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बदल रहा बसपा के अर्थतंत्र का स्वरूप, पार्टी की नजर अब सुरक्षित रास्तों से धन उगाही पर
Vijay S. Pankaj
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अर्थतंत्र ने अब अपना स्वरूप बदलना शुरू कर दिया है। लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पहली बार बसपा ने स्थानीय निकाय चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है।
निकाय चुनावों के लिए बसपा सुप्रीमो ने पिछले दिनों पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ लंबी वार्ता के बाद गाइडलाइन जारी की, जिसमें अब प्रत्याशियों से सीधे पैसा न लेकर सदस्यता अभियान के माध्यम से पार्टी फंड में चंदा जमा किया जाना है। निकाय चुनाव में ही बसपा ने सदस्यता अभियान के माध्यम से 250 से 300 करोड़ रुपए वसूलने की रणनीति बनाई है।
माया को खामियों का है एहसास
प्रदेश की 17वीं विधानसभा चुनाव के बाद बसपा की सरकार बनाने का सपना देख रही मायावती को संगठन की कमजोरियों तथा अपनी नीतियों की खामियों का एहसास तो हो गया है, परंतु उसे छिपाते हुए इवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया गया।
कुछ नेताओं ने मुझे गुमराह किया
बसपा सूत्रों के अनुसार, चुनाव बाद की बैठक में मायावती ने पैसा लेकर टिकट देने के आरोपों पर अपने को अलग रखते हुए कहा, कि 'कुछ नेताओं ने अपने स्वार्थ में मुझे गलत जानकारी दी।' इस मसले पर मायावती ने धन उगाही के सबसे बड़े सिपहसालार तथा मुसलमानों से एक तरफ पक्ष लेने की सलाह देने वाले नसीमुद्दीन की काफी मलामत की। माया का कहना था कि मेरे नाम पर प्रत्याशियों से पैसा लेकर कुछ नेताओं ने अपना स्वार्थ पूरा किया और मुझे गुमराह करते रहे। कई स्थानों पर बढ़ा-चढ़ाकर गैर राजनीतिक प्रत्याशी पैसे के बल पर बसपा की लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए आते रहे। इससे कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई और ऐसे खराब और गैर राजनीतिक प्रत्याशी होने के नाते उनकी स्थानीय और खराब छवि के कारण पार्टी का नुकसान हुआ।
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माया बोलीं- नसीमुद्दीन ने दिलाया था भरोसा
मायावती ने कहा, 'नसीमुद्दीन मुझे बताता रहा कि बसपा की लोकप्रियता से सभी जीत जाएंगे।' मायावती का कहना था कि 'दलित मतदाताओं के साथ केवल मुस्लिम वोट के समर्थन से जीतना संभव नहीं है, जबकि नसीमुद्दीन ने मुझे भरोसा दिलाया, कि सपा से नाराज और बीजेपी के डर से मुसलमान बसपा के साथ आने को विवश हैं। ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी उतारने और बसपा को ही वोट देने की मुसलमानों से अपील बसपा पर भारी पड़ी और उसकी प्रतिक्रिया में अन्य पिछड़ी जातियां बसपा से खिसक गई।' बसपा सुप्रीमो ने अपने ही कुछ नेताओं पर आरोप लगाया कि 'ये नेता मेरे नाम से वसूली कर अपनी जेबें भरने में लगे हैं।' यही वजह है कि मायावती ने इस बैठक के बाद नसीमुद्दीन को उत्तर प्रदेश से हटाकर मध्य प्रदेश का प्रभारी बना दिया।
उगाही के लिए नसीमुद्दीन का प्लान
इस सारी कवायद के बाद दूसरी ही बैठक में नगर निकायों के चुनाव में प्रत्याशी उतारे जाने पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी की धन उगाही फिर चर्चा में आ गई। पार्टी फंड को मजबूत करने तथा प्रचार खर्चे के लिए लोकसभा एवं विधानसभा के प्रत्याशियों की ही तर्ज पर मेयर, नगर पंचायत अध्यक्ष तथा सभासदों से निर्धारित रकम लिए जाने का निर्णय लिया गया। इसके तहत मेयर तथा नगर पंचायत अध्यक्षों से 10-10 लाख रुपए, छोटे जिलों के अध्यक्षों से 5-5 लाख तथा सभासदों से 50-50 हजार रुपए निर्धारित किया गया।
पार्टी सदस्यों ने जताई आपत्ति
नसीमुद्दीन के इस प्रस्ताव पर कुछ सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि छोटे जिलों के सभासद इतनी बड़ी रकम नही दे पाएंगे। इस पर यह छूट दी गई कि ऐसे स्थानों को चिन्हित कर वहां की स्थितियों के अनुरूप धनराशि ली जाए। इसके लिए नसीमुद्दीन की अध्यक्षता में एक कोर कमेटी भी बना दी गई।
सदस्यता अभियान के जरिए उगाही
बतातेे हैं कि रात में मायावती को इस व्यवस्था का सपना आया और सुबह मायावती ने फिर से अपने कुछ नेताओं से चर्चा कर प्रत्याशियों से सीधे पैसा न लेकर सदस्यता अभियान के माध्यम से पैसा लेने की बात की। इस प्रक्रिया में मेयर, नगर पंचायत अध्यक्ष तथा सभासद का चुनाव लड़ने वाले हर प्रत्याशी को सदस्य बनना होगा। सदस्यता धनराशि 50 रुपए निर्धारित की गई है। इसके तहत मेयर प्रत्याशी को 20 हजार, नगर पंचायत अध्यक्षों को 10 से 15 हजार तथा सभासदों को 500 से 1,000 प्रत्याशी बनाने होंगे। इस प्रकार बसपा ने प्रत्याशियों से सीधे पैसा न लेकर सदस्यता अभियान के माध्यम से धनराशि वसूलने की रणनीति बनाई है।
फंड मैनेजरों ने दी सलाह
असल में मायावती के फंड की देखरेख करने वाले ने सलाह दी है कि वर्तमान केन्द्र सरकार की नीतियों के अनुसार ऐसी बड़ी धनराशि पार्टी फंड में खपाना संभव नहीं होगा। सदस्यता अभियान के माध्यम से यही धन जनता के सहयोग रूप में समायोजित हो जाएगी। इस प्रकार से बसपा फंड में 250 से 300 करोड़ रुपए आने का अनुमान है।