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कुंभ का शुभ लाभ, प्रयागराज पहुंचने पर दिखता है बदलाव...

प्रयागराज कुंभ मेले की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। इस आध्यात्मिक महापर्व से करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार तो होता ही है, उससे जुड़े अर्थतंत्र से लाखों लोगों के भौतिक जीवन में भी उजास आता है। कुंभ मेला प्रयागराज और आसपास के अनेक जिलों के विकास की संजीवनी बनकर आता है।

raghvendra
Published on: 4 Jan 2019 5:53 PM IST
कुंभ का शुभ लाभ, प्रयागराज पहुंचने पर दिखता है बदलाव...
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रतिभान त्रिपाठी

लखनऊ: प्रयागराज कुंभ मेले की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। इस आध्यात्मिक महापर्व से करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार तो होता ही है, उससे जुड़े अर्थतंत्र से लाखों लोगों के भौतिक जीवन में भी उजास आता है। कुंभ मेला प्रयागराज और आसपास के अनेक जिलों के विकास की संजीवनी बनकर आता है। विकास कार्यों से न केवल शहर और कस्बों में बदलाव की बयार चलती है, लोगों की माली हालत में भी सुधार आता है।

अगर इस साल के कुंभ मेले की बात करें तो पिछले एक साल से अधिक से चल रहे निर्माण कार्यों के जरिए सरकार विकास कार्यों पर 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर रही है। इससे प्रयागराज समेत आसपास के अनेक जिलों का इन्फ्रास्ट्रचर बढ़ा है। इस बहाने विकास को गति मिली है।

बड़ा बजट, चौतरफा विकास

मेले के लिए 2800 करोड़ रुपये और प्रयागराज शहर के विकास में सरकार ने तकरीबन डेढ़ हजार करोड़ रुपये खर्च किये हैं। जाहिर है यह धनराशि करीब एक हजार ठेकेदारों, उनसे जुड़े करीब पांच हजार छोटे ठेकेदारों के जरिए विभिन्न निर्माण कार्यों में खर्च की गई है। शहर में 10 ओवर ब्रिज और कई अंडर पास बनाये गये हैं ताकि कुंभ में आने वालों को परेशानी न हो। यह काम साल भर से चल रहे थे, जब अब पूरे हुए हैं।

लाखों मजदूरों को रोजगार

कुंभ के बहाने लाखों मजदूरों को काम मिलता है। आंकड़े बताते हैं कि कुंभ मेला क्षेत्र के निर्माण कार्यों के लिए 50 से 60 हजार लोगों को रोजी-रोटी मिली है। यह काम अब भी जारी हैं। मेले में चकर्ड प्लेट वाली 141 किलोमीटर सडक़ों का जाल बिछाया गया है और इससे जुड़ी 106 किलोमीटर की सर्विस लेन बनायी गई हैं। यह निर्माण बता रहा है कि इस काम में 10 हजार से अधिक मजदूरों को काम करने के अवसर मिले। उन्हें आर्थिक फायदा पहुंचा। ऐसे ही 22 पांटून पुल, बिजली के सबस्टेशन, बिजली के तार बिछाने, पेयजल व्यवस्था, घाट निर्माण, स्वच्छता और शौचालय के काम कराये जा रहे हैं।

स्वच्छता और शौचालयों के काम में ही 22 हजार से अधिक लोगों को काम मिला है। इस काम के लिए सरकार 234 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। शहर की सडक़ें, चौराहे, पार्कों आदि का काम कराया गया है। इन कामों के लिए न केवल प्रयागराज वरन आसपास के जिलों चित्रकूट, बांदा, कौशाम्बी, फतेहपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर, भदोही, रीवा, सतना और छत्तीसगढ़ तक के मजदूरों को काम मिला हुआ है। तभी तो रीवा से आकर पिछले साल भर से प्रयागराज में सपरिवार डेरा डाले रामलोटन कहते हैं कि भइया, हमारे पूरे परिवार को साल भर से लगातार काम मिल रहा है। हम एक दिन भी खाली नहीं बैठे। रोजी-रोटी अच्छी चली है।

हर तबके को होता है फायदा

कुंभ में हर तबका लाभ की स्थिति में होता है। करोड़ों श्रद्धालुओं को संगम स्नान, प्रवचन, संत दर्शन और ज्ञान के प्रत्यक्ष लाभ के साथ साथ उनमें परमार्थ की भावना बलवती होती है और मोक्ष प्राप्ति की कामना पूरी होती है। उन्हें यहां तक पहुंचाने में ट्रांसपोर्ट के काम से जुड़े लाखों लोग फायदे में होते हैं। सरकार खजाने में किराये और टैक्स के जरिए पैसा हाता है। संगम तट पर 5 हजार से अधिक फूल बेचने वाले, दस हजार के करीब नाविकों-मल्लाहों की आजीविका के लिए महीने डेढ़ महीने में साल भर का सारा जुगाड़ हो जाता है। दो से पांच हजार तक दुकानदार और फेरी लगाने वाले अपना सामान बेचकर पैसे कमाते हैं।

पर्यटकों को राह दिखाने वाले ढाई तीन हजार गाइड भी इस बार रोजगार पा चुके हैं। यह इंतजाम पर्यटन विभाग ने पहली बार किया है। संगम के घाटों पर तख्त लगाकर श्रद्धालुओं को पूजा-पाठ, गोदान संकल्प कराने वाले दो से पांच हजार घाटिया दान-दक्षिणा का लाभ पाते हैं। तीर्थ पुरोहित देश के विभिन्न भागों से संगम स्नान को आने वाले अपने यजमानों को अपने यहां शिविरों में रुकाकर फायदे में होते हैं। साधु-संत अपने चेलों से यज्ञ और भंडारे कराते हैं। दान लेते हैं और दान देते हैं। इस तरह कई तरह के कामकाजियों को फायदा मिलता है। मसलन हलवाई और भोजन बनाकर धन कमाते हैं तो पंडित यज्ञ कराकर अच्छी खासी दक्षिणा जुटाते हैं।

दंडी संन्यासी जगह जगह भोजन और वस्त्र के बाद दक्षिणा और सम्मान का लाभ पाते हैं। टेंट व्यवसायी, बिजली के कारोबारी, कुशा-कास के शिविर, वेदी और यज्ञशालाओं का निर्माण करने वाले ग्रामीण कारोबारी, बड़े बड़े शिविर सजाने वाले कारीगर, बैंड-बाजे वाले, रामलीला-रासलीला के कलाकार, देश के बड़े बड़े गायकों-रंगकर्मियों और अन्य कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसर के साथ ही अच्छा खासा पारिश्रमिक मिलता है। लाउडस्पीकर लगाने वाली कंपनियों, के साथ ही आईटी कंपनियां और दूसरे इलेक्ट्रानिक कारोबारी, हाई टेक सुरक्षा से जुड़े कारोबारी, रिक्शे, तांगे वालों से लेकर रिसर्च और ज्ञान बांटने वालों तक सबके लिए कुंभ लाभकारी ही होता है।

मेले में अखाड़ों का डेरा

आध्यात्मिक पर्व कुंभ में साधु-संत और कल्पवासी तो इसकी शोभा रहते ही हैं लेकिन अखाड़े सर्वाधिक आकर्षण और जिज्ञासा का विषय होते हैं। अखाड़ों की मेला क्षेत्र में पेशवाई और उनका उनके शाही स्नान की शोभायात्राए्रं श्रद्धालुओं ही नहीं, देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभाती हैं। हाथी-घोड़ों पर सवार नागा संन्यासी जब अपने अद्भुत शौर्य कौशल का प्रदर्शन प्रदर्शन करते हैं तब पता चलता है कि यह महज साधु नहीं, एक कुशल योद्धा भी हैं जो धर्म की रक्षा का संकल्प लिये रहते हैं और धर्म पर आघात करने वालों का मुकाबला करने में सक्षम हैं। आदि शंकराचार्य ने इन अखाड़ों का गठन किया भी इसी उद्देश्य से था। कुंभ मेले में निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, निर्वाणी, महानिर्वाणी अखाड़ा आदि की मेले में पेशवाई हो चुकी है।

पेशवाई के दौरान रथों पर सवार आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, श्री महंत, महंत आदि को प्रणाम करने को सडक़ों के दोनो ओर मौजूद हजारों श्रद्धालुओं का कौतूहल अपने अपने में देखने लायक रहा। महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई में विदेशी महिला संतों की सवारी देखने को बड़ी संख्या में लोग उमड़े। इन अखाड़ों ने मेला क्षेत्र स्थित अपने शिविरों में अपने अपने ध्वज फहरा दिये हैं। अखाड़ों के इष्टदेवों की प्रतिमाओं की पूजा शुरू हो चुकी है। बांध स्थित बड़े हनुमान जी मंदिर के छोटे महंत आनंद गिरि कहते हैं कि इस बार अखाड़ों के लिए प्रशासन ने बेहतर व्यवस्था की है। अखाड़ों की पेशवाई बिना किसी बाधा के बहुत शानदार तरीके से निकली हैं।

अगर आप साल भर से प्रयागराज नहीं गए हैं और अब पहुंचिये तो रास्ता पूछना पड़ेगा, क्योंकि जो सडक़ें, गलियां और चौराहे छोटे और संकरे थे, अब चौड़े और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बनकर तैयार हैं। इसलिए यकायक यह तय करना मुश्किल हो जाएगा कि हम किस जगह खड़े हैं। चौराहे सुंदर बनवाकर उन्हें हरा-भरा कर दिया गया है। पेड़-पौधों से भरे गमले और फूलदान सजा दिये गये हैं।

बाउंड्रीवालो और पेड़ों तक में कुंभ की आध्यात्मिक यात्रा के कांसेप्ट पर सुंदर चित्र उकेरे गये हैं। रेलवे के अंडरपास तीन-तीन सडक़ों वाले हो गए हैं। सडक़ों और पुलों की रेलिंग को ऐसे रंगों से सजाया गया है, जैसे वह खुद ही कुंभ कहानी सुनाना चाहते हों। प्रयागराज के निवासी वरिष्ठ पत्रकार-ज्योतिर्विद डॉ राम नरेश त्रिपाठी कहते हैं कि वह बहुत लंबे समय से कुंभ की तैयारियां देखते रहे हैं, ऐसा विकास और बदलाव पहले कभी नहीं किया गया, जैसा इस बार देखने को मिल रहा है। इससे देश-दुनिया में प्रयागराज का नाम रोशन होगा, इसमें संदेह नहीं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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