निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को साधने का पूरी प्लान तैयार कर चुकी थी लेकिन इस अदालती फैसले ने उसकी सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया है।

हाईकोर्ट ने भले सरकार को जल्द से जल्द निकाय चुनाव कराने के आदेश दिए हों लेकिन भाजपा सरकार बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने के मूड में नजर नहीं आ रही है। उच्च न्यायालय का फैसला आते ही डिप्टी सीएम और प्रदेश में बीजेपी के सबसे बड़े ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के संकेत देते हुए कहा कि सरकार ओबीसी के अधिकारों से किसी भी किस्म का समझौता नहीं करेगी।

ओबीसी आरक्षण के बाद ही होंगे चुनाव: सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर कहा, उत्तर प्रदेश सरकार नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में एक आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इसके उपरान्त ही नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन को सम्पन्न कराया जाएगा। यदि आवश्यक हुआ तो माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के क्रम में सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करके प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी करेगी।

बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ीं

बीजेपी नगर निकाय चुनाव के बहाने अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी मतदाताओं को साधने का पुरा प्लान तैयार कर बैठी है। साल 2024 के आम चुनाव से पहले गैर – यादव ओबीसी मतदाताओं को लामबंद करने के लिए पार्टी इसी एक मौके के तौर पर भुनाना चाह रही है। लखनऊ मेयर जैसे हाई प्रोफाइल पद को महिला ओबीसी के खाते में डालना इसी कवायद का हिस्सा है। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले ने योगी सरकार के सारे कैलकुलेशन को गड़बड़ा दिया है।

योगी सरकार को ओबीसी आरक्षण विरोधी सरकार साबित करने में जुटी

इसके अलावा विपक्ष भी योगी सरकार को ओबीसी आरक्षण विरोधी सरकार साबित करने में जुट गई है। सपा नेताओं का कहना है कि सरकार ने जानबूझकर ऐसे पेंच छोड़े दिए जिनके चलते ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव की बात सामने आई है। विपक्षी नेताओं ने सरकार पर ओबीसी आरक्षण के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया। वहीं, जानकार भी मानते हैं कि अगर बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव हुए तो बीजेपी का वोटबैंक प्रभावित हो सकता है। वैसे भी यूपी-बिहार की पार्टियां बीजेपी को आरक्षण विरोधी साबित करने में जुटी रहती हैं। ऐसे में बीजेपी बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का रिस्क नहीं ले सकती है।

बीजेपी को 2024 की चिंता

ओबीसी वर्ग चुनावों में एक बड़ा फैक्टर बनकर उभरे हैं। साल 2014 के बाद से बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस विशाल जातीय समूह को साधने में सफल रही है। जिसके कारण यूपी – बिहार जैसे बड़े राज्यों में पार्टी को एकतरफा जीत मिल रही है। इतना ही नहीं, गैर – यादव ओबीसी को साधने में सफल रहने के कारण लखनऊ में भी दूसरी बार पार्टी को सत्ता मिली है। 2024 में 2014 और 2019 जैसा प्रदर्शन दोहराने के लिए भगवा दल के लिए ये काफी जरूरी है कि ओबीसी मतदाता चट्टान की तरह उसके साथ खड़े रहें।

बीजेपी ने सवर्ण+ओबीसी+दलित वोट बैंक तैयार कर सपा के मुस्लिम + यादव समीकरण के सामने मजबूत दीवार खड़ी कर दी है। जिसे सपा अब तक नहीं तोड़ पाई है। ऐसे में अगर बीजेपी के वोटबैंक से गैर-यादव ओबीसी मतदाता समूह छिटकता है तो पार्टी को इसका खामियाजा अगले आम चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। लिहाजा पार्टी किसी भी सूरत में ओबीसी मतदाताओं को नाराज करने की स्थिति में नहीं है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी सबसे बड़े वोट बैंक के रूप में माने जाते हैं। प्रदेश की आबादी में यह वर्ग करीब 45 वर्ग की भागीदारी रखता है। इसलिए कोई भी सियासी दल इन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता।



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Deepak Kumar

Deepak Kumar

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