Barabanki: जैदपुर विधानसभा हथकरघा उद्योग का हब, यहां बनते हैं इंटरनेशनल स्टाइल के स्टोल, फिर भी नहीं सुधरे बुनकरों के हालात

Barabanki News: बाराबंकी की जैदपुर विधानसभा क्षेत्र में बुनकरों की आबादी करीब 80 फीसदी है।

Sarfaraz Warsi
Report Sarfaraz WarsiPublished By Deepak Kumar
Published on: 9 Feb 2022 9:26 AM GMT
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Barabanki News: जैदपुर विधानसभा हथकरघा उद्योग का हब

Barabanki News: बाराबंकी (Barabanki District) की जिस विधानसभा का नाम जैदपुर के नाम से पड़ा, वहां की 80 प्रतिशत आबादी की रोजी-रोटी का जरिया हथकरघा। बाराबंकी का और स्टोल का निर्माण एक जिला-एक उत्पाद के रूप में भी चयनित है। लेकिन बिजली के दाम बढ़ने के बाद से बुनकरों के काफी पावरलूम ठप हो गए।

दरअसल पहले दो पावरलूम पर 172 रुपये बिजली का फिक्स बिल आता था। लेकिन अब ढाई-तीन हजार रुपये तक आता है। जिसके चलते बुनकरों के पावरलूम ठप होते जा रहे हैं। इसके अलावा जिनके बाद हाथ से चलाने वाला करघा है, उनका भी कारोबार खत्म होने की कगार पर है। लॉकडाउन के चलते भी हथकरघा उद्योग खासा प्रभावित हुआ है। लेकिन इसके बाद भी न तो सरकार ही बुनकरों के लिये कुछ सोच रही और न ही यहां के जनप्रतिनिधि इनकी आवाज उठा रहे हैं।

जैदपुर विधानसभा है बुनकर बाहुल्य

जैदपुर व‍िधानसभा सीट (zaidpur assembly seat) उत्‍तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की नई व‍िधानसभा सीटों में से एक है। जो 2008 के पर‍िसीमन के बाद अस्‍त‍ित्‍व में आई है। पहले यह क्षेत्र मसौली और स‍िद्धौर व‍िधानसभा क्षेत्र (Masauli and Siddhaur Assembly Constituencies) के अंतर्गत हुआ करता था।

2017 में इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की, लेकिन 2019 में भाजपा विधायक उपेंद्र रावत (BJP MLA Upendra Rawat) के बाराबंकी से सांसद चुने जाने के बाद यहां हुए उप चुनाव हुए, ज‍िसमें समाजवादी पार्टी के उम्‍मीदवार गौरव रावत जीत दर्ज कर व‍िधानसभा पहुंचे। जैदपुर विधानसभा (zaidpur assembly seat) बुनकर बाहुल्य है।

विधानसभा क्षेत्र में बुनकरों की आबादी करीब 80 फीसदी

इस विधानसभा क्षेत्र में बुनकरों की आबादी करीब 80 फीसदी है। बीते पांच साल में महंगी बिजली के कारण बुनकर परेशान तो थे ही, लेकिन कोरोना काल ने बुनकरों की कमर तोड़ दी है। जबकि मास्क के बेहतर विकल्प के रूप में हथकरघा उत्पाद स्टोल (Handloom Products Stoles), गमछा और रूमाल की उपयोगिता बढ़ी है।

आपको बता दें कि यह इलाका इंटरनेशनल स्टाइल के दुपट्टे यानी स्टोल के प्रोडक्शन के लिए जाना जाता है, यहां सबसे ज़्यादा बुनकर समाज द्वारा स्टोल बनाया जाता है, लेकिन महंगी बिजली और उचित सहूलियत न मिल पाने के कारण बुनकर परेशान हैं।

यहां के बुनकरों और पॉवरलूम चलाने वाले लोगों का कहना है कि पहले दो पावरलूम पर 172 रुपये बिजली का फिक्स बिल आता था। लेकिन अब ढाई-तीन हजार रुपये तक आता है। उन लोगों पर लाखों में बिजली का बिल बकाया हो चुका है। लेकिन फिर भी सरकार हम लोगों के बारे में कुछ सोच नहीं रही है।

काफी बड़े स्तर पर पहले यहां हथकरघा का होता था काम: बुनकर

बुनकरों का कहना है कि काफी बड़े स्तर पर पहले यहां हथकरघा का काम होता था, लेकिन अब बिजली बिल के दाम बढ़ने के बाद यहां का काफी कारोबार ठप हो चुका है। वहीं, हाथ से करघा चलाने वाले बुनकरों का कहना है कि दिनभर काम करने के बाद कहीं जाकर 100 रुपये की कमाई हो पाती है। ऐसे में हम लोगों के लिये परिवार चलाना भी मुश्किल हो रहा है।

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Deepak Kumar

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