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यादव परिवार के 'टीपू' जल्द बड़े सुलतान बनने की तैयारी में
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के घर 1 जुलाई 1973 को जब बेटे का जन्म हुआ तो प्यार से उसका नाम टीपू रखा गया। शायद मुलायम सिंह यादव को इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि नन्हा टीपू एक दिन सुलतान बन जाएगा। यूपी के सुलतान बने अखिलेश अब बड़े सुलतान बनने की तैयारी में हैं।
विनोद कपूर
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के घर 1 जुलाई 1973 को जब बेटे का जन्म हुआ तो प्यार से उसका नाम टीपू रखा गया। शायद मुलायम सिंह यादव को इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि नन्हा टीपू एक दिन सुलतान बन जाएगा। यूपी के सुलतान बने अखिलेश अब बड़े सुलतान बनने की तैयारी में हैं।
राजनीति के गुर घर से ही मिले। पिता के अलावा सभी चाचा और अन्य बड़े राजनीति में ही तो थे। विदेश में पढाई पूरी करने के बाद लोकसभा का पहला चुनाव साल 2000 में ईत्र नगरी कन्नौज से जीता। दूसरी बार भी 2004 में इसी सीट से लोकसभा में पहुंचे । सुलतान बनने की बारी आई 2012 में जब अखिलेश के रथ ने यूरे यूपी में घूम कर मायावती के हाथी को रोक दिया । 15 मार्ख् 2012 को वो यूपी के सुलतान बने।
उनका कार्यकाल 19 मार्च 2017 तक रहा । मात्र 38 साल की उम्र में वो यूपी के सीएम बनने वाले वो पहले राजनीतिज्ञ थे।
अब उनके बडे सुलतान बनने के लिए धीरे धीरे मंच,माहौल और मौसम भी तैयार हो रहा है । माहौल बनाया बीजेपी नेताओं के बडबोले बयान ने और मंच बना गोरखपुर एवं फूलपुर लोकसभा का उपचुनाव । दोनों सीट पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली विपक्ष के लिए खुशगवार मौसम लेकर आ गया।
कभी सोचा भी नहीं गया था कि वोटों के ट्रांसफर के सवाल पर ही सपा और बसपा साथ आ पायेंगे। साल 1993 में जब सपा बसपा का समझौता हुआ था तब पूरा यूपी राम मंदिर आंदोलन की जकड में था लेकिन दोनों दलों ने बीजेपी से सत्ता छीन ली थी । यूपी में पिछडा,दलित और अल्पसंख्यक ऐसा गठजोड है कि बीजेपी को एक एक सीट जीतने के लिए नाको चने चबाने पडेंगे । चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही विपक्ष की एकता की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है।
तेलंगाना के सीएम चन्द्रशेखर राव 19 मार्च को विपक्षी एकता के लिए ममता बनर्जी से मिल रहे हैं। टीडीपी सरकार का साथ छोड चुका है । विचारों में मेल रखने वाले शिवसेना ने भी अगला चुनाव अलग लडने की ध्रमकी दे दी है। कुल मिलाकर बीजेपी के लिए हालत ठीक नहीं तो विपक्ष के लिए माहौल और एकता के लिए मौसम बढिया।
चूकि एकता की पहल अखिलेश ने की है लिहाजा उनके इस राजनीतिक चाल की तारीफ राजनीतिक विश्लेषकों ने भी की है । उम्मीद थी कि ऐसा कोई काम कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करते लेकिन ये हो नहीं सका। पहल अखिलेश ने की और बाजी मार ले गए । ममता हों या बिहार में लालू यादव की अनुपस्थिति में उनके बेटे तेजस्वी यादव सभी ने अखिलेश के काम की सराहना की।
पहल सपा अध्यक्ष ने की लिहाजा बाजी उनके ही हाथ रही । अखिलेश भले ही सार्वजनिक मंच से ये कहें कि वो ज्यादा बडे सपने नहीं देखते और खुद को ही यूपी तक ही सीमित रखना चाहते हैं । लेकिन राजनीति में कब दिशा और दशा पलट जाये ये किसी को पता नहीं होता । अखिलेश को भी इसका पता नहीं है।
उपचुनावों में मिली जीत के बाद वो राजनीतिक पटल पर क्षेत्रीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेता बन कर उभरे हैं। ममता ,चन्द्रशेखर राव या चन्द्रबाबू नायडु क्षेत्रीय नेता हैं जिनकी स्वीकार्यता अपने राज्यों तक सीमित हैं। वामपंथी दलों में भी कोई ऐसा नेता नहीं जिसे राष्ट्रीय नेता माना जाय ।कभी कभी हालात भी राजनीति में मजबूर कर देते हैं कि आप बडी जिम्मेवारी संभालें । दिवंगत राजीव गांधी के साथ भी ऐसा हुआ था।
वो कभी भी राजनीति में आना नहीं चाहते थे और अपनी पायलट वाली जिंदगी से खुश थे लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या ने उन्हें राजनीति में आने और बडा पद संभालने के लिए मजबूर कर दिया था । हो सकता है कि 2019 तक हालात बने कि ना ना करते अखिलेश को भी बडी जिम्मेवारी के लिए सामने आना पड़े।
हालांकि ये अभी तक कयास हैं लेकिन राजनीति में कभी कुछ कहा नहीं जा सकता । अखिलेश वाक्यपटु हैं ,उनके चुटीले अंदाज लोगों को गुदगुदाते हैं । उनके अंदाज से किसी को बुरा नहीं लगता । उसवक्त भी जब वो विपक्ष की आलोचना करते हैं ।