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गंगा नदी को प्रदूषित करने पर HC सख्त, कहा- बोर्ड वाराणसी के 129 उद्योगों को भेजे नोटिस
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (23 मार्च) को गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त रखने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वह वाराणसी के उन 129 उद्योगों को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे गंगा में गंदा पानी गिराने को लेकर स्पष्टीकरण लें।
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (23 मार्च) को गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त रखने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वह वाराणसी के उन 129 उद्योगों को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे गंगा में गंदा पानी गिराने को लेकर स्पष्टीकरण लें। कोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड और यूपी जल निगम से गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर विस्तृत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि जिन 26 जिलों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगे हैं वहां कितने नाले ऐसे हैं जिन्हें सीधे गंगा में गिरने से रोका गया है। कितने नालों को बंद किया जाना है।
कोर्ट ने कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी के बारे में भी जानकारी मांगी है। गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस दिलीप गुप्ता और जस्टिस यशवंत वर्मा की डिवीजन बेंच ने उक्त आदेश पारित किया। कोर्ट को बताया गया कि कुल 701 कंपनियां है जो गंगा को प्रदूषित कर रही हैं। कोर्ट ने एसटीपी के कार्यरत रहने के बावत जानकारी न देने पर नाराजगी भी प्रकट की और प्रदूषण बोर्ड को गंदगी रोकने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया। कोर्ट कोर्ट में इस केस की अगली सुनवाई 13 अप्रैल 2017 को होगी।
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प्राथमिकी के आधार पर सस्ते गल्ले की दुकान का निलंबन गलतः हाईकोर्ट
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (23 मार्च) को कहा है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3/7 के तहत प्राथमिकी दर्ज होने मात्र के आधार पर सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस निरस्त या निलंबित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने दुकान के निलंबन आदेश को रद्द करते हुए दुकान बहाली का आदेश दिया है। तदनुसार कार्यवाही का निर्देश दिया है।
यह आदेश जस्टिस एस.पी.केशरवानी ने बृजसेवक गुप्ता की याचिका पर दिया है। याची की सस्ते गल्ले की दुकान शाहजहांपुर के बहादुरगंज में थी। कालाबाजारी के आरोप में उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। इसी आधार पर दुकान का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया। अपील पर उपायुक्त बरेली ने लाइसेंस रद्द करने के आदेश को निरस्त कर दिया और नए सिरे से निर्णय लेने का आदेश दिया और कहा कि तब तक दुकान निलंबित रहेगी।
प्राथमिकी की विवेचना पूरी कर पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट दाखिल की। याची ने दुकान की बहाली की मांग की। सुनवाई न होने पर याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने निलंबन आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है और कहा है कि प्राथमिकी के आधार पर लाइसेंस निरस्त नहीं किया जा सकता।
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उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के सचिव की नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर निर्णय सुरक्षित
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (23 मार्च) को उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग, इलाहाबाद के सचिव संजय कुमार सिंह की नियुक्ति की वैधता के खिलाफ याचिका पर दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है। डॉ. धीरेंद्र सिंह की याचिका की सुनवाई जस्टिस अरूण टंडन और जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्र की डिवीज़न बेंच ने की।
याची का कहना है कि संजय कुमार सिंह सचिव पद की योग्यता नहीं रखते। फर्जी मार्कशीट देने का भी आरोप लगाया। कोर्ट के निर्देश पर हुई जांच में अनियमितता मानी गई। कानपुर यूनिवर्सिटी ने भी प्राथमिकी दर्ज कराकर जांच बैठाई।
याची से संबंधित मूल पत्रावली यूनिवर्सिटी, शिक्षा निदेशालय, राज्य सरकार यहां तक कि हाईकोर्ट से गायब है। जांच हुई तो यह नहीं पता लग सका कि रिकॉर्ड गायब होने का जिम्मेदार कौन है।
विपक्षी का कहना था कि उसे गलत मार्कशीट मिली थी। मूल मार्कशीट जमा कर दूसरी मार्कशीट ली। इसलिए दोबारा नियुक्ति आवेदन दिया। जाति प्रमाणपत्र फर्जी होना भी पाया गया। तमाम मुद्दों पर सफाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया।
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रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में नियमितीकरण में धांधली पर निर्णय सुरक्षित
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (23 मार्च) को प्रदेश के रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में दैनिक वेतनभोगी कर्मियों के नियमितीकरण में धांधली के मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। यह आदेश जस्टिस अरूण टंडन और जस्टिस सुनीता अग्रवाल की डिवीज़न बेंच ने उत्तर प्रदेश राज्य की सैकड़ों अपीलों पर सुनवाई करते हुए दिया है।
बता दें, कि सुप्रीम कोर्ट ने खगेश कुमार केस में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि 1991 से पहले से कार्यरत दैनिक कर्मियों की सेवा नियमित की जाए। आदेश के पालन के अनुक्रम में मनमानी हुई और सैकड़ों पात्र कर्मियों को नियमित नहीं किया गया और भारी संख्या में 1991 के बाद नियुक्त कर्मियों को नियमित कर लिया गया।
जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया जिसे अपीलों में चुनौती दी गई है।