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अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: खनन माफिया ने लगाया दो अरब से अधिक का चूना
तेज प्रताप सिंह
गोंडा। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की जांच के बाद नवाबगंज क्षेत्र में बालू खनन का मामला फिर गर्मा गया है। भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह की शिकायत पर मामले की सुनवाई कर रहे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने जिलाधिकारी जांच दल के सभी पांच सदस्यों को छह सितंबर को तलब किया है। माना जा रहा है कि जिले के तत्कालीन उचाधिकारियों समेत तहसील और सम्बन्धित थानों के पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई हो सकती है। समझा जाता है कि अवैध खनन से दो अरब 12 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है।
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सांसद कीर्तिवर्धन सिंह ने अवैध बालू खनन के बारे में मार्च 2016 में एनजीटी में शिकायत की थी। तत्कालीन जिला प्रशासन ने तो कुछ किया नहीं। तब 16 मई 2017 को एनजीटी ने स्वयं टीम भेजने का निर्णय लिया। एनजीटी के निर्देश पर बीते 10 जून को तत्कालीन एडीएम त्रिलोकी सिंह, उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राम गोपाल, सीएसआईआर आईएमएमटी भुवनेश्वर के वैज्ञानिक डा. मनीष कुमार, यूपी के भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के जियोलाजिस्ट डॉ. गौतम कुमार दिनकर व आरओएमओ एण्ड सीसी लखनऊ की वैज्ञानिक डॉ. सत्या की जांच में पाया गया कि वर्ष 2011 से 2017 के बीच सिर्फ कल्याणपुर गांव के 18 गाटों की जमीन पर बालू खनन हुआ। इस गाटा संख्या में कुल 43 काश्तकार हैं जिन्हें भी अवैध खनन के लिए जिम्मेदार माना गया है। रिपोर्ट के अनुसार, यहां रेलवे ट्रैक से मात्र 29 मीटर की दूरी तक खनन हुआ।
खनन माफिया ने ग्राम समाज और वन भूमि के साथ कृषि विभाग के फार्म की ढाई एकड़ जमीन को तालाब में तब्दील कर दिया। रिपोर्ट के अनुसार, यहां रायल्टी जमा न होने के कारण 92,99,83, 667 रुपये का नुकसान हुआ है। यहां से बालू निकालने के कारण एक अरब 19 करोड़ से ज्यादा की क्षति पहुंची है। टीम ने रेल ट्रैक की सुरक्षा के लिए खनन वाले क्षेत्र में मिट्टी भराई को अत्यंत जरूरी माना है।
जांच समिति ने खनन से हुई पर्यावरण, जैव पारिस्थितिकी और जैवविविधता समेत विभिन्न प्रकार की अन्य क्षति की जांच अन्य विशेषज्ञों द्वारा कराने के अनुशंसा की है।
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सांसद ने की थी याचिका
सांसद कीर्तिवर्धन सिंह ने 18 मार्च 2016 को याचिका संख्या 124/2016 के माध्यम से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में न्याय मित्र रचित मित्तल के माध्यम से दायर याचिका में जिले के नवाबगंज क्षेत्र के चकराल गांव में मनकापुर-अयोध्या रेल लाइन के समीप हो रहे अवैध बालू खनन से पर्यावरण व रेल लाइन पर मंडरा रहे खतरों का जिक्र किया गया था। याचिका में कहा गया था कि इस बारे में प्रशासन को भी अवगत कराया गया था लेकिन सपा सरकार में कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
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जांच रिपोर्ट ने खोली अफसरों की पोल
रेलवे ट्रैक से करीब 29 मीटर तक खनन होता रहा और राज्य सरकार और रेलवे के अफसर आंख मूंदे रहे। पहले रेलवे के अफसर कहते रहे कि ट्रैक से 50 मीटर के भीतर कोई खनन नहीं हो रहा है। हालांकि उस वक्त रेल अधिकारियों ने डीएम को पत्र जरूर लिखा था। मामले की जांच में कई और खुलासे हुए, जिसमें नवाबगंज स्थित एक महाविद्यालय की जमीन पर भी खनन मिला है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि खनन स्थल से महाविद्यालय की दूरी करीब 15 किमी है। खनन के खेल की तस्वीर एनजीटी को सौंपी गई 117 पेज की रिपोर्ट के साथ वीडियो में कैद है।
कृषि प्रक्षेत्र की जमीन पर खनन के बारे में कृषि विभाग के अधिकारी चुप हैं। रिपोर्ट में वर्ष 2011 से 2017 तक खनन रोकने के बारे में की गई कार्रवाई को भी शामिल किया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस मामले में सुनवाई के दौरान नोटिस जारी कर पूछा था कि गोंडा में हुए अवैध खनन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल अधिकारियों के वेतन और पेंशन से इस नुकसान की भरपाई क्यों न की जाए? एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य पर्यावरण मूल्यांकन समिति तथा रेलवे मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया था।
उस दौरान तब गोंडा की तरबगंज तहसील के तहत कल्याणपुर, चकरसूल, हरबंसपुर, चौबेपुर, दुर्गागंज, इस्माईलपुर सराय, बस्ती गोंडा सीमा के समीप घघउवा नाले के पास तथा कर्नलगंज तहसील के कटरा वीरपुर, सेल्हरी में भी अवैध खनन चल रहा था।
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दस लोगों के खिलाफ मुकदमा
तरबगंज के एसडीएम सजीवन मौर्य की अगुवाई में, सीओ तरबगंज व खनन इंस्पेक्टर ने 3 नवंबर 2016 को कल्याणपुर गांव का निरीक्षण किया था। एसडीएम के मुताबिक तीन गाटाओं में 2800 वर्गमीटर में अवैध खनन किया गया था। एसडीएम की तहरीर पर राम कुमार, रामफेर, हाफिज अली, नसीमुन्ननिशा, कांत कुमार, शांत कुमार, विजय कुमार, लाडली बेगम, निरंजेश व श्याम प्रेम के खिलाफ नवाबगंज थाने में चोरी व साजिश से तहत अवैध खनन करने का मुकदमा दर्ज किया गया। आरोपी माननीयों के करीबी थे लिहाजा कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
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तहसीलदार, थानाध्यक्ष पर कार्रवाई
इस मामले में नवाबगंज के तत्कालीन थानाध्यक्ष विजयेन्द्र कुमार और तरबगंज के तहसीलदार दिनेश चन्द्र को प्रतिकूल प्रविष्टि दे दी। साथ ही डीजीपी को पत्र भेज इस बात की संस्तुति की कि इन्हें किसी थाने का चार्ज न दिया जाए। चालू वित्तीय वर्ष में तीन लोगों को कुल 34.73 एकड़ में बालू खनन का पट्टा स्वीकृत किया गया है। इसमें अम्बेडकर नगर के अकबरपुर निवासी बसपा के पूर्व सांसद राकेश पाण्डेय के पुत्र आशीष पाण्डेय को पांच, गोरखपुर जिले के बसारतपुर निवासी बीरेन्द्र बहादुर सिंह की फर्म आरआरडी कंस्ट्रक्शन को एक तथा गोंडा के चकरसूल गांव के मेघनाथ को छह-छह माह के लिए दो पट्टे मिले। सिक्योरिटी के रूप में दो करोड़ चार लाख और रायल्टी के मद में एक करोड़ 30 लाख रुपये जमा हुए हैं।
सरकारी कृषि फार्म की ढाई एकड़ जमीन बन गयी तालाब
खनन माफिया ने कल्यानपुर गांव स्थित कृषि विभाग के राजकीय फार्म को भी नहीं छोड़ा। फार्म की ढाई एकड़ उपजाऊ जमीन में इतना खनन किया गया कि पांच मीटर से ज्यादा गहरा तालाब बन गया। सरकारी जमीन ऊसर हो गयी। गांव के पास 20 हेक्टेयर का सरकारी फार्म है। फार्म के इंचार्ज शराफत का कहना है कि करीब ढाई एकड़ से अधिक जमीन में बालू खनन हुआ है।
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चकरसूल और हरिबंशपुर से की खनन की शुरुआत
बताया जाता है कि 20 साल पहले बालू ठेकेदार हाफिज अली के पिता मो. इश्तियाक उर्फ लल्लन ने अपना कारोबार शुरू किया था। जहां खनन का पट्टा मिला था वहां खुदाई न करके इस गांव में कारोबार किया जा रहïा था। बड़ी-बड़ी मशीनों ने खनन किया जाता रहा। जनता ने प्रशासन और नेताओं से तमाम शिकायतें कीं लेकिन खनन बढ़ता ही गया। मामला हाईकोर्ट पहुंचा लेकिन वहां भी अधिकारियों ने सब कुछ सही बता दिया। जब तत्कालीन डीएम रोशन जैकब ने कार्रवाई शुरू की तो उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
जिलाधिकारी बोले बंद है अवैध खनन
जिलाधिकारी जे.बी. सिंह कहते हैं कि जिले में कहीं भी अब अवैध बालू खनन नहीं हो रहा है। पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में हुए अवैध खनन के मामले में हाल ही में तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर कुर्की की कार्रवाई की गई है। खनन, राजस्व और पुलिस विभाग को अवैध खनन रोकने के लिए सख्त आदेा दिया गया है। इसमें लापरवाही हुई तो किसी अफसर, कर्मचारी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने बताया कि एनजीटी द्वारा गठित जांच टीम के सभी सदस्यों को आगामी छह सितम्बर को बुलाया गया है।
बसपा और सपा सरकार में सत्ताधारी माननीयों के खास रहे हाफिज अली के पास लखनऊ, नोएडा, फैजाबाद और गोंडा में कई मकान हैं। थोड़े ही समय में वह अरबों का मालिक बनकर गोंडा, बस्ती, फैजाबाद व आस पड़ोस के जिलों में बालू का एक मात्र कारोबारी बन गया। खनन स्थान के पास एक महाविद्यालय भी चलाया जा रहा है। रिश्तेदारों के नाम ट्रकें खरीद कर सप्लाई करा कर सैकड़ों लोगों का कुनबा विकसित कर लिया है।
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स्थानीय पुलिस प्रशासन की कमाई का एक बड़ा हिस्सा बालू खनन से आता है। इस खनन माफिया के परिवार को जिला प्रशासन ने हथियार के लगभग 8 लाइसेंस दिये हैं। इसमें हाफिज अली के नाम एसबीबीएल बंदूक, रायफल और पिस्टल का लाइसेंस है। विधानसभा चुनाव की घोषणा, सपा सरकार का दबाव घटने और एनजीटी के कड़े रुख पर जिला प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए आरोपी हाफिज व मोहम्मद सफीक उर्फ जवान की चकरसूल, चौबेपुर, कल्याणपुर व हरिवंशपुर की लगभग दस करोड़ की चल अचल सम्पत्ति की नीलामी कर दी।
लेकिन पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पायी। इसके बाद हाफिज ने उच्च न्यायालय की शरण ली। कोर्ट ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। ‘कॉफी विथ करन’ की स्टाइल में ‘कॉफी विथ कलेक्टर’ चलाने वाले डीएम आशुतोष निरंजन काफी समय तक खनन मामले से अनभिज्ञ बने रहे। एनजीटी ने तीन बार सम्मन के बावजृद कोर्ट में हाजिर न होने पर डीएम को कड़ी फटकार लगाई और अंतत: उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी कर अदालत की सामने पेश करने का निर्देश दिया था।
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जहां रेलवे के वकील ओम प्रकाश कहा कहना था कि पिछले साल नवंबर में खनन के बारे में जिला प्रशासन को सूचित किया गया था मगर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि डीएम आशुतोष निरंजन यही कहते रहे कि किसी प्रकार का खनन नहीं हो रहा। एनजीटी की तीन सदस्यीय पीठ ने 21 फरवरी 2017को मामले की सुनवाई के दौरान वहां मौजूद डीएम आशुतोष निरंजन की उस रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति जतायी, जिसमें कहा गया था कि अवैध खनन पूरी तरह बंद है। न्यायमित्र रचित मित्तल ने पीठ को बताया था कि वर्तमान समय में भी अवैध खनन के साक्ष्य हैं।