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Holi 2022: एक ऐसी होली, डलमऊ में 5 दिन बाद खेला जाता है रंग, बड़ी दिलचस्प है यहां की कहानी

Holi 2022 : होली के उमंग भरे पर्व में यहां फाग और फगुवारी टोलियों का इंतजार रहता है।

Narendra Singh
Report Narendra SinghPublished By Ragini Sinha
Published on: 19 March 2022 8:30 AM IST
Dalmau Holi celebration
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होली 2022 (Social media)

Amethi Holi 2022: होली ऐसा त्योहार है, जिसमें बच्चों व युवाएं ही नहीं बल्कि, बूढ़े लोगों की आंखों में भी चमक आ जाती है। जिले में फगुवारी टोलियों का अपना अलग अंदाज है। ढोल, मंजीरों की थाप और हाथों में अबीर-गुलाल उड़ाती यह टोलियां हर एक का ध्यान अपनी तरफ ध्यान आकर्षित

करती हैं। होली के उमंग भरे पर्व में यहां फाग और फगुवारी टोलियों का इंतजार रहता है। सभी चाहते हैं कि उनके दरवाजे पर फाग हो।

होली का अपना अलग आनन्द

आधुनिकता की तरफ बढ़ते समाज में होली की अपनी पुरातन परम्पराएं कायम हैं। इस मौके पर गुजिया संग भांग की ठंडई,अबीर-गुलाल की सतरंगी छटा हर तरफ बिखरती है। शहर में घंटाघर की कपड़ा फाड़ और गांवों की कीचड़ वाली होली का अपना अलग आनन्द है। जनपद के डलमऊ में कस्बे में होलिकोत्सव पर राजा डलदेव की युद्ध में शहादत पर शोक मानते हुए उसे पांच दिन बाद मनाने की प्रथा 400 साल बाद भी कायम है।

कपड़ा फाड़ होली खेलते हैं

कपड़ा फाड़ होली खेलने के लिए शहर व ग्रामीण इलाकों के युवाओं की मस्ती घंटाघर में देखने को मिलती है। दशकों से इस कपड़ा फाड़ होली के लिए भारी संख्या में लोग जुटते हैं। महिलाएं व युवतियां अपने घरों की छत से कपड़ा फाड़ होली का आनंत लेती हैं। बुजुर्ग युवाओं का उत्साहवर्धन करते हुए अपने पुराने दिनों की याद ताजा करते हैं।

डलमऊ में रहता है पांच दिन का शोक

जिले में चारों ओर लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ होली का पर्व मनाते हैं। मगर डलमऊ सहित क्षेत्र के 28 गांवों में आज भी 5 दिनों का शोक मनाया जाता है। 11321ई. पूर्व डलमऊ के राजा डलदेव नए संवत्सर के आगमन का जश्न मना रहे थे। उसी समय जौनपुर के शाहशर्की की सेना ने डलमऊ के किले पर हमला कर दिया। राजा ङलदेव ने आक्रमण की सूचना मिलते ही अपने सैनिकों को शत्रुसेना को मुंहतोड़ जवाब देने का आदेश दिया और स्वयं दो सौ सिपाहियों के साथ युद्ध मैदान में कूद पड़े।

युद्ध में शाहशर्की की सेना ने पखरौली गांव के निकट राजा डलदेव को चारों तरफ से घेरकर मार दिया। इस युद्ध में राजा डलदेव के 200 व शाहशर्की के 2 हजार सैनिक मारे गए थे। सदियां गुजर जाने के

बावजूद डलमऊ व आसपास के 28 गांवों में पांच दिनों का शोक मनाया जाता है। होली पर आज भी उस ऐतिहासिक घटना की याद ताजा हो जाती है। लोग आज भी उस घटना पर शोक मनाते हैं। होली के त्योहार से पांच दिन बाद यहां

के लोग त्योहार मनाते हैं।



Ragini Sinha

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