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सहारनपुर के इस योगाचार्य को अटल ने दी थी प्रत्यक्ष मनु की संज्ञा, आज भी ताजा हैं यादें

sudhanshu
Published on: 16 Aug 2018 6:37 PM IST
सहारनपुर के इस योगाचार्य को अटल ने दी थी प्रत्यक्ष मनु की संज्ञा, आज भी ताजा हैं यादें
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सहारनपुर: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस दुनिया को विदा कह चले गए। अब केवल उनकी यादें ही बाकी रह गई है। एक ऐसी ही याद सहारनपुर से जुड़ी है। यहां पर वह पदमश्री योग गुरू भारत भूषण के यहां आते थे। बकौल योगी भारत भूषण, मैं विवेकानंद व बाजपेयी जी के व्यक्तित्त्व से प्रभावित रहा, लेकिन वाजपेयी जी को तो मैंने खूब सुना। जब जब उनसे मिला उनके करिश्माई व्‍यक्तित्त्व के प्रत्यक्ष सान्निध्य देश प्रेम, साहस, संकल्प और प्रखर चिंतन ने मुझे नई ऊर्जा दी। हालांकि अटल बिहारी बाजपेयी ने जब "हिमालय श्री" खिताब जीतने पर शिमला के रिज पर मेरा शरीर सौष्ठव प्रदर्शन देखा तो भाव विभोर हो कर मंचपर आकर मुझ से चिपट गए और अपने संबोधन में मुझे प्रत्यक्ष मनु की संज्ञा दी लेकिन सच्चाई ये है कि वह आलिंगन हमारा स्थाई रिश्ता बन गया।

हर चुनौती से मजबूत होते गए अटल

योग गुरु भारत भूषण बताते हैं कि उनके 6 रायसीना रोड़ स्थित आवास पर मेरा आवागमन उन्हें ऊर्जा देता था उनकी वैचारिक परिपक्वता और वैश्विक राजनीति के अध्ययन पर उनकी पकड़ किसी को भी प्रभावित कर लेती थी। बकौल भारत भूषण, मैं प्रायः अपनी चिट्ठी पर उनका एड्रेस लिखता हुए उनके नाम के साथ संसदसदस्य न लिख कर भावी प्रधानमंत्री ही लिखता था। उनदिनों मोबाइल फोन् का चलन नहीं था लेकिन उनकी सहजता का आलम ये था कि मेरा लैंड लाइन फोन् भी वो स्वयं ही उठा लेते थे। पहली बार 13 दिन का प्रधानमंत्री बनने के बाद 21 वोट से सरकार गिर जाने पर उन्हें राजनीतिक चरित्र पर दःख तो हुआ लेकिन उसी चुनोती से वो और अधिक मजबूत हुए और अपनी निजता में लिखी मेरी कविता की इन पंक्तियों ने कवि दार्शनिक राजनीतिज्ञ अटल जी को खूब छुआ:

"अटल मत होना कभी निराश

बड़ा ही विस्तृत ये आकाश!

उडो तुम मन मे लिए तरंग

लगा कर सत्साहस के पंख

चरण चूमेगा तवः उत्कर्ष

गति मत होने देना मन्द।

कल्मष बचे न् कोई शेष

विपद सब हो जाएं निःशेष

उजाले से भारत सरसाय

अंधेरा हो जाय निरुपाय।"

जीवन भर चुनोतियों से जूझने वाले बाजपेयी हर विषमतमता पर पार पा गए लेकिन मौत के संग लड़ाई में 9 बरस मौत से जूझने के बावजूद आखिर हार ही गए। इसअपराजेय योद्धा से मिले आलिंगन को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। उन्हें मेरा श्रद्धानत नमन्।

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