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अमेठी का यादगार चुनाव: जब गांधी परिवार में ही हो गई थी भिड़ंत, राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरी थीं मेनका
Amethi News: आज भी वह दिलचस्प किस्सा याद है जब इस लोकसभा सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ उनके छोटे भाई की पत्नी मेनका गांधी चुनावी अखाड़े में उतर गई थीं।
Amethi News: गांधी परिवार से जुड़ी होने के कारण अमेठी लोकसभा सीट हमेशा चर्चाओं में बनी रहती है। इस लोकसभा सीट को गांधी परिवार का पुराना गढ़ माना जाता रहा है मगर करीब 40 साल पहले इस सीट पर गांधी परिवार में ही भिड़ंत हो गई थी। पुराने लोगों को आज भी वह दिलचस्प किस्सा याद है जब इस लोकसभा सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ उनके छोटे भाई की पत्नी मेनका गांधी चुनावी अखाड़े में उतर गई थीं।
मेनका गांधी का मुकाबला करने के लिए राजीव गांधी को अपनी पत्नी सोनिया गांधी को चुनाव प्रचार के लिए उतारना पड़ा था। हालांकि चुनाव में राजीव गांधी मेनका के खिलाफ जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। वैसे लंबे समय बाद इस बार अमेठी से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। कांग्रेस ने इस बार गांधी परिवार के पुराने वफादार किशोरी लाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है।
संजय गांधी ने 1980 में लिया हार का बदला
दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने 1977 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट पर पहली बार चुनाव लड़ा था। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में मतदाताओं का मूड मिजाज पूरी तरह कांग्रेस के खिलाफ था। उस चुनाव में संजय गांधी को जनता पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र प्रताप सिंह से हार का सामना करना पड़ा था।
अमेठी में मिली हार के बावजूद संजय गांधी ने अमेठी से नाता नहीं तोड़ा और सक्रियता बनाए रखी। इसका नतीजा 1980 के लोकसभा चुनाव में दिखा। तीन साल बाद ही संजय गांधी ने रविंद्र प्रताप सिंह को हराकर अपनी हार का बदला ले लिया था। दुर्भाग्यवश उसी साल एक विमान हादसे में संजय गांधी का निधन हो गया था।
संजय के निधन के बाद मेनका लड़ना चाहती थीं चुनाव
23 जून,1980 को विमान हादसे में संजय गांधी का निधन होने के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी अमेठी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहती थीं मगर उस समय उनकी उम्र 25 वर्ष नहीं हुई थी जो भारत में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु होती है। इस दौरान मेनका गांधी चाहती थीं कि उनकी सास और देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संविधान में संशोधन करके लोकसभा चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु ही कम कर दें।
वैसे इंदिरा गांधी मेनका गांधी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार नहीं हुईं और उन्होंने अमेठी के चुनाव क्षेत्र में अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को उतार दिया। राजीव गांधी अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे थे और अपनी पहली सियासी जंग में वे बाजी जीतने में कामयाब रहे।
इंदिरा के कहने पर राजीव गांधी मैदान में उतरे
अमेठी से चुनाव लड़ने का मौका न मिलने पर मेनका गांधी को लगा कि उनके पति की राजनीतिक विरासत को हड़पा जा रहा है। मेनका गांधी का मिजाज सोनिया गांधी के बिल्कुल विपरीत था। वे शुरू से ही काफी मुखर और राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने वाली महिला थीं। संजय गांधी के निधन के बाद वे सियासी मैदान में उतरने को बेताब थीं मगर इंदिरा गांधी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ।
संजय गांधी के निधन के बाद इंदिरा गांधी अपनी राजनीतिक विरासत राजीव गांधी को सौंपना चाहती थीं। इंदिरा गांधी के कहने पर ही राजीव गांधी पायलट की नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में सक्रिय हुए थे और उन्होंने अमेठी से चुनाव लड़ा था।
इंदिरा गांधी ने मेनका को घर से निकाला
इसी बीच एक और घटना हो गई। दरअसल संजय गांधी के बेहद करीब माने जाने वाले अकबर अहमद डंपी ने 1982 में लखनऊ में एक जनसभा का आयोजन किया था। इस जनसभा के जरिए संजय गांधी के समर्थक शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे। इस जनसभा में मेनका गांधी को भी आमंत्रित किया गया था। इंदिरा गांधी को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने मेनका गांधी को लखनऊ जाने से मना कर दिया। इसके बाद वे लंदन के कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए चली गईं।
दूसरी ओर मेनका गांधी लखनऊ का कार्यक्रम छोड़ने के लिए तैयार नहीं थीं। इंदिरा गांधी के मना करने के बावजूद वे लखनऊ में संजय समर्थकों की ओर से आयोजित जनसभा में हिस्सा लेने के लिए पहुंचीं और अपने पति की याद में जोरदार भाषण भी दिया।
इंदिरा गांधी को यह बात काफी नागवार गुजरी और उन्होंने मेनका गांधी को घर छोड़ने का फरमान सुना दिया। इंदिरा गांधी के इस फरमान के बाद मेनका गांधी ने अपने बेटे वरुण को साथ लेकर उनका घर छोड़ दिया।
राजीव गांधी के खिलाफ मेनका का नामांकन
इसके बाद मेनका गांधी ने सियासी मैदान में उतरने की तैयारी शुरू कर दी। इसी बीच 31 अक्टूबर 1984 को ऐसी घटना हो गई जिससे पूरे देश में भूचाल पैदा हो गया। इंदिरा गांधी के ही दो अंगरक्षकों ने उन्हें दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर गोलियों से भून डाला। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के कई इलाकों में सिख विरोधी दंगे भी हुए जिसमें काफी संख्या में सिख मारे गए। इसके बाद देश में आम चुनाव हुए।
इस चुनाव के दौरान राजीव गांधी एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे। दूसरी ओर मेनका गांधी का मानना था कि अमेठी उनके पति की कर्मभूमि रही है। इसलिए उन्हें यहां से जरूर चुनाव लड़ना चाहिए। उन्हें भरोसा था कि वे इस लोकसभा क्षेत्र में राजीव गांधी को मजबूत चुनौती दे सकती हैं। इसलिए उन्होंने संजय विचार मंच बनाया और अमेठी लोकसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल कर दिया।
राजीव गांधी ने ली सोनिया की मदद
संजय विचार मंच का उन दिनों बहुत ज्यादा सियासी वर्चस्व नहीं था। संजय समर्थकों के दम पर मेनका गांधी चुनाव लड़ने के लिए अमेठी के रण क्षेत्र में उतरी थीं। मेनका गांधी ने उस समय कहा था कि हर कोई कांग्रेस और उसके तरीकों से तंग आ गया है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर चल रही थी मगर इसके बावजूद अमेठी को लेकर राजीव गांधी बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं थे। इसलिए राजीव गांधी ने अमेठी के चुनाव प्रचार में अपनी पत्नी सोनिया गांधी की मदद लेने का फैसला किया।
कांग्रेस नेता के रूप में राजीव गांधी पूरे देश में पार्टी प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार करने में जुटे हुए थे जबकि दूसरी ओर अमेठी में राजीव के प्रचार की कमान सोनिया गांधी ने संभाल रखी थी। सोनिया गांधी सिर पर पल्ला रखकर, माथे पर लाल बिंदी और कलाई में लाल चूड़ियां पहनकर प्रचार करने के लिए अमेठी पहुंची थीं। उन्होंने अमेठी की महिला मतदाताओं को साधने में बड़ी भूमिका निभाई। अमेठी के इस सियासी रण में मेनका गांधी का चुनाव प्रचार करने में जेएन मिश्रा और अकबर अहमद डंपी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी।
अमेठी के रणक्षेत्र में मेनका की हार
मेनका गांधी को कांग्रेस के पक्ष में बह रही हवा के कारण अमेठी में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। राजीव गांधी ने उन्हें करीब 3.15 लाख वोटों से हरा दिया था। 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने 400 से अधिक सीटें जीतकर दूसरे दलों को करारा झटका दिया था। अमेठी में मिली इस हार के बाद मेनका गांधी कभी अमेठी नहीं आईं और उन्होंने यहां से कोई चुनाव भी नहीं लड़ा।