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कोर्ट का आदेश, न्यायिक अधिकारियों को स्वैच्छिक परिवार नियोजन का लाभ साल 2008 से मिले
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शनिवार (06 मई) को राज्य सरकार को आदेश दिया है कि न्यायिक अधिकारियों को स्वैच्छिक परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत मिलने वाले लाभ साल 2008 से दिए जाएं।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शनिवार (06 मई) को राज्य सरकार को आदेश दिया है कि न्यायिक अधिकारियों को स्वैच्छिक परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत मिलने वाले लाभ साल 2008 से दिए जाएं। सरकार के सभी कर्मचारियों को यह लाभ कार्यक्रम के लागू होने के दिन 11 दिसंबर 2008 से मिल रहा है। न्यायिक अधिकारियों को भी इस लाभ के दायरे में लाया गया है, लेकिन उन्हें इसका लाभ 2 जुलाई 2013 से दिया जा रहा था।
जस्टिस एसएन शुक्ला और जस्टिस एसके सिंह (प्रथम) की खंडपीठ ने यह आदेश न्यायिक अधिकारी राजेंद्र सिंह की याचिका पर दिया। राजेंद्र सिंह इस समय लखनऊ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं।
याचिका में कहा गया था कि न्यायिक अधिकारियों को छोड़ कर राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों को स्वैच्छिक परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत साल 2008 से लाभ मिलता है। याचिका में इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए, न्यायिक अधिकारियों को भी अन्य सरकारी कर्मचारियों की ही तरह उक्त कार्यक्रम के तहत लाभ दिए जाने की मांग की गई। कोर्ट ने याचिका को मंजूर करते हुए राज्य सरकार को न्यायिक अधिकारियों को भी साल 2008 से उक्त लाभ दिए जाने के आदेश दिए।
वहीं इसी बेंच ने सभी पोस्ट ग्रेजुएट न्यायिक अधिकारियों को थ्री एडवांस इंक्रीमेंट देने के आदेश भी दिए हैं। न्यायिक अधिकारियों की ओर से ही दाखिल चार अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने पोस्ट ग्रेजुएट इन लॉ डिग्रीधारी सभी न्यायिक अधिकारियों को थ्री एडवांस इंक्रीमेंट देने के आदेश राज्य सरकार को दिए हैं।
कोर्ट ने यह आदेश संजय शंकर पांडेय और और तीन अन्य न्यायिक अधिकारियों की याचिका पर दिए। अभी तक थ्री एडवांस इंक्रीमेंट का लाभ सिर्फ उन्हीं अधिकारियों को दिया जा रहा है जिनके पास चयन के समय पोस्ट ग्रेजुएट इन लॉ की डिग्री है। सरकार ने सर्विस में आने के बाद डिग्री हासिल वाले न्यायिक अधिकारियों को यह लाभ देने से इंकार कर दिया था।
कोर्ट ने चारों याचिकाओं पर निर्णय देते हुए आदेश दिए कि जिन अधिकारियों ने सर्विस में आने के बाद उक्त डिग्री अर्जित की है, उन्हें भी थ्री एडवांस इंक्रीमेंट का लाभ दिया जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे अधिकारियों को डिग्री प्राप्ति के तिथि से यह लाभ दिया जाएगा।