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अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती असि, नदी के जीर्णोद्धार की कोई फिक्र नहीं
आशुतोष सिंह
वाराणसी : वरुणा और असि नदी के बीच गंगा तट पर बसी सांस्कृतिक और धार्मिक नगरी वाराणसी प्राचीन काल से ही विभिन्न मत-मतान्तरों की संगम स्थली रही है। वाराणसी में बहने वाली असि नदी जो कभी इस शहर के नाम का हिस्सा थी। आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।
असि नदी आज नाला बना दी गई है। इसे नाला घोषित करने के बाद तो मानो इस पर कब्जा करने की होड़ लग गई है। असि नदी में पानी कम, कचरा अधिक नजर आता है। उधर से गुजरने वाले लोग बदबू के चलते नाक पर कपड़ा रखने को मजबूर होते हैं। इसमें शहर के बड़े हिस्से का गंदा पानी बह रहा है। नदी के दोनों किनारों पर अवैध कब्जा कर अट्टालिकाएं बन रही हैं।
भूमाफियाओं की लगी नजर
असि नदी के लम्बे चौड़े पाट-किनारों पर भूमाफियाओं की निगाह लगी है। पिछले 10 सालों में ही इन भूमाफियाओं ने इसे नाले से नाली में बदल दिया। सभी ने असि को सुखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। पैसा देकर सरकारी कागजातों में असि नदी के प्रवाह मार्ग के सूखे भूखंड पर अवैध तरीके से पहले व्यक्तिगत नाम चढ़वाए गए और फिर पुलिस-प्रशासन और सत्ता की आड़ लेकर इन भूखंडों पर कब्जा किया गया। विडम्बना तो यह है कि यह प्रक्रिया उस राज में ज्यादा परवान चढ़ी, जिन्होंने हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के नाम पर एक प्रकार से पिछले 15 वर्षों से वाराणसी पर अपना शासन जमा रखा था। वाराणसी नगर निगम पिछले एक दशक से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास है, वाराणसी लोकसभा की सीट तो दो दशक से बीजेपी के पास रही और आज राज्य और केंद्र दोनों में बीजेपी की सरकार है, लेकिन किसी को फिक्र नहीं कि दम तोड़ चुकी असि का जीर्णोद्धार कर सके।
प्रशासन के पास नहीं है कोई रिकॉर्ड
लोगों के सामने भी लाख टके का सवाल है कि असि (अस्सी) नदी गई कहा। मसलन कुआं, सड़क, खेत, खलिहान यहां तक कि पगडंडियों और नाला-नालियों तक का हिसाब रखने के लिए पटवारी से लगायत कलेक्टर तक के भारी भरकम अमले की नजर के सामने से अचानक एक मुकम्मल नदी असि गायब हो गई, मगर कैसे इस सवाल का जवाब नदारद है। असि नदी के अवसान की दर्द भरी दास्तान कोई पौराणिक युग की घटना नहीं है। यह सबकुछ पिछले कुछ बरसों के अंदर ही हुआ है।
असि का इतिहास मिटा
आश्चर्य यह है कि आज जब सामान्य सी बरसात भी हो जाए तो यह नदी अपना पूर्व रूप लेने लगती है जिसके कारण नदी भूभाग पर अवैध कब्जा कर अट्टालिकाओं में रहने वालों को जन -धन का खतरा बराबर बना रहता है। फिर भी लोग विपदा और खतरे को भांप नहीं पा रहे है। इस प्राचीन नदी को, जिसके कारण वाराणसी का अस्तित्व संसार के समक्ष आया, अंतिम विदाई दे दी गई है। बात सुनने में हैरतअंगेज भले ही लगे पर सच यही है कि बनारस के भूगोल से असि का इतिहास तकरीबन मिट चुका है। इसके अस्तित्व को लेकर जब मेयर रामगोपाल मोहले से वार्ता करने का प्रयास किया गया तो वे व्यस्तता का बहाना बनाकर कन्नी काट गए।
अब नहीं रही असि
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित देश के जाने-माने पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी के मुताबिक मनुष्य और नदियों का नाता किसी से छिपा नहीं है। पीने के पानी, नहाने, धोने से लेकर सिंचाई तक के लिए मनुष्य नदियों पर निर्भर है। यहां तक कि सारे संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठान नदियों के किनारे सम्पन्न होते हैं। वाराणसी में गंगा प्रदूषण के चलते काली पड़ गई है। उनका बहाव नाम मात्न का रह गया है। किसी भी बड़ी नदी को प्रवाहमान रखने के लिए प्रकृति का अपना एक सिस्टम होता है। छोटी नदियां उससे संगम कर उसे प्रवाह प्रदान करती हैं। गंगा के साथ भी यही है। बिल्कुल सामान्य समझ वाली बात है कि वाराणसी नगर के सामनेघाट छोर पर असि का जल गंगा को फोर्स देता था। इससे नगर की गंदगी आगे बढ़ जाती थी। पुन: आदिकेशव घाट छोर पर वरुणा नदी का जल गंगा में मिलकर गंदगी को और आगे बढ़ा देता था। अब असि रही नहीं। वह नगवा नाले के रूप में हो गई। इससे गंगा का पूरा प्रवाह ही बाधित हो गया है जिसके चलते वाराणसी में गंगा और प्रदूषित हो गई तथा घाटों पर सिल्ट का भी जमाव हो रहा है।
परवान नहीं चढ़ पा रही कोशिशें
कुछ महीने पहले पंचगंगा फाउंडेशन और प्लानर इंडिया के प्रयास से असि नदी को नवजीवन देने के लिए नमामि असि जल प्रपात (फाउंटेन) की आधारशिला रविदास घाट पर रखी गई। इसके तहत फाउंटेन में अस्थायी ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का काम शुरू किया गया। दावा किया गया कि यह पानी की गंदगी को साफ करेगा। इसके साथ ही साफ पानी को सुगंधित किया जाएगा और वह फौव्वारा के रूप में चलेगा। यह भी दावा किया गया कि नदी पर बनने वाला यह प्रदेश का पहला ट्रीटमेंट प्लांट होगा। बीजेपी काशी प्रांत के अध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य के मुताबिक वाराणसी को पूर्ण बनाने वाली असि नदी की दुर्दशा को सुधारने में यह परियोजना लाभकारी होगी, लेकिन यह कोशिश परवान नहीं चढ़ी। इस बीच प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद एक बार फिर असि को बचाने की मुहिम चल पड़ी है। पिछले दिनों वाराणसी दौरे पर पहुंचे शहरी विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने असि को साफ करने के लिए फावड़ा तक चलाया। उन्होंने ऐलान किया कि एक साल के अंदर असि नदी का प्राचीन रूप दिखने लगेगा।
क्या कहते है बीएचयू के विशेषज्ञ?
बीएचयू के नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर यूके चौधरी ने कहा कि इसके शुद्ध होने से गंगा में मिलने वाला जल भी स्वच्छ हो जाएगा। गंगा अन्वेषण केंद्र के कोऑर्डिनेटर प्रो. यूके चौधरी कहते हैं कि गंगा के जलस्तर में निरंतर गिरावट और भूमिगत जल के दोहन ने असि नदी को नाला बना दिया क्योंकि भूमिगतजल का सतही जल में परिवर्तन होने का नाम ही नदी है। जब भूमिगत जल का स्तर नदी के स्तर से नीचे जाएगा तो नदियां सूख जाएंगी। नदी के मौलिक जल के अभाव में नालों के पानी की अधिकता हो जाएगी और कालांतर में वह नाले का रूप अख्तियार लेती है। असि नदी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इसके उपाय के बाबत उन्होंने बताया कि किसी भी नदी को बचाने के लिए बैंक स्टोरेज की स्थापना बेहद जरूरी है जो नदी के मूल प्रवाह को बरसात के बाद बनाए रख सके। इसके लिए वर्षा के जल के त्वरित निस्तारण को रोककर नदी के बेसिन क्षेत्र में संग्रहित करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। बीएचयू के गंगा रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक वरुणा-असि का अपना मौलिक जल, गुण, मात्रा और आवेग हुआ करता था जो नगर के भूमिगत जलस्तर को संतुलित करने के साथ ही गंगा के कटान क्षेत्र में बंधा का काम करता था। वरुणा और असि अपने द्वारा लाई गई मिट्टी को गंगा के कटाव वाले क्षेत्रों में भरकर उसे स्थिरता प्रदान करती हैं। इसके अलावा गर्मी के दिनों में गंगा का जलस्तर गिरने पर नगर के भूमिगत जल रिसाव को अपनी ओर मोडक़र मृदक्षरण रोकने का भी काम करती रही हैं।