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UP: महकमा-ए-सेहत में हो सुधार, क्या रिटायरमेंट की उम्र में वृद्धि है पक्का इलाज?

aman
By aman
Published on: 2 Jun 2017 12:45 PM GMT
UP: महकमा-ए-सेहत में हो सुधार, क्या रिटायरमेंट की उम्र में वृद्धि है पक्का इलाज?
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UP: महकमा-ए-सेहत में हो सुधार, क्या रिटायरमेंट की उम्र में वृद्धि है पक्का इलाज?

अनुराग शुक्ला Anurag Shukla

लखनऊ: यूपी में डॉक्टरों की कमी से निपटने के लिए सरकार ने अब उनकी रिटायरमेंट उम्र 62 साल कर दी है। इससे रिक्तियों से निपटने के लिए थोड़ा समय मिल जाएगा। साथ ही, इस साल 1,000 डॉक्टरों का रिटायरमेंट न होने से सामने खड़े संकट से निपटना आसान हो जाएगा।

लेकिन यूपी सरकार सेहत के महकमे की बीमारी को दूर करने के लिए ‘सिम्पोमैटिक’ इलाज कर रही है यानी बीमारी को दूर करने की जगह उसके लक्षणों को खत्म किया जा रहा है।

यूपी सरकार को नहीं मिल रहे डॉक्टर

दरअसल, यूपी के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के 18,382 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 7,348 पद रिक्त पड़े हैं। रिक्तियों के बैकलॉग से निपटने के लिए अब रिटायरमेंट की उम्र 60 से 62 वर्ष की गई है। सरकार का तर्क है कि उसे डॉक्टर मिल ही नहीं रहे हैं। प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के मुताबिक, 'लोक सेवा आयोग को यूपी में बड़े पैमाने पर पद खाली होने के बारे में सूचना दे दी गई है पर आयोग अभी तक इन पदों पर भर्ती नहीं कर सका है। इसके अलावा जो डॉक्टर भर्ती हो भी जाते हैं उसमें से ज्यादातर ठीक से ड्यूटी नहीं करते। कुछ दिन नौकरी करने के बाद ये मेडिकल अफसर नौकरी ही छोड़ देते हैं।' यूपी सरकार ने अपने बयान में साफ स्वीकार किया है कि 'फलस्वरूप डॉक्टरों के पदों को भर पाना एवं जन सामान्य को सतत गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं सुलभ कराना संभव नहीं हो पा रहा है।’

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रिटायरमेंट और गायब डॉक्टरों ने बढ़ाई मुश्किल

हर साल लगभग 300-400 डॉक्टर रिटायर हो रहे हैं। जबकि, करीब 270 डॉक्टर बर्खास्तगी के लिए चिन्हित किए गए हैं। क्योंकि ये कई साल से ड्यूटी पर ही नहीं आ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने साफ कर दिया था, कि स्वास्थ्य विभाग में ऐसे डॉक्टरों की जरूरत नहीं है। बड़ी संख्या में हर महीने डॉक्टरों के रिटायर होने और नए डॉक्टरों के काम न संभालने की वजह से बड़ी तादाद में चिकित्साधिकारी के पद रिक्त बने हुए हैं।

पुनर्नियुक्ति का भी डोज़

यूपी सरकार को पहले से स्थापित अस्पतालों में नई चिकित्सा यूनिट खोलने, 100 बेड वाले नए संयुक्त चिकित्सालय, ट्रामा सेंटर, महिला चिकित्सालय/मैटरनिटी विंग खोलने एवं नये स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की वजह से अब पहले से ज्यादा डाक्टरों की जरूरत है। रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने के अलावा सरकार स्पेशलिस्ट डाक्टरों को पुनर्नियोजित कर इससे निपटने की व्यवस्था कर रही है। 5 मई 2017 को जारी डायरेक्टर जनरल मेडिकल हेल्थ के आदेश के बाद 100 स्पेशलिस्ट डाक्टरों ने ज्वाइन भी कर लिया है।

क्या है असली समस्या?

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि यूपी में इस समय 5 लाख डॉक्टरों की जरूरत है। असल में, समस्या सिर्फ यूपी की नहीं बल्कि पूरे देश की है। भारत में हर साल करीब 50,000 एमबीबीएस डॉक्टर देश के 370 मेडिकल कॉलेज से निकलते हैं। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा डॉक्टर पैदा करने वाला देश है। अमेरिका में हर साल 18,000 डॉक्टर निकलते हैं। लेकिन ज्यादातर डॉक्टर सरकारी सेवा में नहीं जाना चाहते। ड्यूटी से नदारद डॉक्टरों की स्थिति ओडिशा में भी लगभग यही है। वहां 613 डॉक्टरों के खिलाफ नोटिस भी जारी किया गया था।

सरकारी प्रयास भी नाकाफी

डॉक्टर की कमी से निपटने के लिये यूपी सरकार ने कुछ समय पहले व्यवस्था की थी, कि अगर डॉक्टर गांवों में जाएंगे तो पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन के वक्त तीस नंबर अलग से मिलेंगे। इसके अलावा कुछ जगहों पर गांवों और मुश्किल इलाकों में काम करने वाले डॉक्टरों को वेतन के अलावा 80,000 रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान भी कुछ सरकारों ने किया था, पर कोई उत्साहजनक नतीजा नहीं निकला।

...ये भी मुसीबत

पब्लिक सर्विस कमिशन जब दूसरे पदों की बहाली निकालता है, तो वहां सीट से ज्यादा आवेदक होते हैं। सरकारी अस्पतालों के लिए बहाली निकलती है तो सीट से कम आवेदन आते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों में काम करना झमेला है। मौका नहीं है, ग्रोथ नहीं और माहौल भी ठीक नहीं होता।

सिस्टम भी लचर

देश में पोस्ट ग्रेजुएट की सीटें बहुत कम हैं। 50,000 डॉक्टर अगर एमबीबीएस करते हैं तो पीजी की सिर्फ 25,577 सीटें हैं। जब तक पोस्ट ग्रेजुएट सीट नहीं होगी, पढ़ाने वाले टीचर कहां से आयेंगे। जब टीचर ही नहीं होंगे, तो डॉक्टर कहां से पैदा होंगे। आलम यह है, कि महाराष्ट्र में रेडियोथेरेपी में पीजी करने के लिए सिर्फ दो सीट है। जबकि कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 2016 तक पूरे महाराष्ट्र में रेडियो थेरेपी के एक ही प्रोफेसर थे जिन्होने अपने रिटायरमेंट से आठ साल ज्यादा नौकरी की। उन्हें 60 साल की उम्र में 2007 में रिटायर हो जाना चाहिए था लेकिन वे नागपुर मेडिकल कॉलेज में मई 2015 तक पढ़ाते रहे।

क्या रिटायरमेंट है पक्का इलाज?

डॉक्टर निजी अस्पतालों में चले जाते हैं कभी पैसे के नाम पर, कभी पद के नाम पर, तो कभी कथित आजादी के नाम पर। बड़ा सवाल है कि क्या सरकार रिटायरमेंट जैसे लक्षणों को दूर करने वाले इलाज की जगह, क्या सूबे के 'महकमा-ए-सेहत' में सुधार के लिए ठोस सर्जरी कर रही है। क्या सरकारों ने अस्पतालों में डॉक्टरों के काम करने की सुविधा बेहतर की है। क्या सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रिसर्च का फंड बढ़ाया है। क्या टीचिंग का माहौल बेहतर हुआ है। क्या पोस्ट ग्रेजुएट सीट बढ़ाने की कोई अनुशंसा या जरूरत पेश की गई है। क्या लोक सेवा आयोग पर रिक्त पद भरने का दबाव बनाया गया। उसकी जरूरत को रेखांकित किया गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि कमी के कारण की जगह कमी का बहाना बनाने और रिटारमेंट और पुनर्नियुक्ति के जरिए सरकार सेहत सुधारने के आभासी इलाज कर रही है।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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