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PM मोदी के स्वच्छता मिशन पर सब गोलमाल, ODF के दावों की खुली पोल
स्वच्छता ही सेवा है। यह भाव उतर प्रदेश में सिर्फ नारा बन कर रह गया है। सफाई एक इवेंट हो गई है।अखिलेश यादव की सरकार रही हो या फिर योगी आदित्यनाथ की। दोनों काल खंडो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता मिशन को लेकर यही नजरिया दिखता है। जिस तरह जमीन पर प्रदेश को खुले में शौच (odf) से मुक्ति का अभियान चलाया जा रहा है वह महज कागजी है। हद तो तब हो गई जब प्रशासन ने भी सफाई के नाम पर पुरस्कार ले लेने और अपनी पीठ थपथपा लेने की होड़ मची है।
योगेश मिश्र/ संजय तिवारी
लखनऊ: स्वच्छता ही सेवा है। यह भाव उतर प्रदेश में सिर्फ नारा बन कर रह गया है। सफाई एक इवेंट हो गई है।अखिलेश यादव की सरकार रही हो या फिर योगी आदित्यनाथ की। दोनों काल खंडो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता मिशन को लेकर यही नजरिया दिखता है। जिस तरह जमीन पर प्रदेश को खुले में शौच (ODF) से मुक्ति का अभियान चलाया जा रहा है वह महज कागजी है। हद तो तब हो गई जब प्रशासन ने भी सफाई के नाम पर पुरस्कार ले लेने और अपनी पीठ थपथपा लेने की होड़ मची है।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 16 जिलों को सफाई के लिए पुरस्कृत किया। इन जिलों में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद कोई पुरस्कार लायक बदलाव नहीं हुआ है। कचरा निस्तारण की कोई नई कोशिश नहीं हुई है। अभी भी नदियों में गंदे नाले सीधे गिर रहे हैं। रेलवे स्टेशनों की हालत बदत्तर है। अपना भारत टीम ने इनमे से कई जिलों की पड़ताल की। तथ्य बेहद निराश करने वाले हाथ लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी या फिर योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में भी बदलाव की कोई नई इबारत नहीं लिखी गई। किस तरह नौकरशाही स्वच्छता मिशन को पलीता लगा रही है इसे प्रदेश के odf जिले शामली और बिजनौर की नजीरो से बेहतर समझा जा सकता है।
बिजनौर जिले को किया ODF घोषित
बिजनौर में एक गांव मुबारकपुर है। यहां गांव के लोगों को शौचालय बनवाने के लिए ईद के आसपास पैसे दिए गए थे।ग्रामीणों ने उस पैसे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ईदी कह कर वापस कर दिया और आश्वासन दिया कि अपने पैसे से वे शौचालय बनवा लेंगे। चूंकि यह बात प्रधानमंत्री तक पहुंच गयी थी। उन्होंने मन की बात में इसका जिक्र भी किया नौकरशाही को भी बिजनौर जिले को कोई रिटर्न गिफ्ट देना ही था। नतीजतन आनन- फानन में नौकरशाही ने इस भय से कि प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लालकिले से इस गांव का जिक्र करेंगे। 14 अगस्त की रात पूरे बिजनौर जिले को odf घोषित कर दिया गया।
आगे की स्लाइड्स में जानें इन गांवों में खुली दावों की पोल...
दावों की खुली पोल
मुबारकपुर में 149 घरों में शौचालय नहीं थे। इस गांव को 17. 56 लाख रुपए मिले थे। खुले में शोच मुक्त घोषित इस जिले के मोहम्मदपुर देवमल ब्लॉक के भवानीपुर गांव जाए तो ODF के दावों की पोल खुल जाती है। गांव के जय सिंह , राजपाल, और दिव्यांग गुड्डी बताते हैं कि सरकार की तरफ से कोई शौचालय नहीं बना है। ज्यादातर लोग जंगल में शौच के लिए जाते हैं। इनकी मानें तो इसकी शिकायत प्रधान और सचिव से कई बार की गई। तहसील दिवस पर जिलाधिकारी को भी दो बार कहा गया लेकिन कागज में तो यह गांव ODF हो ही गया है।
इसी जिले के नजीबाबाद ब्लॉक के मिर्जापुर शेद गांव में घुसते ही खुले में शौच मुक्त का बड़ा-बड़ा बोर्ड पढ़ा जा सकता है। कई शौचालय बने भी हैं। गांव के इरशाद का कहना है कि एक महीने पहले बने शौचालय का दरवाजा टूटा है और छत से पानी टपकता है। कामराजपुर गांव के रहने वाले नरेंद्र और गुड्डू बताते हैं कि उनके परिवार में 25 लोग हैं लेकिन कोई शौचालय नहीं है। शिकायत की गई पर अनसुनी रह गई। हम लोग खुले में शौच जाने के लिए अभिशप्त हैं। मंडावली गांव के लोगो की शिकायत है कि शौचालय अपात्रो को दिए गए। गांव में बहुत से लोग खुले में शौच को जाते हैं। कीरतपुर ब्लॉक के बुडगरी निवासी शराफत बताते हैं कि कई लोगो के यहां शौचालय नहीं है। गांव के लोग खुले में शौच करते हैं। बढ़ापुर के दोदराजपुर गांव की भी कहानी कुछ ऐसी ही है।
ओडीएफ घोषित जिले शामली की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। बीते 11 मार्च को विधानसभा की मतगणना थी। 10 मार्च की रात 8 बजे शामली को odf घोषित कर दिया गया। वह भी महज इसलिए ताकि तत्कालीन मुख्यमंत्री के सचिवालय में तैनात आईएएस अफसर अमित गुप्ता और मिशन डायरेक्टर विजय किरण आनंद के सर उपलब्धि का ताज पहनाया जा सके। इस जिले में odf के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम गई तो उनके होश फाख्ता हो गए। इस टीम के मुताबिक 55 से 60 फीसदी घरों में ही शौचालय मिले। स्वच्छ भारत का मिशन इस जिले में 40 फीसदी से अधिक कागजी है। अपना भारत/newstrack.com की पड़ताल में हालत और भी खराब दिखी। जिले के जलालाबाद और काढला गांव के लोग खुले में शौच करते देखे जा सकते हैं। जिन घरों में शौचालय के गड्ढे बनवाए गए वह लोगो ने बंद करना शुरू कर दिया है। क्योंकि उन्हें धनराशि नहीं मिली।
सिर्फ कागजों पर हुए ODF
शहर के मोहल्ला रामरतन मंडी और सहागाजीपुरा में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। यहां के लोग बताते हैं कि उनसे कहा गया था कि दो किश्तों में पैसे मिलेंगे पर कोई भुगतान नहीं हुआ। जब गड्ढो में बच्चे गिरने लगे तो बंद करा दिया गया। जिन्दाना गांव के गुलाब सिंह बताते हैं की 30 से 35 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। लतीफगढ़ गांव के सतपाल के मुताबिक प्रधान औसर सचिव ने 60 शौचालय पास किया था। आश्वासन दिया गया था की गड्ढे खुदवाइए पांच हजार रुपए मिलेंगे। उन्होंने पैसे नहीं दिए। हमने फोन करके पूछा तो कहा कि सरकार ने योजना बंद कर दिया है। यही की सविता की माने तो उसका शौचालय भी अधूरा पड़ा है। सचिव ने बताया है कि योजना खत्म हो गई। कांडला नई बस्ती के वकील दो महीने से शौचालय बनवाने के लिए नगर पालिका का चक्कर काट रहे हैं। नामित सभासद रविंद्र कश्यप कहते हैं कि ODF प्रमाणपत्र लेने की तैयारी चल रही है पर वार्ड में कई दर्जन परिवारों के यहां शौचालय नहीं है।
बनारस की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इन दिनों स्वच्छता मिशन के डायरेक्टर विजय किरण आनंद जब वह के जिलाधिकारी थे तब अंतरराष्ट्रीय एजेंसी वाटर सप्लाई एंड सैनिटेशन कोलोबरेटिव काउंसिल (wsscc) ने बनारस को ODF करने का प्रस्ताव दिया। इस एजेंसी ने कहा कि शुरूआती दौर में पांच करोड़ की धनराशि वह खर्च करेगी। वह इस पूरे जिले को ODF अपने पैसे से करेगी। लेकिन जिलाधिकारी ने इस एजेंसी की जगह यह काम विश्व बैंक को थमा दिया। बनारस को ODF करके एक फिल्म बनायीं जानी थी। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) से एक टीम भी आयी थी। निराश wsscc के लोगों ने बनारस की जगह सहारनपुर के जिलाधिकारी से संपर्क साधा वह ODF का काम किया गया। फिल्म बनी UN में दिखाई गई।
विजयकिरण आनंद ने बनारस के 202 गांव ODF करवाएं। लेकिन नए जिलाधिकारी योगेश्वर राम ने इसकी पड़ताल कराई तो उनके होश फाख्ता हो गए। ODF गांव में होलापुर, नियारडीह, मंगोलपुर में जाते ही ODF के दावों की कलाई खुल जाती है। होलापुर में शौचालय का इस्तेमाल न करने की बड़ी वजह पानी की कमी है। हालांकि यहां लोगों में शौचालय के प्रयोग की आदत डालने के लिए पंचायत ने अर्थ दंड का प्राविधान किया। कई लोगों के राशन रोके। गांव की शकुंतला देवी बताती हैं कि पूरी दलित बस्ती में सिर्फ दो हैंडपंप लगे हैं। इन्हीं से नहाने और पीने का पानी लेना पड़ता है। ऐसे में शौचालय के लिए पानी लेना मुश्किल होता है। ODF गांव में शादी या समारोह के अवसर पर खुले में शौच करना लोगों की मजबूरी हो गई है। नियार डीह में 450 और मंगोलपुर में 111 शौचालय का निर्माण दिखाया गया है। कागजो पर ये गांव ODF हो गए हैं पर खुले में शौच करते यहां लोगो को देखा जा सकता है।
हकीकत कुछ और
टाइने कॉफी एंड डीन स्पेयर्स ने भारत के स्वच्छता मिशन पर एक किताब लिखी है- where india goes जिसमें सीतापुर जिले की कई नजीर हैं। देश के स्वच्छता मिशन पर इस युगल की यह टिपण्णी काबिले गौर है जिसमे यह कहते हैं कि उनके जीवन में स्वच्छ भारत मिशन कागजी भले हो पर धरातल पर उतर नहीं सकता है। यह किताब इस मिशन की कई कलई खोलती है।
साल 2010 में प्रदेश को शुष्क शौचालय विहीन करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन आज भी सर पर मैला ढोने की प्रथा जारी है। हालांकि नगरपालिकाओं ने इससे मुक्ति के दस्तावेज तैयार कर किए हैं। दो साल पहले अकेले लख्ननऊ में 57 मैला ढोने वालो को चिन्हित किया गया था। उतरप्रदेश के 33 जिलों में 7413 लोग आज भी मैला ढोने के काम में लगे हैं। सबसे अधिक लोग मुरादाबाद में हैं। योजना आयोग के मुताबिक़ 2012 तक इसे समाप्त हो जाना था।
नौकरशाही का स्वच्छता मिशन को लेकर नजरिया क्या है यह इससे भी समझा जा सकता है कि निर्मल ग्राम पुरस्कार जिन गांवों को दिए गए उनमे 10 फीसदी गांव भी इस पुरस्कार के लायक नहीं मिले। नौकरशाही ने यह खेल तब किया जब यह पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता था। निरंतर हमारे प्रकाशित खबरों पर जांच के बाद केंद्र सरकार ने इस पुरस्कार को बंद करने का निर्णय ले लिया। साल 2009 में सरकार ने 95043 सफाईकर्मी तैनात किए थे। लेकिन उस साल उतरप्रदेश के सिर्फ 6 गांव निर्मल ग्राम की सूची में आ सके जबकि ठीक एक साल बाद यह संख्या बढ़कर 13 तक पहुंच पाई। स्वामी प्रसाद मौर्या और बाबू सिंह कुशवाहा के कारकाल में किए गए फैसलों ने सूबे में शौचालय लिए जगह दे दी। इन्होंने शौचालय निर्माण के लिए दी जाने वाली राशि लाभार्थियों के खाते में न देकर डीपीआरओ के खाते में भेज कर कमीशन का रास्ता बना लिया।
ये राज्य है ODF
-देश में प्रति दिन 160,000 मीट्रिक्टन कचरा निकालता है।
-टाटा मेमोरियल के मुताबिक गर्भाशय के कैंसर का मुख्य कारण खुले में शौच है।
-लखनऊ में सार्वजनिक शौचालय की एक सीट का प्रयोग 130 - 135 लोग कर रहे हैं जबकि मानक के मुताबिक यह केवल 30 से 35 होना चाहिए।
-29 राज्यों में से 5 राज्य- सिक्किम, केरल, उत्तराखंड , हरियाणा, हिमाचल ODF हो चुके हैं।
-देश के 201 जिले odf है।
-देश में कुल 2,43,000 गांव ODF हैं।