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अटल गाथा: कॉलेज के दिनों में ऐसी थी ‘वाजपेयी’ के लिए दीवानगी

Aditya Mishra
Published on: 16 Aug 2018 12:11 PM GMT
अटल गाथा: कॉलेज के दिनों में ऐसी थी ‘वाजपेयी’ के लिए दीवानगी
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लखनऊ: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज निधन हो गया। वे 93 साल के थे। दुनिया भर में उनकी पहचान एक जाने-माने कवि, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक के तौर पर होती है। उनके निधन से देश में शोक की लहर है। अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के मौके पर newstrack.com आज आपको उनके जीवन और उससे जुड़ी कुछ खास स्मृतियों के बारे में बता रहा है।

लड़कों से ज्यादा लडकियों में थे लोकप्रिय

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए कॉलेज के दिनों में लड़के और लड़कियां दीवाने थे। ये उन दिनों की बात है जब जाने-माने कवि, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक अटल जी कानपुर के डीएवी कॉलेज में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर रहे थे। कॉलेज के दिनों का एक रोचक किस्सा सुनाते हुए उनके दोस्तों ने एक चौंकाने वाली बात भी बताई है। पूर्व प्रधानमंत्री के दोस्तों का कहना है कि उनकी कविताओं और आवाज के लोग दीवाने थे। पार्क खड़े होकर जब अटल जी अपनी कवितायें सुनाने लगते थे तो मेला लग जाता था। लडकों से ज्यादा लडकियां अटल जी कविताओं की आवाज की दीवानी थी।

ग्वालियर में हुआ था जन्म

मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर, 1924 को इनका जन्म हुआ। पुत्रप्राप्ति से हर्षित पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी को तब शायद ही अनुमान रहा होगा कि आगे चलकर उनका यह नन्हा बालक सारे देश और सारी दुनिया में नाम रौशन करेगा। वाजपेयी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक है और 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रहे थे।

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कानपुर में ग्रहण की शिक्षा

वाजपेयी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (जो अब लक्ष्मीबाई कॉलेज कहलाता है) और कानपुर (यूपी) के दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज (डीएवी) में शिक्षा ग्रहण की और राजनीति विज्ञान में एम. ए.की उपाधि प्राप्त की। सन 1993 मे कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा दर्शन शास्त्र में पी.एच डी की मानद उपाधि से सम्मानित किए गए। वाजपेयी की पढ़ाई-लिखाई कानपुर में हुई।

एलएलबी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर राजनीति में उतरे

वह अपने कॉलेज के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। कानपुर में ही एलएलबी की पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर वाजपेयी राजनीति में पूरी तरह से सक्रीय हो गए। राजनीति में उनका पहला कदम अगस्त 1942 में रखा गया, जब उन्हें और बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिन के लिए गिरफ्तार किया गया।

लोकसभा के पहले चुनाव में किया हार का सामना

1951 में वाजपेयी भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे।

मोरारजी देसाई की सरकार में बने विदेश मंत्री

1957 से 1977 तक (जनता पार्टी की स्थापना तक) जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1968 से 1973 तक वे भारतीय जनसंघ के राष्टीय अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। 1977 में पहली बार वाजपेयी गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बने. मोरारजी देसाई की सरकार में वह 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।

जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर की बीजेपी की स्थापना

1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे. दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए।

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बहुमत साबित न कर पाने पर छोड़ना पड़ा पीएम का पद

16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।

इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी।

राजनीतिज्ञ होने के एक कवि के रूप में विख्यात

अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी हैं. ‘मेरी इक्यावन कविताएँ’ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वाजपेयी ने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर-अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया।

अमेरिका और चीन के नाराजगी के बावजूद उठाये ये कड़े कदम

परमाणु शक्ति सम्पन्न देश अमेरिका और चीन की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये। 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया। अटल बिहारी वाजपेयी 1992 में पद्म विभूषण सम्मान, 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 1994 में श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार और 1994 में ही गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं।

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