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बंद बूचड़खानों से छिना रोजगार, इलाके में लौटी रौनक- खुली किताबें,आमों में आऐंगे बौर

अमरोहा का बछरायूँ क़स्बा एक समय गुलज़ार रहता था जब आज से लगभग डेढ़ साल पहले A Q फ्रोजेन प्राइवेट लिमिटेड अपने पूरे शबाब पर थी और 700 से ज्यादा लोगों के परिवारों का भरण पोषण करती थी।

Anoop Ojha
Published on: 7 Dec 2018 5:51 PM IST
बंद बूचड़खानों से छिना रोजगार, इलाके में लौटी रौनक- खुली किताबें,आमों में आऐंगे बौर
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रजत राय

अमरोहा: अमरोहा का बछरायूँ क़स्बा एक समय गुलज़ार रहता था जब आज से लगभग डेढ़ साल पहले A Q फ्रोजेन प्राइवेट लिमिटेड अपने पूरे शबाब पर थी और 700 से ज्यादा लोगों के परिवारों का भरण पोषण करती थी।

मुस्लिम बाहुल्य इस कस्बे के कुछ 600 लोगों (जो AQ फ्रोजेन प्राइवेट लिमिटेड में काम करते थे) के लिए मार्च 2017 एक काला अधयाय की तरह साबित हुआ जब भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जैसा की भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था, कुछ ही दिनों के अन्दर उसने अवैध बूचड़खानों पर चाबुक चलाना शुरू किया और AQ फ्रोज़ेन प्राइवेट लिमिटेड पर ताला पड़ गया।

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एक झटके में न सिर्फ बूचड़खानों के कामगार बेरोजगार हो गई बल्की उस कारखाने के आस पास की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो गई। कारखाने के आस पास चाय, पान, सब्जी और ऐसी अन्य करीब 100 दुकाने थी जिनके ग्राहक इस कारखाने के मजदूर थे। कारखाने पर ताला पड़ते ही इन दुकानों पर ग्राहकों का टोंटा पड़ गया और ये धीरे धीरे बंद हो गईं।

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50 वर्षीय अनीस जो उस कारखाने में काम करते थे और परिवार चलाने के लिए अब रिक्शा खींचते हैं, बताते है ''मैं वहाँ तबसे काम कर रहा था जब वो शुरू हुई थी और धीरे धीरे मैं खाल उतरने के काम में महारत हासिल कर ली थी। मुझे महीने के 600 रुपये मिलते थे और मेरी और मेरी पत्नी का आराम से गुजर बसर हो जाता था। मेरे तीन बेटे मेरठ में काम करते हैं और वहीं रहते हैं। उनका अपना परिवार है और खर्चे हैं। मैंने बहुत काम की तलाश की, फिर हारकर रिक्शा चला शुरू किया। क्योंकि बछरायूँ छोटा क़स्बा है, यहाँ बमुश्किल मैं 100 50 रूपए ही कम पता हूँ रोज़ के और हमारी जिंदगी किसी तरह चल रही है।मेरी पत्नी ने मेरा हाथ बंटाने के लिये घर के बाहर ही एक खाट बिछा कर गुटका सिगरेट बेंचती है''।

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कारखाने में काफी संख्या में कश्मीर के कारीगर थे जो वापस चले गए और मेरे जैसे यहाँ के लोग अब मेरे जैसे ही छोटा मोटा मजदूरी का काम कर के गुजर बसर कर रहे हैं। अनीस की तरह मैकू अब एक आरा मशीन पर मजदूरी करता है।और 3500 महीने कमाता है। इनके जैसे अन्य अब अमरोहा औरा पास के जिले में मजदूरी कर के जीवन यापन करते हैं।

AQ फ्रोजेन प्राइवेट लिमिटेड बसपा के एक पूर्व एम.एल.ए. और कद्दावर नेता फरहत हसन की थी और सन 2009 में मायावती की सरकार में नियमों को ताख पर रख कर स्थापित हुई थी। हालाँकि 2012 में अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये कुछ महीनों के लिए बंद हुई थी, लेकिन कुछ गुणा गणित करने के बाद फिर चालू हो गई थी।

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कारखाने की तालाबंदी लिए इलाके के लिए वरदान सावित हुयी

हालांकि कारखाने की तालाबंदी इलाके के कई तबकों के लिए एक वरदान भी सावित हुई। कारखाने के आप पास के किसानों की फसल लगभग चौपट हो गई थी और तमाम धरना प्रदर्शन के बाद भी उनकी समस्याओं का कोई हल निकलता देख उन्होंने उन ज़मीनों पर खेती करना बंद कर दिया था। कारखाने के आस पास के आम के बागों में भी फल लगना बंद हो गई थे और इलाके के किसानों में मायूसी थी।

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खेतों की मिटटी अब ठीक होना शुरू हो गई है

सुरेश पाल सिंह जो इलाके के एक बड़े किसान हैं, बताते हैं ''कारखाने का गंदा और केमिकल युक्त पानी सीधे हमारे खेतों में गिरता था जिससे हमारी जमीने लगभग बंज़र हो चुकी थी। कारखाने की चिमनियों से निकलते जहरीले धुंए से हमारे आम के पेड़ों पर बौर लगना बंद हो गए थे और शाशन और प्रशाशन में हमारी कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी'' ।

हालाँकि अब इलाके के किसान योगी जी की तारीफ़ करते नहीं थकते और सरकार के इस कड़े कदम की खुले दिल से तारीफ़ करते हैं।

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''धीरे धीरे ही सही, हमारे खेतों की मिटटी अब ठीक होना शुरू हो गई है और सब ठीक रहा तो इस बार हम इन पर फसल बोएँगे। आम के पेड़ों की भी सूरत देख के लगता है कि इस बार इन पर फल लगेगें'', सुरेश पाल कहते हैं।

इलाके के एक मात्र मिडिल स्कूल में भी अब धीरे धीरे रौनक लौटने लगी है।

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हवा बेहद बदबूदार थी

''मेरा ट्रान्सफर इस स्कूल में सन 2013 में हुआ था और पहले ही दिन से मैं अल्लाह से सवाल करती थी कि मुझे यहाँ भेज कर वो मुझे किन गुनाहों की सजा दे रहा है। यहाँ की हवा बेहद बदबूदार थी और आखों में जलन के साथ साथ सांस लेने भी में भी तकलीफ रहती थी। टीचरों के साथ साथ बच्चों को भी हमेशा जी मिचलाने और उल्टी जैसी शिकायत हमेशा रहती थी और इन समस्याओं का जैसे कोई इलग नहीं था'', फातिमा शेख जो इस स्कूल की टीचर हैं, उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं।

यहाँ का पीने का पानी भी बदबूदार और लाल रंग का होता था और पीने योग्य नहीं था। बच्चों की संख्या भी लगातार गिरती जा रही थी और एक समय तो यहाँ बमुश्किल 30 – 40 बच्चे हे बचे थे।

हालांकि फैक्ट्री बंद होने के बाद यहाँ की आबोहवा धीरे धीरे बेहतर होने लगी और बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी है। ''आज स्कूल में लगभग 300 बच्चे हैं और नए एडमिशन के साथ साथ पुराने बच्चे भी लौटने लगे हैं. हमने स्कूल में बड़े बड़े घड़ों मे पीने के पानी का भी इंतज़ाम किया है और किसी बच्चे की तबियत बिगड़ने की सूरत में स्कूल के बगल में क्लिनिक चलने वाले एक डॉक्टर साहब से भी बात कर के रखी है और वो जरूरत पड़ने पर उन्होंने मुफ्त में इलाज करने का भरोसा भी दिया है'', शेख कहती हैं।

मैंने स्कूल छोड़ दिया था

पांचवी के छात्र फैजान कहता है कि ''स्कूल में आँखों में जलन और उल्टी होने के कारण मैंने स्कूल छोड़ दिया था और क्यूंकि दूसरा स्कूल बहुत दूर था, मैं घर पर ही बैठ गया।. कुछ महीने पहले मैंने फिर स्कूल आना शुरू किया और अब यहाँ का माहौल बिलकुल ठीक है'', ।

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प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2015 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 129 ऐसी इकाईयाँ हैं जिन्होंने प्रदुषण नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है और इनमे 44 बूचड़खानें हैं।

हालाँकि प्रदेश सरकार के पास अवैध बूचडखानों का कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है, 2017 में प्रदेश में लगभग 140 बुचडखाने और तकरीबन 50,000 मीट की दुकाने अवैध रूप से संचालित हो रही थी।

2017 में 100 से ज्यादा अवैध बुचडखानों और सैकड़ों अवैध मीट की दुकानों को चिन्हित कर के बंद करवाया था।



Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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