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लोक सेवा अधिकरण में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष की उम्र सीमा को घटाने पर कोर्ट की मंजूरी
कोर्ट के आदेश के चलते चेयरमैन के पद पर 31 जनवरी 2017 केा नियुक्त किये गये हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना का कार्यकाल 2022 तक रहेगा।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्यों की उम्र सीमा घटाने सम्बंधी संशोधन अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखा है, हालांकि न्यायालय ने वर्तमान अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्यों पर इसे लागू होने सम्बंधी प्रावधान को विधि सम्मत न पाते हुए, निरस्त कर दिया है। कोर्ट के आदेश के चलते चेयरमैन के पद पर 31 जनवरी 2017 केा नियुक्त किये गये हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना का कार्यकाल 2022 तक रहेगा।
वर्तमान अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्यों पर लागू नहीं होगा संशोधित अधिनियम
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने प्राधिकरण के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुधीर कुमार सक्सेना समेत चार अन्य की ओर से अलग अलग दाखिल याचिकाओं पर एक साथ फैसला सुनाते हुए पारित किया है।
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कोर्ट ने अपने फैसले में उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिकरण संशोधन अधिनियम संख्या 4 की धारा 3(8) को बरकरार रखने का आदेश दिया है। उक्त संशोधित प्रावधान के मुताबिक अधिकरण के अध्यक्ष की उम्र सीमा 70 वर्ष से घटाकर 65 वर्ष की गई है जबकि उपाध्यक्ष व सदस्यों की उम्र सीमा 65 से घटाकर 62 वर्ष कर दी गई है। वहीं धारा 3(8सी) के उक्त संशोधित प्रावधान को भूतलक्षी प्रभाव देने हुए 14 अगस्त 2017 से ही लागू कर दिया गया था जिसके प्रभाव के चलते वर्तमान अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल तत्काल प्रभाव से समाप्त हेा रहा था । इनमें कई सदस्येां का कार्यकाल काफी पहले समाप्त हुआ मान लिया जाता ।
रिटायर्ड जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना 2022 तक करते रहेेंगे चेयरमैन के पद पर कार्य
याचीपक्षों की ओर से वरिष्ठ वकीलों एल पी मिश्रा , जे एन माथुर , ओ पी श्रीवास्तव , गौरव मेहरेात्रा ने बहस करते हुए कहा कि अधिनियम में किया गया संशोधन मनमाना और असंवैधानिक है। इसके भूतलक्षी प्रभाव के कारण याचिकाकर्ता के साथ अन्याय हो रहा है। यदि 14 अगस्त 2017 को किये गये संशोधन केा उसी दिन से लागू मान लिया जाये तेा सेवा अधिकरण में चेयरमैन व कोई सदस्य नही बचेगा और अधिकरण वस्तुतः काम करना बंद कर देगा जबकि कानून की यह मंशा कतई नही हो सकती है।
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संशोधन में ऐसा कुछ नहीं है कि वह असंवैधानिक करार दिया जाये
वहीं सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील मनीष गेायल ने तर्क दिया गया कि संशोधन में ऐसा कुछ नहीं है कि वह असंवैधानिक करार दिया जाये। उन्हेानें कहा कि सरकार ने संशोधन केा इसलिए किया है कि उन पदेां पर अच्छा टेलेंट लाया जा सके।
न्यायालय ने आयु में संशेाधन केा तो संवैधानिक माना किन्तु उसे पारित होने की तिथि से लागू करने वाले संशोधन केा उचित नहीं माना और इसे खारिज करते हुए कहा कि धारा 3(8सी) को विधि सम्मत नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि चेयरमैन व सदस्यों की नियुक्ति में चीफ जस्टिस की राय ली जाती है और सरकार ऐसा कोई तथ्य नहीं पेश कर सकी जिससे कहा जा सके कि वर्तमान नियुक्तिां करते हुए टेलेंट के साथ समझौता हुआ था। न्यायालय ने आगे कहा कि अधिकरण में बहुत से मुकदमें विचाराधीन हैं और संशोधन को तत्काल प्रभावी माना जाये तो अधिकरण में कोई नहीं बचेगा जेा कि कानून व न्याय की मंशा नहीं हो सकती है।
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पूर्व लोकायुक्त एनके महरोत्रा के खिलाफ लम्बित परिवाद हाई कोर्ट ने किया खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पूर्व लोकायुक्त एन के महरोत्रा के विरुद्ध मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट लखनऊ के समक्ष विचाराधीन परिवाद को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने परिवाद को विधि सम्मत न पाते हुए खारिज किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने पूर्व लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा की याचिका पर पारित किया। सीजेएम के समक्ष आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर की ओर से परिवाद दाखिल कर कहा गया था कि एनके महरोत्रा ने विधि विरुद्ध तरीके से उनके पति के खिलाफ जांच की थी और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर जानबूझ कर फर्जी जांच रिपोर्ट तैयार की थी, जो एक आपराधिक कृत्य है।