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बिना अर्हता बना दिया हाई कोर्ट में सरकारी वकील, एक को बिना कारण बताये हटाया

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ खंडपीठ में सरकारी वकीलों की नियुक्तियों को लेकर बार बार मच रहे बवाल के बीच फिर एक बार फिर सामने आया है कि बिना अर्हता पूरी कि

Anoop Ojha
Published on: 7 Dec 2017 3:10 PM GMT
बिना अर्हता बना दिया हाई कोर्ट में सरकारी वकील, एक को बिना कारण बताये हटाया
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बिना अर्हता बना दिया हाई कोर्ट में सरकारी वकील, एक को बिना कारण बताये हटाया

लखनऊ:इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ खंडपीठ में सरकारी वकीलों की नियुक्तियों को लेकर बार बार मच रहे बवाल के बीच फिर एक बार फिर सामने आया है कि बिना अर्हता पूरी किये ही सरकारी वकील बना दिया गया है। जिसके बावत कोर्ट के स्पष्टीकरण मांगने पर ऐसे दो सरकारी वकीलों को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। साथ ही एक अन्य सरकारी वकील को भी बिना कारण बताये हटा दिया गया है। ये नियुक्तियां गत 23 अक्टूबर को महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में गठित चार सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी की संस्तुति पर की गयी थीं। हटाये गये सरकारी वकीलों में प्रभुल्ल यादव,विशाल अग्रवाल एवं अमर चौधरी शामिल है।

हटाये गये तीनेां सरकारी वकील स्थायी अधिवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनात थे। इनमें प्रभुल्ल यादव बसपा व सपा शासन काल में भी सरकारी वकील थे। 7 जुलाई 2017 केा योगी सरकार द्वारा जारी 201 सरकारी वकीलों की सूची में यादव का नाम नहीं था पंरतु कोर्ट के आदेश पर रिव्यू के बाद जारी की गयी नयी सूची में यादव को फिर से स्थान दे दिया गया था। शासन के उप सचिव सन्त लाल ने आदेश जारी करते हुए कहा कि यादव की स्थायी अधिवक्ता के रूप में आवद्धता तत्काल प्रभाव से समाप्त की जाती है। हांलाकि उन्होने यादव को हटाये जाने का कोई कारण अपने आदेश में इंगित नहीं किया।

वहीं दूसरी ओर उप सचिव ने विशाल अग्रवाल एवं अमर चौधरी को हटाते हुए कहा कि वे स्थायी अधिवक्ता के पद पर नियुक्ति की अर्हता ही पूरी नहीं करते थे। फिर भी उन्हे नियुक्त कर दिया गया था लिहाजा उनकी आवद्धता तत्काल प्रभाव से समाप्त की जाती है।

दरअसल हाई कोर्ट मेें सरकारी वकीलों की नियुक्ति केा चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका चल रही है। इसमें पहले योगी सरकार द्वारा 7 जुलाई 2017 को जारी सूची को चुनौती दी गयी थी । जिस पर कोर्ट के आदेश के बाद 23 अक्टूबर को पुनरीक्षण सूची जारी की गयी जिसे भी संशोधन अर्जी के जरिये चुनौती दी गयी है।

याची की ओर से आरेाप लगाया गया था कि 23 अक्टूबर केा 234 सरकारी वकीलों की जो सूची जारी की गयी है उसमेें भी कई विसंगतियां है। यह भी कहा गया कि सूची जारी करने में सुप्रीम केार्ट के दिशानिर्देशों को पालन नहीं किया गया है। याची ने स्थायी अधिवक्ता के पद पर नवनियुक्त विशाल अग्रवाल व अमर चैधरी के बावत आरेाप लगाया था कि उनकी नियुक्ति स्थायी अधिवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पद पर कर दी गयी जबकि दोंनो की वकालत के दस साल भी पूरे नहीं हुए थे जो कि उक्त पद के लिए अनिवार्य अर्हता है।

कहा गया था कि 23 अक्टूबर 2017 को 234 सरकारी वकीलेां की नियुक्तियां महाधिवक्ता की अध्यक्षता में बनी चार सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी के अनुमोदन पर की गयी थी । आरेाप लगाया कि अनुमोदन करने के लिए किसी प्रकार की पारदर्शी गाइडलाइन नहीं बनायी थी और न ही निष्पक्ष तरीके से नियुक्तियां की गयी है लिहाजा 23 अक्टूबर की सूची रद कर सरकार नयी सूची जारी करे। इस याचिका पर 12 दिसम्बर को सुनवायी हेानी है। इस बीच सरकार ने फजीहत से बचने के लिए अर्हता न रखने वाले दोनों सराकरी वकीलों केा हटा दिया है ।

बतातें चलें कि नियुक्तिों के बावत यह भी आरेाप लग रहा है कि नियुक्तियों में जमकर पक्षपात व भाई भतीजावाद चला और यहां तक कि भाजपा व संघ की विचारधारा वाले तमाम सक्षम वकीलों को दुर्भावनावश सूची में जगह नहीं दी गयी।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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