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...तो इसलिए अरुण कुमार सिन्हा बने वाटर रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन
अरुण कुमार सिन्हा वाटर रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन होंगे। यूपी कैडर के 1983 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अफसर अरुण कुमार सिन्हा को वाटर रेगुलेटरी कमीशन के सर्वेसर्वा होने का अवसर सिर्फ इसलिए मिल पाया क्योंकि उन्होंने वाटर रिसोर्स इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल कर रखी है। इस पद की दौड़ में सेवा निवृत्त आईएएस अफसर प्रदीप भटनागर और जिले के मुख्य सचिव रहे सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी आलोक रंजन भी शामिल थे। जल प्रक्षेत्र में सुधार के लिए इस आयोग का 2009 में गठन किया गया था।
योगेश मिश्र
लखनऊ: अरुण कुमार सिन्हा वाटर रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन होंगे। यूपी कैडर के 1983 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अफसर अरुण कुमार सिन्हा को वाटर रेगुलेटरी कमीशन के सर्वेसर्वा होने का अवसर सिर्फ इसलिए मिल पाया क्योंकि उन्होंने वाटर रिसोर्स इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल कर रखी है।
इस पद की दौड़ में सेवानिवृत्त आईएएस अफसर प्रदीप भटनागर और जिले के मुख्य सचिव रहे सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी आलोक रंजन भी शामिल थे। जल प्रक्षेत्र में सुधार के लिए इस आयोग का 2009 में गठन किया गया था।
आयोग के पहले चेयरमैन सेवानिवृत्त आईएएस अफसर एचएल विरदी थे। हालांकि, विरदी के कार्यकाल में आयोग कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर सका इसलिए इस आयोग को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। पिछली अखिलेश सरकार ने इस आयोग को पुनर्जीवित कर इसके चेयरमैन और सदस्यों के लिए आवेदन पत्र मांगे।
चेयरमैन पद पर लगभग एक दर्जन आवेदन पत्र प्राप्त हुए जिसकी स्क्रूटनी योगी के कार्यकाल में हुई। स्क्रूटनी और साक्षात्कार के बाद तीन नामों का पैनल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रजामंदी के लिए उनके कार्यकाल भेजा गया उसमें मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन और सेवानिवृत्त आईएएस प्रदीप भटनागर का भी नाम था। आलोक रंजन के पास जल निगम व शहरी विकास के कामों का लंबा अनुभव था लेकिन रिवर फ्रंट में उनका नाम उछलने से उन्हें सूची से बाहर कर दिया गया।
हालांकि, आलोक रंजन के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से अनुमति मांगी थी लेकिन केंद्र सरकार ने रिवर फ्रंट मामले में उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका न होने की वजह से विभागीय कार्रवाई करने की अनुमति नहीं दी थी।
गौरतलब है कि सेवानिवृत्त आईएएस अफसर के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। प्रदीप भटनागर के पास जल प्रबंधन से संबंधित कोई अध्ययन व योग्यता नहीं थी। इसलिए अपनी वाटर रिसोर्स इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री की विशिष्ट योग्यता के बल पर अरुण कुमार सिन्हा इस पद पर काबिज हुए।