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अमरनाथ यात्रा आतंकी हमला, सहारनपुर के ये यात्री रहे चश्मदीद गवाह

suman
Published on: 12 July 2017 8:26 AM GMT
अमरनाथ यात्रा आतंकी हमला, सहारनपुर के ये यात्री रहे चश्मदीद गवाह
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सहारनपुर: दो दिन पहले अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ,जिसकी सहारनपुर के कई यात्री चमश्मदीद गवाह बने। इन यात्रियों का कहना है कि अगर सहारनपुर की बस से नीचे उतरकर दो यात्री खरीदारी न करते तो आतंकी हमला गुजरात के यात्रियों की बस की जगह सहारनपुर के यात्रियों की बस पर होता। गुजरात के जिन यात्रियों की बस पर हमला हुआ, उस बस के ठीक पीछे सहारनपुर के यात्रियों की बस चल रही थी। जैसे ही गुजरात की बस पर हमला हुआ सहारनपुर के यात्रियों की बस के ड्राइवर ने एक पेड़ के नीचे अपनी बस को रोक दिया था।

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5 जुलाई को सहारनपुर के कस्बा बड़गांव से जनेश राणा और ऋषिपाल राणा के नेतृत्व में सहारनपुर से 46 यात्रियों की एक बस बाबा अमरनाथ यात्रा के दर्शन करने को रवाना हुई थी। ये सभी यात्री सकुलशल वापस लौट आए हैं। इन यात्रियों में शामिल जनेश राणा, अशोक पुंडीर, सहेंद्र सिंह, नाथी सिंह, मुकेश कुमार, ऋषिपाल सिंह, विजय कुमार, सुखपाल शर्मा, निक्की शर्मा, पंकज कुमार, हनी सिंह, सविता सिंह, जुही सिंह, राजेंद्र कुमार, सचिन, दुष्यंत आदि ने सकुशल वापस लौटने पर बाबा अमरनाथ आभार व्यक्त किया है।

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जनेश व ऋषिपाल राणा के मुताबिक उनकी बस के आगे चल रही बस पर जब गोलीबारी हो रही थी तो उनकी बस के ड्राइवर ने गोली चलने की आवाज सुनकर अपनी बस को एक पेड़ के नीचे रोक दिया। लेकिन पीछे चल रही मध्य प्रदेश के यात्रियों की बस के ड्राइवर ने बस नहीं रोकी और वह अपनी बस को लेकर उनकी बस से आगे निकल गया। उन्होंने बताया कि वह आतंकी हमले का नजारा देख रहे थे। इस नजारे के बाद सहारनपुर के यात्रियों ने कई घंटे दहशत में गुजारे। वह किसी तरह से सफर कर श्रीनगर तक पहुंचे। जनेश ने बताया कि यदि उनके दो साथी बालटाल में खरीदारी करने के लिए न जाते तो शायद सहारनपुर के यात्रियों की बस पर ही आतंकियों का हमला होता। बाबा बर्फानी हाथ सिर पर होने के कारण सहारनपुर के यात्री बाल बाल बच गए।

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जनेश, ऋषिपाल व अशोक ने बताया कि बालटाल से निकलने वाली बसें सेना की देखरेख में ही निकलती है। मगर कुछ यात्रियों की जल्दबाजी और कुछ प्राइवेट बस चालकों की मनमानी की वजह से कई बार बसें सेना की देखरेख में नहीं निकलती। 10 जुलाई को जिस बस पर हमला हुआ, वह शाम 6 बजे के बाद निकलनी थी, जबकि शाम छह बजे के बाद सेना किसी भी बस को नहीं निकलने देती है। ड्राइवर की मनमानी और जल्दबाजी में ही जिस बस पर हमला हुआ वह बालटाल से निकल सकी।

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