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UP Election 2022: चुनाव आते ही 'नेताजी' लगे पाला बदलने, जानें क्या कहता है दल-बदल कानून?
UP Election 2022: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में तो सियासी तापमान ऐसा बढ़ा कि प्रदेश की सत्ता की बागडोर संभाले भारतीय जनता पार्टी (BJP) से नेताओं का पलायन ही शुरू हो गया। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य क्या निकले एक के बाद एक अब तक 15 से अधिक 'माननीय' बीजेपी छोड़ चुके हैं।
Anti Defection Law : हाल ही में देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हुई। निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव का शेड्यूल जारी होने के बाद सियासी सरगर्मियां तेज हो गईं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में तो सियासी तापमान ऐसा बढ़ा कि प्रदेश की सत्ता की बागडोर संभाले भारतीय जनता पार्टी (BJP) से नेताओं का पलायन ही शुरू हो गया। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य क्या निकले एक के बाद एक अब तक 15 से अधिक 'माननीय' बीजेपी छोड़ चुके हैं। इस राजनीतिक घटनाक्रम ने बीजेपी की मुश्किलें फिलहाल बढ़ा दी हैं।
हालांकि, चुनाव नजदीक आने के बाद इस तरह पार्टी छोड़ना या दल बदलना कोई नई बात नहीं है। लेकिन, इस वक्त जिन विधायकों और मंत्रियों ने पार्टी छोड़ी है, वो सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार पर दलितों और पिछड़ों को नजरअंदाज करने का आरोप लगा रहे हैं। साथ ही इनमें अधिकतर उसी वर्ग से आते भी हैं।
स्वामी प्रसाद ने शुरू की सियासी हलचल
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के लिए तारीखों की घोषणा के बाद सब सामान्य चल रहा था। कि, अचानक तत्कालीन बीजेपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान बहुजन समाज पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। और, अब बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में चले गए।
क्या पार्टी कोई कदम नहीं उठा सकती?
अब ऐसे में सहज लोगों के मन में ये सवाल उठना लाजमी है, कि पांच साल तक सरकार में बने रहने के बाद अचानक चुनाव से ठीक पहले पाला बदलने वाले विधायकों और मंत्रियों पर क्या पार्टी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है? तो चलिए इसी का जवाब ढूंढते हैं। जिन विधायकों और मंत्रियों ने पार्टी छोड़ी है, उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी संगठन स्तर पर क्या कोई कदम नहीं उठा सकती क्या?क्योंकि अब वो उनकी पार्टी का हिस्सा ही नहीं रहे।
...तो इस वजह से नहीं हो सकता अयोग्यता की कार्रवाई
विशेषज्ञों की मानें तो इसका जवाब न है। मतलब पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं है। इस बारे में एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के वकील विराग गुप्ता बताते हैं, 'चूंकि राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं, इन स्थितियों में विधायक और मंत्रियों के दल बदलने पर उन्हें 'अयोग्य' होने का खतरा नहीं होता है। इसीलिए चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर पार्टी बदलने का चलन शुरू हो जाता है।' विराग कहते हैं, कि 'इन नेताओं पर दल बदल कानून (Anti Defection Law) भी लागू नहीं हो सकता। चुनाव बाद नई विधानसभा के गठन होने के बाद इन नेताओं के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई नहीं की जा सकती। खासकर, जो 'माननीय' विधायक या मंत्री नहीं हैं, उन्हें पार्टी बदलने पर तो ऐसे भी कोई खतरा नहीं रहता है।' विराग गुप्ता ने बताया कि जो संसद के सदस्य हैं, उनका ढाई साल का कार्यकाल अभी बाकी है. ऐसे में अगर कोई सांसद पार्टी बदलता है तो उनके अयोग्य होने का hai
जानें दल-बदल का संक्षिप्त इतिहास ?
-एक रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 1957 से 1967 के बीच करीब 542 बार सांसदों-विधायकों ने अपनी पार्टी बदली।
-इसी तरह साल 1967 के आम चुनाव से पहले 430 बार सांसदों और विधायकों ने अपनी पार्टी बदल दी।
-इसी तरह 1967 के बाद दल बदलने को लेकर एक रिकॉर्ड भी बना, जिसमें दल-बदलू नेताओं की वजह से 16 महीने के भीतर 16 राज्यों की सरकारें चली गई।
-साल 1967 में ही दिल्ली से सटे हरियाणा के एक विधायक गयालाल ने 15 दिन के भीतर ही तीन बार अपनी पार्टी बदल दी।
-हरियाणा विधायक गयालाल की इस हरकत के बाद से ही राजनीति में 'आया राम, गया राम' की कहावत शुरू हुई थी।
-दल-बदल पर रोक लगाने के लिए वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार कानून लायी।
-इस कानून में कहा गया, कि अगर कोई विधायक या सांसद पार्टी व्हीप का पालन नहीं करता है तो भी उसकी सदस्यता जा सकती है।
सख्ती इस कदर, बावजूद निकाला तोड़
आपको बता दें, कि दल-बदल जब सिरदर्द बन गया, तो इसे रोकने के लिए कानून भी बनाया गया। मगर, नेताओं ने इसका तोड़ भी निकाल लिया। साल 1985 में आए कानून में यह प्रावधान भी था, कि अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायक (MLA) या सांसद (MP) पार्टी बदलते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी। वर्ष 2003 में इस कानून में सख्ती हुई। जिसके तहत अयोग्य सदस्यों को मंत्री बनाने पर रोक लगा दी गई।
इन उदाहरणों से समझिए
इसके बाद,राजनीतिक पार्टियों ने दो-तिहाई विधायकों को तोड़कर राज्य सरकारों को गिराने का जैसे खेल ही शुरू कर दिया। ऐसे ही एक मामले में विधायकों के इस्तीफे के बाद बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) ने सरकार बनाने का दावा पेश किया तथा राज्य में सरकार बनाई। इसी तरह, 2020 में मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के 22 विधायकों ने बगावती तेवर दिखाकर बीजेपी का दामन थामा था। इसके बाद अल्पमत में आई कमलनाथ सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में, भारतीय जनता पार्टी के शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने।