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...और जब घोटाले पर उठाई उंगली, तो वीआरएस लेना हुई मजबूरी

aman
By aman
Published on: 23 Jun 2017 10:27 AM GMT
...और जब घोटाले पर उठाई उंगली, तो वीआरएस लेना हुई मजबूरी
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...और जब घोटाले पर उठाई उंगली, तो वीआरएस लेना हुई मजबूरी

राजकुमार उपाध्याय

लखनऊ: यूपी राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) के औद्योगिक क्षेत्र ट्रोनिका सिटी के सुंदर गार्डन के मामले में निगम को मुंह की खानी पड़ी। अफसरों की मिलीभगत से सैकड़ों करोड़ की जमीन पर भू-माफियाओं ने अपना दावा ठोक दिया।

तत्कालीन अवर अभियंता अवधेश कुमार तिवारी ने इस पर उंगली उठायी तो उनका जीवन खतरे में पड़ गया। मगर निगम से कोई मदद को सामने नहीं आया। मजबूरन खुद को बचाने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ वीआरएस लेने का फैसला लिया। इसी सिलसिले में प्रबंध निदेशक को संबोधित पत्र में तिवारी ने सुंदर गार्डन प्रकरण में कई बड़े खुलासे किए हैं, जो निगम के कमाऊ अफसरों के कारनामे बयां करते हैं।

क्या है मामला?

दरअसल, यह प्रकरण ट्रोनिका सिटी में सुन्दर गार्डन (एसजी) और यूपीएसआईडीसी के बीच हाईकोर्ट में चल रहे वाद से शुरू होता है। इसमें एसजी के पदाधिकारियों ने निगम की अर्जित व विकसित 29.45 एकड़ भूमि को अपना बताया था। 2008 में हाईकोर्ट ने निगम के अर्जन को निरस्त करते हुए एसजी के पक्ष में निर्णय दिया। ट्रोनिका सिटी के इंजीनियरों ने मामले की विधिक पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

उपजिलाधिकारी स्तर के अधिकारी को यह प्रकरण सुनने का अधिकार ही नहीं था मगर उसी के आदेश को आधार बनाकर हाईकोर्ट में निगम के भूमि अर्जन के अधिकार को चुनौती दे दी गयी। मामले की पैरवी में मुख्य भूमिका निभाने वालों में तिवारी भी शामिल थे। भूमाफियाओं के प्रभाव के चलते उन्हें लगातार मानसिक रूप से प्रताडि़त किया गया। उनके जीवन पर भी खतरा पैदा हो गया। उन्होंने अफसरों को पत्र लिखकर इस बावत अवगत भी कराया। इस पर भी निगम प्रशासन से कोई भी सहायता के लिए आगे नहीं आया। मजबूरन उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देने का निर्णय लिया। अब उन्होंने निगम के प्रबंध निदेशक को पत्र भेजकर वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) की मांग की है।

इस प्रकरण में जब निगम के प्रबंध निदेशक रणवीर कुमार से बात करने की कोशिश की गयी तो उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया।

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अफसरों ने तथ्य सामने आने नहीं दिया

निगम के अफसरों ने इस प्रकरण में मात खाने के लिए काफी मशक्कत की। अवधेश तिवारी ने पत्र में लिखा है कि सबूतों को छिपाया गया। जैसे- सुंदर गार्डन अपंजीकृत संस्था है। इस संस्था की तरफ से लगभग 300 सदस्यों की सूची कोर्ट में पेश की गयी थी, पर रजिस्ट्रार कार्यालय गाजियाबाद में जांच के दौरान यह संख्या 150 से कम मिली। जिन लोगों ने जिलाधिकारी कार्यालय, गाजियाबाद से भूमि का मुआवजा प्राप्त कर लिया था, उन्हीं लोगों ने सुंदर गार्डन को पावर ऑफ अटार्नी भी दे दी। इसके अलावा यह भूमि संयुक्त भूखण्ड के रूप में नहीं थी बल्कि बिखरी हुई भूमि की स्थिति में थी मगर अफसरों ने यह तथ्य सामने ही नहीं आने दिया।

24 इंजीनियरों पर कार्रवाई की फाइल दफन

2007 में यूपीएसआईडीसी में भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई के लिए एसआईटी का गठन किया गया था। एसआईटी ने घोटालेबाज अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दो एफआईआर भी दर्ज कराई थी। इसी को देखते हुए तत्कालीन प्रबंध निदेशक बलविन्दर कुमार ने विकास कामों की जांच के लिए ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के रिटायर मुख्य अभियंता मदन मोहन सिंघल की अध्यक्षता में एक जांच टीम का गठन किया। उस समय अवधेश कुमार तिवारी खण्डीय कार्यालय ट्रोनिका सिटी, लोनी गाजियाबाद में कार्यरत थे। जब सिंघल ने अपनी रिपोर्ट पेश की तो बलविन्दर कुमार ने 24 इंजीनियरों को चार्जशीट देने का आदेश दिया मगर अचानक उनका प्रबंध निदेशक के पद से तबादला हो गया। नतीजतन घोटालेबाजों पर कार्रवाई की फाइलें दफन कर दी गईं।

अमित घोष के कार्यकाल में हुए प्रमोशन पर सवाल

आईएएस अमित घोष के कार्यकाल में अधिकारियों की पदोन्नति और कर्मचारियों के विनियमितीकरण के लिए गए फैसलों पर भी अंदरखाने सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक बीते विधानसभा चुनाव के ऐन पहले उन्होंने पांच अधिकारियों के प्रमोशन आदेश जारी किए। हैरानी इस पर है कि जिन अधिकारियों को पदोन्नति दी गयी उनकी वाॢषक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) ही उपलब्ध नहीं है। प्रमोशन पाने वाले अफसरों ने भी आदेश जारी होने के पखवारे भर बाद अपनी योगदान आख्या दी। उस दौरान प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू थी। विभागीय जानकारों के मुताबिक ऐसी स्थिति में पदोन्नति के तुरंत बाद योगदान आख्या दी जाती है। यही कारण है कि निगम में इन अधिकारियों का प्रमोशन बैक डेट में किये जाने की चर्चा जोरों पर है।

विनियमितीकरण में भी खेल

29 जून 1999 के विनियमितीकरण नियम के मुताबिक उन्हीं कर्मचारियों का विनियमितीकरण किया जा सकता है जो 1991 से लगातार निगम में कार्यरत हों। शर्त यह भी है कि उक्त कर्मचारी की सेवा बाधित नहीं होनी चाहिए।

इसके तहत निगम में 60 कर्मचारियों का विनियमितीकरण होना था मगर नियमितीकरण सिर्फ एक वाहन चालक का किया गया। विभागीय जानकारों के मुताबिक जिस कर्मचारी का नियमितीकरण किया गया, उसकी सेवा 1994-96 और 2012-13 के दौरान बाधित रही है। ऐसे में सिर्फ एक चालक का विनियमितीकरण किए जाने से निगम के अंदरखाने में आईएएस अमित घोष के फैसले के खिलाफ आवाजें उठनें लगी थीं।

इन अफसरों को मिला प्रमोशन:

अफसर पूर्व पद पदोन्नति के बाद

दीपक गर्ग प्रबंधक मुख्य प्रबंधक

एसएस भाटिया उपप्रबंधक प्रबंधक

आलोक कुमार उपप्रबंधक प्रबंधक

टीपी भसह सहायक अभियंता अधिशासी अभियंता

नीरज खरे सहायक अभियंता अधिशासी अभियंता

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Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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