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UP: बाढ़ के साथ बरसता है पैसा, दस साल में 10 गुना बढ़ी लागत
बांध बनाना और फिर हर साल उसकी मरम्मत करना एक उद्योग से कम नहीं है। बरसात के मौसम से पहले मरम्मत की जाती है, जो बरसात-बाढ़ के दौरान टूटकर बराबर हो जाती है।
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: बांध बनाना और फिर हर साल उसकी मरम्मत करना एक उद्योग से कम नहीं है। हर साल बरसात के मौसम से ऐन पहले मरम्मत की जाती है, जो बरसात-बाढ़ के दौरान टूट-टाट के बराबर हो जाती है। अगले साल फिर यही सिलसिला दोहराया जाता है। इस उद्योग के लिए बाढ़ एक नियामत है जो अपने साथ पैसों का सैलाब लेकर आती है।
वैसे प्रदेश में कई तटबंधों की यही स्थिति है, लेकिन गोंडा स्थित एल्गिन-चरसरी तटबंध और सकरौर भिखारीपुर रिंग बांध तो अनोखे हैं। यह दोनों अपस्ट्रीम स्थित पीडी (परसपुर-धौरहरा) बांध के डूब क्षेत्र में हैं।
यही कारण है कि यह तटबंध ज्यादा समय तक घाघरा नदी की तेज धारा झेल नहीं पाते। यह जानकारी होने के बावजूद इनका निर्माण ही गलत डिजाइन (एलाइनमेंट) पर किया गया। नतीजतन बारिश के सीजन में एल्गिन-चरसड़ी बांध टूट जाता है।
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गलत डिजाइन पर बना है बांध
एल्गिन-चरसरी बांध 2010 और 2011 में लगातार टूटा। तफ्तीश में बांध के गलत डिजाइन पर बनने की बात सामने आई थी। उस समय तत्कालीन विभागाध्यक्ष ने बांध को फिर सही डिजाइन पर बनाए जाने का दावा किया था मगर जब पिछले साल यह तटबंध फिर कटा तो उनके दावों की पोल एक बार फिर खुल गयी।
विभागीय मंत्री धर्मपाल सिंह भी कह चुके हैं कि इस बांध की बुनियाद ही गलत थी। बहरहाल, विभागीय जानकारों के मुताबिक बाढ़ रोकने के लिए घाघरा नदी पर इन तटबंधों के निर्माण का फैसला 2005-06 में लिया गया था।
तत्कालीन सरकार में मंत्री रहे स्थानीय जनप्रतिनिधियों के दबाव में यहां बांध बनाने की योजना बनी ताकि उनकी और उनके रिश्तेदारों की कृषि योग्य भूमि को डूबने से बचाया जा सके। इंजीनियरों का कहना है कि गूगल मैप पर पिछले दशकों के नदी के वाटर-वे को देखने पर यह समझ में आता है कि यह तटबंध पीडी बांध के डूब क्षेत्र में मौजूद है।
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बांध बचाव को 97.35 करोड़
विभागीय मंत्री धर्मपाल सिंह ने बीते दिनों एक प्रेस वार्ता में इसे स्वीकारा भी। उन्होंने कहा कि एल्गिन-चरसरीतटबंध की बुनियाद ही गलत थी। अब बचाव का स्थायी उपाय करने के लिए 97.35 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। इसकी स्वीकृति गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग से भी ली गयी है। केंद्रीय जल आयोग की एडवाइजरी कमेटी केअनुमोदन के बाद इस बांध को बारिश के मौसम से पहले सुरक्षित कराया जाएगा।
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निर्माण में भ्रष्टाचार भी हुआ
2011 में टूटे बांध के निर्माण के लिए धन का आवंटन नहीं हो सका था। योजना से जुड़े रहे इंजीनियरों का कहना है कि उस समय एक बड़े इंजीनियर ने उनके ऊपर एक विशेष कम्पनी के सैंड बैग का प्रावधान योजना में रखने का दबाव डाला, लेकिन यहां के बाढ़ बचाव कार्यों के लिए यह बैग उपयुक्त नहीं था। यह बात परियोजना के मुख्य अभियंता ने उन बड़े इंजीनियर को बताई भी जो उन्हें नागवार लगी। यही कारण है कि एल्गिन-चरसरी बांध के कार्यों के लिए उस समय धन का आवंटन नहीं किया गया।
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धन की कमी भी पड़ी भारी
स्थानीय अभियंताओं का कहना है कि पिछले वर्ष गोंडा और बाराबंकी की सीमा के पास जहंा बांध में कटान हुई है, उसके करीब 10 किमी के पहले से ही नदी का प्रवाह बांध की तरफ बढ़ रहा था। इसे देखते हुए नदी में जगह- जगह ठोकर बनाए जाने की योजना बनी ताकि बाढ़ के सीजन में बांध को कटान से बचाया जा सके। इस बाबत प्रस्ताव भी शासन भेजा गया था मगर इसके लिए धन की मंजूरी ही नहीं मिल सकी थी।
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कटान जोन में बने 35 फीसदी तटबंध
भारत सरकार एवं सिंचाई विभाग द्वारा नदियों के किनारे तटबंध बनाने से पूर्व तटबंध समरेखन (एलाइनमेंट) निर्धारण के लिए यह मानक निर्धारित किया गया है कि बांध के डिजाइन के वर्ष से पिछले 25 वर्षों में आई अधिकतम बाढ़ से कम बाढ़ डिस्चार्ज पर तटबंध का डिजाइन नहीं किया जाएगा। विभागीय जानकारों के अनुसार प्रदेश में 35 फीसदी तटबंध नदी के कटान में बने हैं तो 50 फीसदी तटबंध नदी से कम बाढ़ डिस्चार्ज में बनाए गए हैं।
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10 साल में 10 गुना बढ़ी लागत
बलिया के दुबे छपरा रिंग बांध के लिए धन आवंटित हुआ पर काम शुरू नहीं हो सका। नतीजतन बांध पिछले साल बाढ़ की विभीषका नहीं झेल सका। अक्टूबर 2005 में 2.30 करोड़ लागत वाली दुबे छपरा-टेंगरही तटबंध निर्माण
की परियोजना स्वीकृत की गई थी। इस परियोजना (4.800 किमी) में दूबे छपरा रिंग बांध (किमी 0.00 से 1.900 किमी) का भी निर्माण शामिल था। अब इसकी लागत 29.47 करोड़ स्वीकृत की गयी है। साफ है कि परियोजना की लागत 10 साल में ही 10 गुना बढ़ गयी।
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बाढ़ में बह गए 4.17 करोड़
वर्ष 2006-07 में इस बांध के लिए 1.42 करोड़ जारी हुए मगर समय से काम पूरा नहीं हुआ और परियोजना की लागत अप्रैल 2011 तक बढक़र 6.10 करोड़ हो गई। इसके तहत दुबे छपरा रिंग बांध के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाना था क्योंकि इसका डिजाइन वर्ष 2003 के उच्चतम बाढ़ स्तर को देखते हुए बनाया गया था पर इस दौरान यह बांध क्षतिग्रस्त हो गया था। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट विभागीय अफसरों के कारनामों की पोल खोलती है।