UP Election 2022: समाज वादियों का गढ़ रहा बाराबंकी, अब पार्टी में गुटबाजी का केंद्र बना

सपा सुप्रीमो अखिलेश को भी बाराबंकी जिले की अहमियत का अहसास है। तभी तो पिछले दिनों पंचायत चुनाव से पहले बेनी प्रसाद वर्मा की मूर्ति का अनावरण करने आए पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने बयान में साफ संकेत भी दिए थे।

Sarfaraz Warsi
Report Sarfaraz WarsiPublished By Vidushi Mishra
Published on: 21 Jan 2022 5:24 AM GMT
samajwadi party Akhilesh Yadav Mainpuri assembly seat
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samajwadi party Akhilesh Yadav Mainpuri assembly seat 

UP Election 2022: अवध में समाज वादियों का एक गढ़ माना जाता है बाराबंकी,अब पार्टी में गुटबाजी के लिए जाना जाता है जिला,गुटबाजी के चलते यहां सपा खो रही जनाधार समाज वादियों का गढ़ रहा बाराबंकी जिला अब पार्टी में गुटबाजी के लिए जाना जाता है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जो परिणाम आए थे उससे बाराबंकी में पार्टी के खोते जनाधार के पीछे गुटबाजी ही प्रमुख कारण मानी जा रही है।

सपा सुप्रीमो अखिलेश को भी बाराबंकी जिले की अहमियत का अहसास है। तभी तो पिछले दिनों पंचायत चुनाव से पहले बेनी प्रसाद वर्मा की मूर्ति का अनावरण करने आए पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने बयान में साफ संकेत भी दिए थे। कि हम जब-जब बाराबंकी जीते हैं तब-तब हमारी प्रदेश में सरकार बनी है। सभी लोग बेनीबाबू और नेताजी के नाम पर एक होकर चुनाव लड़ें तो सरकार बनने से कोई रोक नही पाएगा।

सपा का एक गढ़ बाराबंकी

लेकिन पंचायत चुनाव में इसका ठीक विपरीत असर देखने को मिला। डीडीसी की अधिकांश सीटों पर बागी मैदान में उतरे और नतीजा यह रहा कि 57 सीटों में से 12 पर ही संतोष करना पड़ा। अब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां पूरा दमखम लगाकर चुनाव में जुटी हैं। अगर सपा पार्टी नेतृत्व जिले की पगुटबाजी पर समय रहते अंकुश नही लगा पाया तो विधानसभा चुनाव में अपने गढ़ को वापस लाना पार्टी के लिए आसान नही होगा।

-बाराबंकी जिले में चुनाव हो या फिर नेताओं के कद की बात तो अवध में सपा का एक गढ़ बाराबंकी भी माना जाता रहा है। स्व.बेनी प्रसाद वर्मा से लेकर अरविंद कुमार सिंह गोप की पकड़ पूरे जिले में थी। एक समय था जब जिले में तीन-तीन मंत्री हुआ करते थे। बेनी बाबू के इशारे पर ब्लॉक प्रमुख, जिला पंचायत तो क्या एमएलसी के चुुनाव में भी कोई दल मैदान में उतरने का साहस नही जुटा पाता था। वर्ष 2012 विधानसभा चुनावों में जिले की सभी सीटें सपा की झोली में थीं पर 2017 में सिर्फ एक विधायक चुनाव जीत सका था।

पार्टी बंटवारे से लेकर चुनाव तक आपस की गुटबाजी चरम पर थी। यह पहला पंचायत चुनाव था जो कि बेनी बाबू के न रहने पर लड़ा गया। जिसमें भाजपा का जिला पंचायत अध्यक्ष बना और 12 सदस्य जीतने वाली पार्टी को मात्र आठ वोट मिले। सपा से चार बार सांसद व तीन बार विधायक रहे रामसागर रावत भी गुटबाजी का आरोप लगा चुके हैं।

पंचायत चुनाव में पार्टी सदस्यों की हार पर उन्होंने कहा था कि हम लड़ते तो चुनाव जीत जाते। उन्होंने इसके लिए पार्टी नेताओं को दोषी करार दिया। यह कोई पहली बार नहीं था यह पहले भी कई नेताओं पर खुलेआम आरोप लगा चुके हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद इन्होंने हार को गुटबाजी का करार दिया था।

पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में चार तो पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चले गए। इससे भी सीख न लेकर पार्टी ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भी नहीं सुधरी। पहले प्रत्याशियों का नाम घोषित किया फिर विरोध के कारण सूची रोक दी और फिर घोषित हुई तो दस सीटों पर ही प्रत्याशी उतरे।

ऐसे में उसे चार सीटें ही मिली थी। उनमें पार्टी नेताओं से ज्यादा पारिवारिक बैंकग्राउंड मजबूत होने के कारण ही वे जीत सके। पंचायत चुनाव में देखने को मिला है कि कुर्सी पाने के लिए कई नेताओं के परिवारों में तोड़फोड़ की नौबत आई। पर बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद मामला टल गया था।

अभी भी पार्टी के दिग्गज नेता से लेकर उनके सिपहसालार तक के बीच गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही। यही नही विपक्षी दलों से ज्यादा दल के नेताओं का कद कैसे घटाया जाए, इस पर ज्यादा जोर आजमाइश चल रही है। ऐसे माहौल में 2022 का चुनाव पार्टी के लिए बहुत आसान नही होगा।

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Vidushi Mishra

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