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ASER Report 2022 : 'असर' की रिपोर्ट में खुलासा, UP में कक्षा 1-8 के 23.7% बच्चे फीस देकर लेते हैं प्राइवेट ट्यूशन

ASER Report 2022: एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन (ASER) या 'असर' की रिपोर्ट में शिक्षा जगत से जुड़े कई बिंदुओं पर सर्वेक्षण में कई तथ्य सामने आए हैं। इस खबर में देखें पूरी रिपोर्ट।

aman
Written By aman
Published on: 18 Jan 2023 11:34 AM GMT
ASER Report 2022
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प्रतीकात्मक चित्र (Social Media)

ASER Report 2022: एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2022 बुधवार (18 जनवरी) को पीरामल ग्रुप के चेयरमैन और प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन (Pratham Education Foundation) के चेयरमैन अजय पीरामल (Ajay Piramal) ने जारी की। यह 17वीं असर रिपोर्ट है। अपने संबोधन में अजय पीरामल ने कहा, 'मैं प्रथम को 'असर 2022' के प्रकाशन की बधाई देता हूं। यह भारत में सबसे बड़ा नागरिकों द्वारा किया जाने वाला ग्रामीण सर्वेक्षण है। ये रिपोर्ट प्राथमिक शिक्षा (Primary education) की यथापूर्व स्थिति को बयां करता है।'

आपको बता दें, शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report-ASER) एक वार्षिक सर्वेक्षण है, जिसका उद्देश्य भारत में प्रत्येक राज्य और ग्रामीण जिले के बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति और बुनियादी शिक्षा के स्तर का विश्वसनीय वार्षिक अनुमान प्रदान करना है।

रिपोर्ट बच्चों के बढ़ते नामांकन को बताता है

प्राथमिक शिक्षा बच्चों के प्रारंभिक वर्षो में स्कूली शिक्षा को आकार देने का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह रिपोर्ट स्कूलों में बच्चों के बढ़ते नामांकन के बारे में बताती है, जो सरकारी कार्यक्रमों जैसे 'निपुण भारत मिशन' के प्रदर्शन को आंकने के लिए एक अच्छा संकेतक (Indicators) हो सकता है। एक और सकारात्मक बात है कि स्कूलों में छात्राओं की संख्या में वृद्धि। यह सरकारी कार्यक्रमों जैसे कि 'सुकन्या समृद्धि योजना' (Sukanya Samriddhi Yojana) और 'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ' (Beti Bachao Beti Padhao) की सहक्रिया और प्रभावशीलता को दर्शाता है।

यह रिपोर्ट हमें दिशा दिखाती है

अजय पीरामल ने कहा, 'सरकार की मॉनिटरिंग, फीडबैक और क्षमता निर्माण की प्रक्रिया बनी हुई है। देश में बच्चों की शिक्षा के समग्र मानकों में सुधार कर, मूलभूत साक्षरता को बढ़ाने के लिए और भी अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। यह रिपोर्ट हमें दिशा दिखाती है। यह भी एहसास दिलाती है कि शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए सरकार, कॉरपोरेट्स, नागरिक समाज और गैर सरकारी संस्था को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास को गति देने के लिए शिक्षा के क्षेत्र के सभी हितधारकों के द्वारा एक ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है।'

गणित-अंग्रेजी का कौशल परीक्षण

असर 2022 चार वर्ष के अंतराल के बाद 616 ग्रामीण जिलों में पहुंचकर देश भर में गांवों में लौटा। इस वर्ष का डाटा विशेष रूप से मूल्यवान होगा। क्योंकि, यह COVID-19 महामारी के कारण लंबे समय के बाद स्कूल खुलने पर बच्चों की पढ़ने की स्थिति के बारे में बताएगा। हमेशा की तरह, इस घरों में किए जाने वाले सर्वेक्षण में 3 से 16 आयु वर्ग के बच्चों की नामांकन की स्थिति दर्ज़ की गई तथा 5-16 आयु वर्ग के बच्चों की बुनियादी पढ़ने और गणित में जांच की गई। इस वर्ष बच्चों की अंग्रेजी के कौशल का भी परीक्षण किया गया।

इस रिपोर्ट से भविष्य की राह होगी आसान

साल 2015 को छोड़कर, 2005 से हर साल एक राष्ट्रीय 'असर' सर्वेक्षण किया गया। वर्ष 2022 में किया गया यह 'बेसिक' असर प्राथमिक स्कूल के आयु वर्ग वाले बच्चों की बुनियादी क्षमताओं पर केंद्रित है। यह 2005 से 2014 तक हर साल और फिर 2016 और 2018 में भी किया गया था। क्योंकि, सर्वेक्षण के प्रपत्र, सैम्पलिंग का तरीका और सर्वेक्षण मेथड (survey method) समय के साथ एक समान रहे हैं। इसलिए 'असर 2022' के डाटा पिछले वर्षों के असर डेटा के साथ तुलनीय है। 2018 और 2022 के बीच हुए 'लर्निंग लॉस' (learning loss) का अनुमान राज्यों तथा जिलों के लिए महत्वपूर्ण मालूम पड़ सकता है। क्योंकि, वे इस डाटा की मदद से 'लर्निंग रिकवरी' (learning recovery) और 'Catch-up' के लिए इंटरवेंशन की योजना बना सकते हैं।

असर 2022 (ग्रामीण) के मुख्य निष्कर्ष:

'असर 2022' भारत के 616 जिलों के कुल 19,060 गांवों तक पहुंचा। इस दौरान 3,74,544 घरों और 3-16 आयु वर्ग के 6,99,597 बच्चों का सर्वेक्षण किया गया।

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)

'असर 2022', उत्तर प्रदेश के 70 जिलों के कुल 2,096 गांवों तक पहुंचा। इस सर्वेक्षण में उत्तर के 41,910 घरों और 3-16 आयु वर्ग के 91,158 बच्चों को शामिल किया गया I

यूपी में नामांकन आंकड़ों में वृद्धि हुई

कुल नामांकन (आयु वर्ग 6-14) : 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए नामांकन दर पिछले 15 वर्षों से 95 प्रतिशत से ऊपर रहा है। कोरोना महामारी के दौरान स्कूल बंद रहने के बावजूद नामांकन आंकड़ों में वृद्धि हुई। ये आंकड़ा 2018 में 97.2% फीसद से बढ़कर 2022 में 98.4 प्रतिशत हो गया। इस आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों का प्रतिशत घटकर 1.6 फीसदी हो गया है। उत्तर प्रदेश में 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का नामांकन 2018 में 95.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 97.1 प्रतिशत दर्ज किया गया है। यह नामांकन दर पिछले 15 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक दर्ज की गयीI

सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि

साल 2006 से 2014 तक सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों (आयु 6 से 14) के अनुपात में लगातार गिरावट देखी गई है। 2014 में ये आंकड़ा 64.9 प्रतिशत था। अगले 4 वर्षों में इसमें ज्यादा बदलाव नहीं हुआ। हालांकि, सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों (6 से 14 वर्ष) का अनुपात 2018 में 65.6 फीसद से बढ़कर 2022 में 72.9 प्रतिशत हो गया। सरकारी स्कूलों के नामांकन में वृद्धि देश के लगभग हर राज्य में दिखाई दे रही है।

यूपी में प्राइवेट स्कूलों की तुलना में सरकारी में दाखिला बढ़ा

उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नामांकन निजी स्कूलों की तुलना में बढ़ गया है I उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में नामांकन 2018 में 44.3 % से बढ़कर 2022 में 59.6% हो गया I वहीं, निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 49.7 प्रतिशत से घटकर 2022 में 36.4 फीसदी हो गयाI

यूपी में अनामांकित लड़कियों का अनुपात गिरा

वर्ष 2006 में जहां भारत में 11-14 आयु वर्ग की 10.3 प्रतिशत लड़कियां अनामांकित थी। ये आंकड़ा अगले दशक में गिरकर 2018 में 4.1 फीसदी हो गया। ये अनुपात लगातार गिर रहा है। 2022 में, भारत में 11-14 वर्ष की 2 प्रतिशत लड़कियां अनामांकित हैं। ये आंकड़ा केवल यूपी में करीब 4 फीसदी है। अन्य सभी राज्यों में इससे कम है। उत्तर प्रदेश में 11-14 आयु वर्ग की 2006 में 11.1 फीसद लड़कियां अनामांकित थी। यह आंकड़ा 2018 में गिरकर 7.4 प्रतिशत हो गया था I वहीं, 2022 में ये आंकड़ा और गिरकर 4.1 फीसदी हो गया। यह आंकड़ा केवल उत्तर प्रदेश में लगभग 4% है। अन्य सभी राज्यों इससे कम है।

UP का दूसरा स्थान, 15-16 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा अनामांकित लड़कियां

इसी तरह 15-16 वर्ष की अनामांकित बड़ी लड़कियों के अनुपात में गिरावट और अधिक तेजी से हुआ। वर्ष 2008 में, राष्ट्रीय स्तर पर, 15-16 आयु वर्ग की 20% से अधिक लड़कियां अनामांकित थी। 10 साल बाद 2018 में ये आंकड़ा घटकर 13.5 प्रतिशत रह गया था। 15-16 साल की अनामांकित लड़कियों के अनुपात में गिरावट जारी है। 2022 में ये 7.9% रह गया। केवल 3 राज्यों में इस उम्र की अनामांकित लड़कियों का अनुपात 10% से अधिक है। ये राज्य हैं मध्य प्रदेश (17%), उत्तर प्रदेश (15%), और छत्तीसगढ़ (11.1%)। उत्तर प्रदेश में 15-16 वर्ष की अनामांकित लड़कियों प्रतिशत 2018 में 22.2% से घटकर 2022 में 15.0% हो गया है। फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर यूपी का दूसरा स्थान है, जहां सबसे ज्यादा 15-16 वर्ष की लड़किया अनामांकित है।

3-5 वर्ष आयु वर्ग में यूपी का ऐसा रहा प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश में 2018 में 19.2 % से बढ़कर 2022 में 3-5 वर्ष के 35.6% बच्चे आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित हैं। 4 वर्ष के बच्चों में, आंगनवाड़ी नामांकन 19.2% (2018) से बढ़कर 38.8% (2022) हो गया है। 5 वर्ष के बच्चों में, आंगनवाड़ी नामांकन 11.1% (2018) से बढ़कर 23.6% (2022) हो गया है I

शुल्क देकर ली गई ट्यूशन

पिछले दशक में, ग्रामीण भारत में शुल्क देकर निजी ट्यूशन लेने वाले कक्षा 1 से 8 के बच्चों के अनुपात में लगातार छोटी-छोटी वृद्धि देखी गई है। 2018 और 2022 के बीच यह अनुपात दोनों सरकारी और निजी विद्यालयों के बच्चों के लिए और बढ़ा है। राष्ट्रीय स्तर पर, कक्षा I-VIII में शुल्क देकर निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चों का अनुपात 2018 में 26.4% से बढ़कर 2022 में 30.5% हो गया है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में इस अनुपात में 2018 के बाद 8 प्रतिशत पॉइंट या उससे अधिक की वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश में कक्षा I-VIII में बच्चों के शुल्क देकर निजी ट्यूशन कक्षाएं लेने के अनुपात में लगातार वृद्धि देखी गई है I उत्तर प्रदेश में 2018 में यह आँकड़ा 15.9 % से बढ़कर 2022 में 23.7 % हो गया है I

रिपोर्ट में पढ़ने और गणित में बुनियादी क्षमताओं पर क्या?

पढ़ना: असर पढ़ने की जांच यह आकलन करती है कि क्या बच्चे अक्षर, शब्द, कक्षा I स्तर का अनुच्छेद, या कक्षा II स्तर की "कहानी" पढ़ सकते हैं या नहीं। यह जांच चयनित घरों में 5 से 16 आयु वर्ग के सभी बच्चों के साथ एक-एक करके की जाती है। प्रत्येक बच्चे को उसके उच्चतम स्तर पर चिह्नित किया जाता है जो वह आसानी से कर सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर, बच्चों की बुनियादी पढ़ने की क्षमता 2012 के पूर्व के स्तर तक गिर गई है, और बीच में धीमी गति से हो रहा सुधार उलट गया है। अधिकांश राज्यों में दोनों सरकारी और निजी विद्यालयों, और लड़कों और लड़कियों में गिरावट दिख रही है।

कक्षा III: सरकारी या निजी विद्यालय के कक्षा III के बच्चों का अनुपात जो कक्षा II स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं, 2018 में 27.3% से गिरकर 2022 में 20.5% हो गया है। यह गिरावट लगभग हर राज्य और सरकारी और निजी विद्यालय दोनों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए दिख रही है। 2018 से 10 प्रतिशत पॉइंट से अधिक की गिरावट उन राज्यों में दिख रही है जिनका 2018 में पढ़ने का स्तर उच्च था, जैसे कि केरल (2018 में 52.1% से 2022 में 38.7%), हिमाचल प्रदेश (47.7% से 28.4%), और हरियाणा (46.4% से 31.5%)। बड़ी गिरावट आंध्र प्रदेश (22.6% से 10.3%) और तेलंगाना (18.1% से 5.2%) में भी दिखाई दे रही है।

उत्तर प्रदेश में सरकारी व निजी विद्यालय के कक्षा III के बच्चों का अनुपात जो कक्षा II के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं 2018 में 28.3% से घटकर 2022 में 24.0% हो गया है I जबकि सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा 2018 में 12.3% से बढ़कर 16.4% हो गया है. जबकि निजी स्कूलों में यह आंकड़ा 2018 में 45.4 % से घटकर 2022 में 38.5% हो गया है I

कक्षा V: राष्ट्रीय स्तर पर, सरकारी या निजी स्कूलों के कक्षा V के ऐसे बच्चों का अनुपात जो कक्षा II स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं 2018 में 50.5% से गिरकर 2022 में 42.8% हो गया है। बिहार, ओडिशा, मणिपुर और झारखंड में यह आँकड़ा या तो स्थिर रहा है या इसमें मामूली सुधार हुआ हैं। 15 प्रतिशत पॉइंट या उससे अधिक की गिरावट आंध्र प्रदेश (2018 में 59.7% से 2022 में 36.3%), गुजरात (53.8% से 34.2%), और हिमाचल प्रदेश (76.9% से 61.3%) में दिख रही है। 10 प्रतिशत पॉइंट से अधिक की गिरावट उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हुई हैं।

उत्तर प्रदेश में, सरकारी व निजी स्कूलों में कक्षा V में नामांकित बच्चों का अनुपात जो कक्षा II स्तर का पाठ कर सकते हैं। वर्ष 2018 में 52.4% से घटकर 2022 में 46.3% हो गया है I सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा 2018 में 36.2% से बढ़कर 2022 में 38.3% हो गया है, जबकि निजी स्कूलों में नामांकित बच्चों का यह अनुपात जो कक्षा II स्तर का पाठ कर सकते हैं 2018 में 68.8% से घटकर 2022 में 63.3% हो गया है I

कक्षा VIII: हालांकि, कक्षा VIII के छात्रों में भी बुनियादी पढ़ने की क्षमता में गिरावट हुई है, यह कक्षा III और कक्षा V में दिख रही गिरावट की तुलना में कम है। राष्ट्रीय स्तर पर, 2022 में सरकारी या निजी स्कूलों में कक्षा VIII में नामांकित 69.6% बच्चे यह पाठ पढ़ सकते हैं, जोकि 2018 में 72.8% थे।

उत्तर प्रदेश में, सरकारी व निजी स्कूलों में कक्षा VIII में नामांकित बच्चों का अनुपात जो कक्षा II के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं, 2018 में 73.7% से घटकर 2022 में 70.6% हो गया है I सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा 2022 में थोड़ा बढ़कर 62% से 62.6% हो गया है, जबकि निजी स्कूलों में नामांकित बच्चों का यह अनुपात जो कक्षा II स्तर का पाठ कर सकते हैं 2018 में 85%से घटकर 2022 में 82.8 % हो गया है I

गणित: असर गणित की जाँच यह आकलन करती है कि क्या बच्चे 1से 9 तक अंक पहचान, 11से 99 तक संख्या पहचान, 2-अंक वाले घटाव (हासिल वाले), या भाग के सवाल (3-अंक का 1-अंक से) कर सकते है या नहीं। यह कार्य चयनित घरों में 5 से 16 आयु वर्ग के सभी बच्चों के साथ एक-एक करके की जाती है और प्रत्येक बच्चे को उसके उच्चतम स्तर पर चिह्नित किया जाता है जो वह आसानी से कर सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर, बच्चों के बुनियादी गणित स्तर में अधिकांश कक्षाओं के लिए 2018 के स्तर की तुलना में गिरावट आई है। लेकिन बुनियादी पढ़ने की तुलना में यह गिरावट कम तीव्र और ज़्यादा विविध है।

कक्षा III: कक्षा III के उन बच्चों का अनुपात जो कम से कम घटाव कर सकते हैं, भारत में 2018 में 28.2% से गिरकर 2022 में 25.9% हो गया है। हालाँकि जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में यह आँकड़ा लगभग स्थिर रहा है या थोडा सुधरा है, तमिलनाडु (2018 में 25.9% से 2022 में 11.2%), मिज़ोरम (58.8% से 42%), और हरियाणा (53.9% से 41.8%) में 10 प्रतिशत पॉइंट से अधिक भारी गिरावट हुई है।

उत्तर प्रदेश में कक्षा III के सरकारी व निजी स्कूलों में उन बच्चों का अनुपात जो कम से कम घटाव कर सकते हैं, उत्तर प्रदेश में 2018 में 26.6% से बढ़कर 2022 में 28.7% हो गया है I जो राष्ट्रीय स्तर से थोडा आधिक है और अधिकांश पडोसी राज्यों से बेहतर है I फिर भी हरियाणा, पंजाब और हिमाचल जैसे उच्चतम प्रदर्शन करने राज्यों से अभी भी बहुत पीछे है I उत्तर प्रदेश में यह बदलाव दोनों प्रकार के स्कूलों में दिखाई दे रहा है I सरकारी स्कूलों में 2018 में यह आँकड़ा 11.2% से बढ़कर 2022 में 19.7% हो गया है जबकि निजी स्कूली में 2018 में 43.7% से बढ़कर 2022 में 46.8 % हो गया है I

कक्षा V: भाग कर पाने वाले कक्षा V के बच्चों का अनुपात भारत में थोड़ा कम हुआ है – यह 2018 में 27.9% से 2022 में 25.6% हो गया है। हालाँकि बिहार, झारखंड, मेघालय और सिक्किम में 2018 के स्तर की तुलना में मामूली सुधार दिखा, अन्य राज्य जैसे मिज़ोरम (40.2% से 2018 से 2022 में 20.9%), हिमाचल प्रदेश (56.6% से 42.6%), और पंजाब (52.9% से 41.1%) में 10 प्रतिशत पॉइंट से अधिक की भारी गिरावट हुई है।

उत्तर प्रदेश के कक्षा V के सरकारी व निजी स्कूल के बच्चों का अनुपात जो भाग का सवाल हल कर सकते है 2018 में 29.7% से बढ़कर 2022 में 31.6% हो गया है I यह बदलाव दोनों प्रकार के स्कूलों में दिख रहा है I सरकारी स्कूलों में यह आँकड़ा 2018 में 17.0% से बढ़कर 2022 में 24.5% हो गया है I जबकि निजी स्कूलों में आकडा 2018 में 42.9 % से बढ़कर 2022 में 46.8% हो गया है I

कक्षा VIII: बुनियादी गणित में कक्षा VIII का प्रदर्शन थोडा अलग है। राष्ट्रीय स्तर पर, भाग का सवाल हल कर पाने वाले बच्चों का अनुपात 2018 में 44.1% से थोडा सा बढ़कर 2022 में 44.7% हो गया है। यह वृद्धि लड़कियों और सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों के बेहतर अधिगम स्तरों के कारण है, जबकि लड़कों और निजी स्कूलों में नामांकित बच्चों के 2018 के स्तर में गिरावट आई है। कक्षा VIII में सरकारी स्कूलों के बच्चों ने उत्तर प्रदेश (32% से 41.8%) और छत्तीसगढ़ (28% से 38.6%) में 2018 की तुलना में 2022 में उल्लेखनीय रूप से बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन पंजाब में यह आंकड़ा काफ़ी गिर गया है (58.4% से 44.5%)।

उत्तर प्रदेश के कक्षा VIII के सरकारी व निजी स्कूल के बच्चों का अनुपात जो भाग का सवाल हल कर सकते है 2018 में 44.4% से बढ़कर 2022 में 49.4% हो गया I यह बदलाव दोनों प्रकार के स्कूलों में दिख रहा है I सरकारी स्कूलों में यह आँकड़ा 2018 में 32.0% से बढ़कर 2022 में 41.8% हो गया है I जबकि निजी स्कूलों में आकडा 2018 में 56.5 % से बढ़कर 2022 में 60.9% हो गया है I निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूलों में ज्यादा बढ़ोत्तरी देखी गयी है I

अंग्रेजी: असर अंग्रेजी की जाँच यह आकलन करती है कि क्या बच्चे अंग्रेजी में बड़े अक्षर, छोटे अक्षर, सरल 3-अक्षरों वाले शब्द, और छोटे आसान वाक्य पढ़ सकते हैं या नहीं। यह कार्य चयनित घरों में 5 से 16 आयु वर्ग के सभी बच्चों के साथ एक-एक करके की जाती है और प्रत्येक बच्चे को उसके उच्चतम स्तर पर चिह्नित किया जाता है जो वह आसानी से पढ़ सकता है। शब्द या वाक्य स्तर के बच्चों की अंग्रेजी की समझ का आकलन करने के लिए उनसे अर्थ भी पूछा जाता है।

असर ने आखिरी बार 2016 में बच्चों की अंग्रेजी की क्षमता का आकलन किया था। राष्ट्रीय स्तर पर, 2022 में बच्चों की सरल अंग्रेजी पढ़ने की क्षमता कक्षा V के बच्चों में 2016 के समान है (2016 में 24.7% से 2022 में 24.5%), और कक्षा VIII के बच्चों में थोड़ा सुधार हुआ हैं (2016 में 45.3% से 2022 में 46.7%)। 2022 में कक्षा III के उन बच्चों में से जो अंग्रेजी शब्द पढ़ सकते हैं लेकिन वाक्य नहीं, लगभग आधे बच्चे पढ़े गए शब्दों का अर्थ बता सकते हैं (55.3%)। जो बच्चे वाक्य पढ़ सकते हैं, उनमें अंग्रेजी समझने की क्षमता बड़ी कक्षाओं में बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, कक्षा III के उन बच्चों में से जो वाक्य पढ़ सकते हैं, 55.3% वाक्यों के अर्थ बताने में सक्षम थे, जबकि कक्षा VIII के लिए यह आँकड़ा 68.5% हैं।

उत्तर प्रदेश में भी कक्षा V में बच्चों की सरल अंग्रेजी वाक्य पढ़ने में सुधार दिखाई दे रहा है I आंकड़ा 2016 में 18.4% से बढ़कर 2022 में 24.1% हो गया है। यह आँकड़ा राष्ट्रीय औसत के लगभग बराबर है I कक्षा V के जो बच्चे सरल अंग्रेजी वाक्य पढ़ सकते है उनमे से आधे बच्चे (50.5%) उसका अर्थ भी बता सकते है I

विद्यालय अवलोकन

असर सर्वेक्षण में प्रत्येक चयनित गाँव में प्राथमिक कक्षाओं वाले एक सरकारी विद्यालय का अवलोकन किया जाता है। यदि गाँव में कोई सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय (कक्षा I-VII/VIII) है तो उसे प्राथमिकता दी जाती है। 2022 में असर सर्वेक्षकों ने प्राथमिक कक्षाओं वाले 17,002 सरकारी विद्यालयों का अवलोकन किया जिनमें से 9,577 प्राथमिक विद्यालय थे और 7,425 उच्च प्राथमिक विद्यालय थे।

उत्तर प्रदेश के सर्वेक्षकों द्वारा असर 2022 में प्राथमिक कक्षाओं वाले 2,028 सरकारी विद्यालयों का अवलोकन किया गया जिनमे 1,355 प्राथमिक विद्यालय तथा 673 उच्च प्राथमिक विद्यालय शामिल है I

● कम नामांकन वाले विद्यालय और मिश्रित कक्षाएँ (मल्टीग्रेड क्लासरूम): 60 से कम छात्रों वाले सरकारी स्कूलों का अनुपात पिछले दशक में हर साल बढ़ा है। प्राथमिक विद्यालयों में राष्ट्रीय स्तर पर, यह आँकड़ा 2010 में 27.3% था, 2014 में 36%, 2018 में 43.3%, और 2022 में 44.1% हो गया है। 2022 में हिमाचल प्रदेश (81.9%) और उत्तराखंड (74.4%) में 60 से कम छात्रों वाले सरकारी स्कूल पुरे राष्ट्र में सबसे ज़्यादा हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश (2018 में 12.4% से 2022 में 11.4%) और केरल (2018 में 37.2 % से 2022 में 28.7%) जैसे कुछ राज्यों में इन स्कूलों की संख्या कम हुई हैं।

● कक्षा II और कक्षा IV के मिश्रित क्लासरूम का अनुपात भी पिछले एक दशक में लगातार वृद्धि दर्शाता है। उदाहरण के लिए, 2010 में 54.8% विद्यालयों में, 2014 में 61.6%, 2018 में 62.4%, और 2022 में 65.5% विद्यालयों में कक्षा II के बच्चे एक या अधिक अन्य कक्षाओं के साथ बैठे थे। 2018 की तुलना में बढ़ोतरी गुजरात (2018 में 50.9% से 2022 में 69.3%) और छत्तीसगढ़ (2018 में 71.3% से 2022 में 79.5) में दिख रही है। उत्तर प्रदेश में कक्षा II और कक्षा IV के मिश्रित क्लासरूम का अनुपात भी कम हुआ है I 2018 में 63.8 % से घटकर 2022 में 60.6 % प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा II के बच्चे एक या अधिक अन्य कक्षाओं के साथ बैठे पाए गए I जबकि कक्षा IV में यह आँकड़ा 2018 में 60.4 %प्राथमिक विद्यालय से घटकर 2022 में 56.6% हो गया है

● शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति: राज्य स्तर पर छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है। औसत शिक्षक उपस्थिति 2018 में 85.4% से थोड़ी बढ़कर 2022 में 87.1% हो गई है। छात्रों की औसत उपस्थिति पिछले कई वर्षों से लगभग 72% के आस-पास रही है। उत्तर प्रदेश में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में छात्रों की उपस्थिति पिछले एक दशक से 60% से कम रही है I यह एक एक चिंता का विषय है I 2018 की तुलना में 2022 में उपस्थिति में कमी दर्ज की गयी है।

विद्यालय में सुविधाएं

● राष्ट्रीय स्तर पर, शिक्षा के अधिकार अधिनियम से संबंधित सभी संकेतकों में 2018 की तुलना में छोटे सुधार दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रयोग करने योग्य लड़कियों के शौचालय वाले स्कूलों का अनुपात 2018 में 66.4% से बढ़कर 2022 में 68.4% हो गया है। उपलब्ध पेयजल वाले स्कूलों का अनुपात 74.8% से बढ़कर 76% हो गया है, और छात्रों द्वारा उपयोग की जा रही पुस्तकों (पाठ्यपुस्तकों के अलावा) का अनुपात 36.9% से बढ़कर 44% हो गया है।

● हालांकि, राष्ट्रीय औसत आँकड़े राज्यों में भिन्नताओं को छुपा देते हैं। उदाहरण के लिए, पीने के पानी की उपलब्धता वाले स्कूलों का अनुपात आंध्र प्रदेश में 2018 में 58.1% से बढ़कर 65.6%, और पंजाब में 2018 में 82.7% से बढ़कर 92.7% हो गया है। इसी अवधि में, पीने के पानी की उपलब्धता गुजरात में 88% से घटकर 71.8% हो गई है, और कर्नाटक में 76.8% से 67.8% हो गई है।

● अधिकांश खेल-संबंधी संकेतक भी 2018 में देखे गए स्तरों के करीब बने हुए हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में, 68.9% स्कूलों में खेल का मैदान है, जो 2018 में 66.5% से थोड़ा बढ़ा है।

● उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा के अधिकार अधिनियम से संबंधित सभी संकेतकों में 2018 की तुलना में सुधार दिखाई दे रहे है I उदाहरण के लिए, लड़कियों के प्रयोग करने योग्य शौचालय वाले स्कूलों का अनुपात 2018 में 67.2% से बढ़कर 2022 में 78.0% हो गया है एवं छात्रों द्वारा उपयोग की जा रही पुस्तकालय की पुस्तकों (पाठ्यपुस्तकों के अलावा) का अनुपात 2018 में 35.7% से बढ़कर 2018 में 67.5% हो गया है I बिजली कनेक्शन वाले विद्यालयों का अनुपात 2018 में 66.5% से बढ़कर 2022 में 94.8% हो गया है।

अन्य विद्यालयी संकेतक

● अधिकांश बच्चों को वर्तमान शैक्षणिक वर्ष की पाठ्यपुस्तकें मिल गई थी। 90.1% प्राथमिक विद्यालयों में और 84.4% उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सभी कक्षाओं को पाठ्यपुस्तकें वितरित की गई थी।

● सभी प्राथमिक विद्यालयों में से लगभग 80% को अपने छात्रों के साथ बुनियादी साक्षरता व संख्याज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy / FLN) संबंधित गतिविधियों को लागू करने का सरकारी निर्देश प्राप्त हुआ था, और लगभग उतने ही विद्यालयों में कम से कम 1 शिक्षक को बुनियादी साक्षरता व संख्याज्ञान पर प्रशिक्षण मिला।

● उत्तर प्रदेश में वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए पाठ्यपुस्तकें 68.8% प्राथमिक विद्यालयों और 64.6% उच्च प्राथमिक विद्यालयों के सभी कक्षाओं को मिल गई थी I

● सभी प्राथमिक विद्यालयों में से लगभग 92.5%% को अपने छात्रों के साथ बुनियादी साक्षरता व संख्याज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy / FLN) संबंधित गतिविधियों को लागू करने का सरकारी निर्देश प्राप्त हुआ था, और लगभग उतने ही विद्यालयों में कम से कम 1 शिक्षक को बुनियादी साक्षरता व संख्याज्ञान पर प्रशिक्षण मिला।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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