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Loksabha Election 2024: अमरोहा लोकसभा सीट हर बार बदल देती है अपना सांसद, जानें यहां का समीकरण

Loksabha Election 2024 Amroha Seats Details: अमरोहा लोकसभा सीट पर भाजपा ने तीसरी बार कंवर सिंह तंवर पर भरोसा जताया है। जबकि इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने यहां के वर्तमान सांसद कुंवर दानिश अली को चुनावी रण में उतारा है।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 14 April 2024 7:11 PM IST (Updated on: 14 May 2024 7:05 PM IST)
Loksabha Election 2024: अमरोहा लोकसभा सीट हर बार बदल देती है अपना सांसद, जानें यहां का समीकरण
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Loksabha Election 2024: यूपी की अमरोहा लोकसभा सीट की जनता पिछले चार दशक से हर चुनाव में अपना नुमाइंदा बदल देती है। इस सीट पर किसी भी दल की मजबूत पकड़ नहीं मानी जाती है। यहां के लोगों को सियासतदानों को अपने इशारे पर नचाने का शौक है। यहां के सियासत के इस खास अंदाज का का मुकाम लोकसभा चुनाव 2024 में भी देखने को मिलेगा। भाजपा ने यहां से तीसरी बार कंवर सिंह तंवर पर भरोसा जताया है। जबकि इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने यहां के वर्तमान सांसद कुंवर दानिश अली को चुनावी रण में उतारा है।

वहीं बसपा ने इस बार डॉ. मुजाहिद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है। कुंवर दानिश अली ने बसपा के टिकट पर 2019 में जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के काफी करीब आने के कारण बसपा ने उनको पार्टी से निकाल दिया था। जिसके बाद कुंवर दानिश अली कांग्रेस शामिल हो गए। वहीं बसपा ने इस बार डॉ. मुजाहिद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार कुंवर दानिश अली ने भाजपा के कंवर सिंह तंवर को 63,248 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में कुंवर दानिश अली को 6,01,082 और कंवर सिंह तंवर को 5,37,834 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के सचिन चौधरी को महज 12,510 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा के कंवर सिंह तंवर ने सपा से तत्कालीन मंत्री कमाल अख्तर की पत्नी हुमेरा अख्तर को 1,58,214 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में कंवर सिंह तंवर को 5,28,880 और हुमेरा अख्तर को 3,70,666 वोट मिले थे। जबकि बसपा के फरहत हसन को 1,62,983 वोट मिले थे। बता दें कि इस चुनाव में किसान नेता राकेश टिकैत भी आरएलडी के टिकट पर मैदान में उतरे लेकिन वह चौथे स्थान पर रहे।


यहां जानें अमरोहा लोकसभा क्षेत्र के बारे में

  • अमरोहा लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 09 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
  • अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। जिसमें अमरोहा जिले के धनौरा, नौगावां सादात, हसनपुर व अमरोहा और हापुड़ जिले के गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा क्षेत्र है।
  • अमरोहा लोकसभा क्षेत्र के 5 सीटों में से 2 पर सपा और 3 पर भाजपा के विधायक हैं।
  • यहां कुल 16,46,435 मतदाता हैं। जिनमें से 7,69,727 पुरुष और 8,76,623 महिला मतदाता हैं।
  • अमरोहा लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 11,69,754 यानी 71.05 प्रतिशत मतदान हुआ था।

भाजपा उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर की क्षेत्र में ऐसी बनी थी पहचान


भाजपा उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर की पहचान समाजसेवी के रूप में होती है। उनकी गिनती अरबपतियों में की जाती है। उन्होंने 2012 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में अपनी पहचान बनानी शुरू की थी। शुरू में वह कांग्रेस में थे। अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में उन्होंने मुफ्त एंबुलेंस सेवा चला रखी थी। इन एंबुलेंस के माध्यम से घर बैठे ही जनता का इलाज भी किया जा रहा था। ऐसे में गांव-गांव तक कंवर सिंह तंवर तक पहुंच और पहचान बन गई थी। बाबा रामदेव के भी कंवर सिंह तंवर करीबी रहे हैं। कहा जाता है कि बाबा रामदेव ही उनको भाजपा में लेकर आए थे। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 में अमरोहा से टिकट दे दिया। बता दें कि 2014 में क्षेत्र की जनता कंवर सिंह तंवर को एंबुलेंस वाला नेता के तौर पर जानती थी। लेकिन चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र की जनता उन्हें एंबुलेंस वाला सांसद कहने लगी।

कांग्रेस उम्मीदवार कुंवर दानिश अली के दादा भी थे सांसद


कुंवर दानिश अली मूलतः हापुड़ जिले के गांव भंडा पट्टी के रहने वाले हैं। उनका जन्‍म 10 अप्रैल 1975 को हुआ था। पांच भाइयों में सबसे छोटे दानिश दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से बीएससी (आनर्स), एमए (पॉलिटिकल साइंस) की पढ़ाई की है। पढ़ाई के दौरान ही दानिश अली छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। दानिश अली ने राजनीति की शुरुआत जनता दल (सेक्यूलर) से हुई थी। कुंवर दानिश अली की गिनती पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के करीबियों में होती है। जेडीएस के लिए कई साल तक काम करने के बाद दानिश अली 2019 में मायावती की अगुवाई वाली बसपा में शामिल हो गए थे। फिर अमरोहा लोकसभा सीट से सांसद बनें। बता दें कि इनके दादा कुंवर महमूद अली 1957 में डासना विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। जबकि 1977 में हापुड़ लोकसभा सीट से सांसद भी चुने गए थे। इनके पिता जफर अली सांसद-विधायक तो नहीं बने लेकिन राजनीति में जरूर सक्रिय रहे।

अमरोहा लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

अमरोहा पहले मुरादाबाद जिले का एक हिस्सा हुआ करता था। लेकिन 15 अप्रैल 1997 को अमरोहा को नया जिला बना दिया गया। अमरोहा में गंगा और कृष्णा जैसी अहम नदियां बहती हैं। यहां के चर्चित पर्यटन स्थलों में वसुदेव मंदिर, तुलसी पार्क, कंखाथर, गजरौला, भूरे शाह का दरगाह और तिगरी माने जाते हैं। अमरोहा में रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली से संबद्ध महाविद्यालयों के अलावा मुस्लिम पीर शेख सद्दू की दरगाह भी है, जहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं। कहा जाता है कि जब जनाब हजरत शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह इस जगह पर घूमने आए थे, तब यहां के लोगों ने उन्हें आम और मछली पेश की थी। इसके बाद ही से इस जगह की पहचान अमरोहा के नाम से पड़ गई। अमरोहा के आम स्वाद को खास बनाते हैं। वैसे तो अमरोहा जिले की पहचान शायर जॉन एलिया और बॉलीवुड के डायरेक्टर-लेखक कमाल अमरोही से रही है। इसके अलावा अमरोहा में बने ढोलक की थाप पर दुनिया थिरकती है। ऐसे ही यहां की राजनीति भी दिलचस्प है। आजादी के बाद हुए अब तक के 17 चुनावों में इस सीट पर हर पार्टी अपना झंडा गाड़ चुकी है। यहां से निर्दल भी सांसद बन चुके हैं। इस सीट पर पहली बार कांग्रेस के हिफ़्ज़ुर रहमान सियोहरवी ने 1952, 1957 और 1962 जीत की हैट्रिक लगाई थी। लेकिन हिफ़्ज़ुर रहमान सियोहरवी के निधन के बाद 1963 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कभी दिग्गज चेहरे रहे आचार्य जेबी कृपलानी ने कांग्रेस से बगावत करते हुए यहां से पर्चा भर दिया।

1963 का उपचुनाव रहा दिलचस्प


देश को मिली आजादी के बाद से आचार्य जेबी कृपलानी कांग्रेस से अलग हो गए थे और नेहरू के प्रखर विरोधियों में से एक थे। कांग्रेस ने उनके सामने केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद हाफिज मोहम्मद इब्राहिम को उतार दिया। इस समय आचार्य जेबी कृपलानी की पत्नी सुचेता कृपलानी यूपी की कांग्रेस सरकार का हिस्सा थीं। कृपलानी की उम्मीदवारी को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने प्रतिष्ठा से जोड़ लिया। मुस्लिम बहुल्य सीट पर एक दर्जन से अधिक केंद्रीय मंत्री, जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन सीएम बख्शी गुलाम मोहम्मद से लेकर मुस्लिम धर्मगुरु तक आचार्य जेबी कृपलानी के खिलाफ प्रचार में उतर गए। पीएम नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने भी प्रचार की कमान संभाली। उन्होंने आचार्य जेबी कृपलानी पर तंज किया कि कौन कहता है कि कृपलानी नेता हैं? वे तो कांग्रेस दफ्तर में सिर्फ क्लर्क थे। इंग्लैंड से लौटकर उनको देखा तो आश्चर्य हुआ कि यह आदमी कांग्रेस का महासचिव है?' आचार्य जेबी कृपलानी ने चुनावी सभाओं में इसका जवाब यूं दिया कि कौन कहता है मैं राष्ट्रीय नेता हूं। मैं तो अपने घर का भी नेता नहीं हूं। कृपलानी का इशारा अपनी पत्नी के कांग्रेस में होने पर था। इस उपचुनाव में कांग्रेस के जोर लगाने के बावजूद भी अमरोहा ने 'एरोगेंस' को नकार दिया और आचार्य जेबी कृपलानी 50,000 वोट से जीत गए।

1980 के बाद यहां से लगातार किसी को भी नहीं मिला मौका

अमरोहा लोकसभा सीट पर 1967 और 1971 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के इशाक अली यहां से सांसद बनें। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को समर्थन दिया था। फिर अगले दो चुनाव में इस सीट पर जनता पार्टी का कब्जा हो गया। लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति फैक्टर ने कांग्रेस को वापसी कराई। लेकिन 1989 में वीपी सिंह का परचम बुलंद था तो यहां से जनता दल जीत गई। देश में रामलहर के दौरान 1991 के चुनाव में भाजपा ने यहां से विपक्षी गेंदबाजों के छक्के छुड़ाने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के ओपनर रहे चेतन चौहान को उम्मीदवार बनाया। लहर और ग्लैमर की थाप पर जनता रीझ गई और चेतन जीतकर दिल्ली पहुंच गए। बता दें कि 1980 के बाद से ही अमरोहा को बदलाव का स्वाद लग गया। जिस चेहरे को एक बार मौका दिया, उसके लिए अगली बार 'कूलिंग पीरियड' तय कर दिया। इसलिए, 1998 में भाजपा से चेतन चौहान को फिर मौका देने से पहले 1996 में यहां सपा के सिर पर जीत का सेहरा बांधा। लेकिन 1999 में भाजपा के चेतन चौहान को राशिद अल्वी ने हराकर बसपा का खाता खोल दिया। फिर 2004 में यहां की जनता ने सभी दलों को किनारे करके निर्दलीय उम्मीदवार हरीश नागपाल को संसद भेज दिया। इस सीट पर निर्दलीयों का असर इससे समझा जा सकता है कि दो चुनाव जीतने के साथ दो बार निर्दल चेहरे यहां दूसरे पायदान तक भी पहुंचे। 2009 में भाजपा के साथ का फायदा रालोद को मिला और उसका भी अमरोहा में खाता खुल गया।

अमरोहा लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण

अमरोहा लोकसभा सीट पर अगर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां नौगावां सादात विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल्य है। धनौरा विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। यानी इस लोकसभा क्षेत्र में दलित मतदाताओं का भी प्रभावी असर है। जाट, गुर्जर, सैनी, खडगवंशी जैसी पिछड़ी जातियों का भी प्रभाव है। इसलिए, कोर वोटरों की एका और विभाजन भी नतीजे तय करते हैं। जब भी वोट सपा-बसपा में बंटे, भाजपा को उसका फायदा हुआ है। हालांकि, 40 साल से यहां कांग्रेस और 28 साल से सपा को जीत नसीब नहीं हुई है। बसपा को दो बार जीत मिली है। भाजपा की लहर के मुकाबले अब सपा-कांग्रेस के सामने कोर वोटरों के साथ नई पूंजी जोड़ने की चुनौती है।

अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से हिफ़्ज़ुर रहमान सियोहरवी 1952, 1957 और 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • निर्दल आचार्य जेबी कृपलानी 1963 में लोकसभा उपचुनाव में सांसद चुने गए।
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से इशाक अली 1967 और 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से चंद्रपाल सिंह 1977 और 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से राम पाल सिंह 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता दल से हर गोविंद सिंह 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से चेतन चौहान 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से प्रताप सिंह सैनी 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से चेतन चौहान 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से राशिद अल्वी 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • निर्दल हरीश नागपाल 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • आरएलडी से देवेन्द्र नागपाल 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से कंवर सिंह तंवर 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से कुंवर दानिश अली 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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