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तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं दूसरी शादी तक पति से ले सकती हैं गुजारा भत्ता, इलाहाबाद HC का बड़ा फैसला

UP News: सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं दूसरी शादी होने तक अपने पति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं।

Bishwajeet Kumar
Written By Bishwajeet Kumar
Published on: 19 April 2022 9:50 AM IST
Allahabad High Court decision Divorced Muslim women
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तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को लेकर हाई कोर्ट का फैसला (तस्वीर साभार : सोशल मीडिया) 

UP Latest News : मुस्लिम महिलाओं के हक को लेकर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट के खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार रखती है। हालांकि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में एक और बात को रेखांकित करते हुए बताया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को उनके पति द्वारा गुजारा भत्ता तब तक ही मिलेगा जब तक तलाकशुदा महिला दूसरी शादी नहीं कर लेती है। अर्थात दूसरी शादी करने के बाद तलाकशुदा मुस्लिम महिला को पति की ओर से कोई गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा।

कोर्ट ने शबाना बानो केस का दिया हवाला

रजिया नाम की महिला की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ खंडपीठ न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शबाना बानो मामले में फैसला सुनाते हुए पहले ही बता दिया गया है कि धारा 125 के तहत मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को एक इद्दत के बाद पति द्वारा गुजारा भत्ता मिलने का अधिकार है। हालांकि यह अधिकार मुस्लिम महिला के पास तब तक ही है जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है।

इस अवधि में होगा गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ खंडपीठ में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार प्रतापगढ़ के 1 सेशन कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें सेशन कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम (विमेन प्रोटक्शन ऑफ राइट ऑन डिवोर्स) एक्ट 1986 की धारा 3 और 4 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला को पति द्वारा गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है हालांकि ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होती है।

सेशन कोर्ट के इस फैसले को कल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द करते हुए शबाना बानो 2009 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले के बाद ही यह तय हो चुका है कि मुस्लिम महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इद्दत की अवधि के बाद पति द्वारा गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है और यह अधिकार महिला तक तब तक ही सीमित है जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है।

इद्दत की अवधि क्या है?

कोर्ट ने अपने आदेश में जिस दत्त शब्द का प्रयोग किया उसका तात्पर्य है कि वह विधि जिसमें महिला के पति की मौत अथवा जिस पुरुष से निकाह होने की उम्मीद है उससे दूर रहने से है। नियंता इद्दत की अवधि में कुल 90 दिन का समय होता है मगर अगर मामला किसी बुजुर्ग महिला से जुड़ा हुआ हो तो इसकी अवधि कुल 130 दिन, अर्थात 4 महीने 10 दिन होती है।



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