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राजेन्द्र स्टील के डायरेक्टर के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई 9 को
इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कानपुर की राजेन्द्र स्टील कंपनी के डायरेक्टर के अमेरिका से प्रत्यर्पण कार्यवाही की केन्द्र सरकार से प्रगति रिपोर्ट मांगी है। सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी। केन्द्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को बताया कि चार आपराधिक मामलों में डायरेक्टर डी.के.बत्रा के प्रत्यर्पण की पत्रावली अमेरिकी सचिवालय को भेज दी गयी है। कंपनी के समापन के बाद कंपनी की करोड़ों की सम्पत्तियों को बेचकर विदेश भाग जाने के मामले की जांच कर रही सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज करायी है। सीबीआई कोर्ट लखनऊ ने आरोपी डी.के.बत्रा के प्रत्यर्पण के लिए आदेश जारी किये है। हाईकोर्ट के आदेश पर मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
सतीराम यादव व अन्य कर्मकारों की देयों के भुगतान के लिए दाखिल अर्जी की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने यह आदेश दिया है। भारत सरकार के सहायक सालीसीटर जनरल व सीबीआई के अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश ने कोर्ट को प्रत्यर्पण के संबंध में अब तक की गयी कार्यवाही की जानकारी दी। मुख्य आरोपी के प्रत्यर्पण न होने के कारण सम्पत्तियों के संबंध में कार्यवाही नहीं हो पा रही है और सीबीआई जांच पूरी नहीं कर पा रही है। कोर्ट ने कहा है कि मुख्य आरोपी के प्रत्यर्पण की कार्यवाही यथाशीघ्र पूरी की जाए। मामले की सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी।
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अनिवार्य शिक्षा कानून को पूरी तरह से लागू न करने पर कोर्ट नाराज
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा उ.प्र. से प्रदेश की प्राइमरी पाठशालाओं की दशा एवं अनिवार्य शिक्षा कानून को पूरी तरह से लागू करने की कृत कार्यवाही के ब्यौरे के साथ अनुपालन में हलफनामा मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई 26 सितम्बर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्यप्रकाश केशरवानी ने नागेश्वर प्रसाद पी.एम.वी. देवरिया की प्रबंध समिति की याचिका पर दिया है। प्रदेश के महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि अनिवार्य शिक्षा कानून नियमावली में जरूरी बदलाव की प्रक्रिया की जा रही है और राज्य सरकार वैधानिक रूप से अनिवार्य शिक्षा कानून को लागू करने के लिए बाध्य है।
सरकार कोर्ट द्वारा मांगी गयी सभी जानकारी हलफनामे के जरिए उपलब्ध करायेगी और अनिवार्य शिक्षा कानून पूरी तरह से प्रदेश में लागू किया जायेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार को इससे पहले निर्देश दिया था कि प्राइमरी स्कूलों के अध्यापकों व स्टाफ का कम्प्यूराइज्ड डाटा तैयार किया जाए ताकि स्टाफ व अध्यापक के सेवानिवृत्ति से पहले नियुक्ति की जा सके और शिक्षा में अवरोध न आने पाए। कोर्ट ने वेबसाइट पर डाटा अपलोड करने को भी कहा है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि खाली पदों को भरने की अनुमति अपने आप देने का तंत्र विकसित किया जा सकता है ताकि खाली पदों को भरने के लिए अनुमति लेने में अनावश्यक देरी न हो और सत्र शुरू होने से पहले अध्यापक नियुक्त हो सके। कोर्ट ने अनिवार्य शिक्षा कानून का पालन कर अगली सुनवाई की तिथि पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
दुराचार व एससी-एसटी का मुकदमा रद्द, लड़की ने मानी गलती, गुस्से में दर्ज करायी प्राथमिकी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रेम संबंध सफल न होने के गुस्से में दुराचार व एससी-एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज करायी गयी प्राथमिकी को लड़की के आरोप वापस लेने पर मुकदमें की कार्यवाही रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि जब पीड़िता ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने गुस्से में आकर प्राथमिकी दर्ज करायी है। उसने स्वयं ही प्राथमिकी निरस्त करने की मांग की है। ऐसे में मुकदमा चलाया जाना निरर्थक होगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह ने औरंगाबाद थाना क्षेत्र बुलन्दशहर के निवासी ब्रह्मदयाल की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची अधिवक्ता दिलीप कुमार पाण्डेय का कहना है कि शिकायत कर्ता लड़की का याची से एकतरफा प्रेम संबंध था। जब उसकी शादी तय हो गयी तो लड़की गुस्से में आ गयी और दुराचार व एससी-एसटी ऐक्ट के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करा दी। पुलिस ने चार्जसीट दाखिल की है। अपर सत्र न्यायालय में मुकदमा चल रहा है।
पीड़िता की तरफ से पुलिस को प्रार्थना पत्र दिया कि वह आरोपों को वापस ले रही है। आपसी विवाद को सुलझा लिया गया है और याची पर लगाये गये आरोपों पर बल नहीं देना चाहती। उसने याची से शादी का प्रस्ताव किया था। वह याची के साथ कभी नहीं रही। याची का कहना था कि एकतरफा प्रेम था। वे साथ कभी नहीं रहे। याची के घर वालों ने उसकी शादी तय कर दी। इसकी खबर मिलते ही लड़की ने गुस्से में आकर प्राथमिकी दर्ज करा दी थी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के स्थापित विधि सिद्धान्तों का हवाला देते हुए मुकदमें की कार्यवाही रद्द कर दी है। अब याची के खिलाफ दर्ज मुकदमा नहीं चलेगा।