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Lucknow News: पुलिस महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार, सरकार करे गम्भीर आत्मचिंतन
बढ़ती महंगाई के बीच पिछले आठ माह में पुलिस की गश्त पर आने वाला खर्च 30 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
Lucknow News: बढ़ती महंगाई के बीच पिछले आठ माह में पुलिस की गश्त पर आने वाला खर्च 30 प्रतिशत से अधिक हो गया है। पूर्व के वर्षों में एक दिसम्बर, 2020 में लखनऊ पुलिस की गश्त के लिए करीब 70 हजार लीटर डीजल व 18 हजार लीटर पेट्रोल की खपत हर माह होती थी, लेकिन अब वर्तमान दौर में डीजल-पेट्रोल के मूल्यों में वृद्धि होने से पुलिस की गश्त में हर माह ईंधन पर होने वाला खर्च लगभग 30 फीसदी तक बढ़ गया है।
पुलिस विभाग को डीजल व पेट्रोल लीटर के हिसाब से मिलता है। अगर महकमे के कागजों पर दर्ज पुलिस की गश्त पर गौर करें तो डीजल व पेट्रोल के रेट बढ़ जाने से गृह विभाग पर तो खर्चे का लोड बढ़ा है, लेकिन पुलिस गश्त पर कोई असर नहीं पड़ा। महकमे के मानक के अनुसार हर पुलिस स्टेशन प्रभारी को प्रत्येक माह 210 लीटर ईंधन मिलता है। जबकि विशेष परिस्थितियों में सीनियर अधिकारी की सन्तुति पर ज्यादा ईंधन भी पुलिस स्टेशन प्रभारी ले सकते हैं। इसी तरह महकमे के अन्य पुलिस कर्मी भी अपने वाहनों के लिए तय सीमा में ईंधन ले सकते हैं। जहां तक पुलिस की पेट्रोलिंग का प्रश्न है तो इस मद में फिक्स ईंधन का कोई रोल नहीं होता। समय व मौके की नजाकत के हिसाब से इसका भुगतान शासन स्तर से होता रहता है।
एक आंकड़े के मुताबिक लखनऊ पुलिस के पास 650 वाहन हैं। इनमें 300 वाहन चार पहिया हैं और 350 वाहन दो पहिया हैं। इनमें 300 वाहन महकमे के सीनियर अफसर व पुलिस स्टेशन स्तर पर दिए गए हैं। जबकि गश्त के लिये 350 वाहन गश्ती दल के पास रहते हैं।
पूर्व की बसपा सरकार में राजधानी के प्रति थानों के एक माह का औसत खर्चा निकलवाया गया था। थानों पर प्रतिदिन होने वाले खर्चे का ब्यौरा जुटाया गया।स्टेशनरी, पेट्रोल, डीज़ल, लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार, केस डायरी, थानों पर आगुन्तकों के लिये चाय, नाश्ता, पानी, विवेचना के लिये आने जाने व गुमशुदा लोगों की खोजबीन जैसे कार्यों में प्रति पुलिस स्टेशन में आने वाले औसतन खर्चे का आकलन लगभग एक लाख रुपया प्रति माह सामने आया। जबकि सरकार की तरफ से मिलने वाला यह बजट बहुत कम था। आज भी थानों में छोटे-छोटे खर्चों के लिये पुलिस को इधर उधर देखना पड़ता है।
आजादी के बाद से देश व सूबे में काबिज अब तक की सरकारों में पुलिस महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये रणनीति तो बन रही हैं, लेकिन इस इसके उन्मूलन की दिशा में अब तक कोई ठोस स्तर पर प्रयास होते नहीं दिख रहे हैं। सपा सरकार के समय में भी एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी को थानों में होने वाले खर्चों का ब्यौरा देना था, लेकिन यह ब्यौरा अब तक नहीं दिया जा सका है।
वर्तमान में डीजीपी कार्यालय से सम्बद्ध एक आईपीएस अधिकारी ने ऑफ द रिकार्ड यह बताया कि थानों में एक केस डायरी का औसत व्यय प्रतिमाह लगभग 50 से 60 हजार रुपये तक आता है। यह खर्चा भी थानों की पुलिस को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। इसके साथ ही थानों को स्टेशनरी भी नाम मात्र की दी जाती है। थाने से अटैच एक कार या जीप व बाइक को भी हर माह औसतन 150 लीटर फ्यूल मिलता है, जो 10 से 15 दिन में ही खर्च हो जाता है। बाकी दिनों के लिये ईंधन का जुगाड़ करना पुलिस की मजबूरी है। गुमशुदा की तलाश व फरार अपराधियों की गिरफ्तारी के लिये थाना पुलिस को राज्यो से बाहर भी जाना पड़ता है। इस पर आने वाले खर्चे का भुगतान भी समय से नहीं हो पाता है। थानों पर अपराधियों को रखने के लिये उनकी टाइम की खुराक के रुपयों का बजट आज भी न के बराबर ही है ।ये खर्च भी थानों की पुलिस को अपनी ही जेब से करना पड़ता है। इसी तरह गवाहों को लाने ले जाने के मद में भी पुलिस को कोई बजट नहीं मिलता। लेकिन उसमें भी खर्च थाने स्तर पर ही झेलना पड़ता है।
लावारिश लाशों के पोस्टमार्टम व अंतिम संस्कार का कार्य पुलिस के लिये बेहद महत्वपूर्ण है। एक तो मानवता की दृष्टि से व अपनी नौकरी को सेफ रखने के एंगिल से भी पुलिस को यह कार्य बेहद जिम्मेदारी से निपटाना होता है। क्योंकि इस काम मे जरा सी भी चूक होने पर पुलिस कर्मी को सजा भी मिल जाती है। पूर्व में लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार के लिये सरकार की तरफ से 5 सौ रुपये ही निर्धारित थे। लेकिन महंगाई बढ़ी तो यह बजट सरकार ने बढ़ा कर अब 1500 रुपये कर दिया है। लेकिन अंतिम संस्कार में प्रयोग की जाने वाली आम की लकड़ियों की लखनऊ जैसे महानगरों में जो कीमत है साथ ही अंतिम संस्कार में प्रयोग की जाने वाली अन्य चीजों में भी महंगाई जिस कदर हावी है, उसमें यह 1500 रुपये अब बेहद कम हैं। सही तरीके से व पूरे विधि विधान से एक लावारिश के अंतिम संस्कार में अब सामान्य तौर पर चार से पांच हजार रुपये तक का खर्चा आता है। अब इस खर्चे के मुकाबले अंतिम संस्कार के लिये सरकार की तरफ़ से पुलिस को मिलने वाले 15 सौ रुपये बेहद कम हैं।
अब सवाल यह है कि पुलिस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण विभाग है। उसके बाद भी इस विभाग के विभिन्न मदों में खर्च होने वाले बजट को सरकार क्यों नहीं बढ़ाती? जबकि सरकारों को भी यह पता है कि पुलिस अगर अपराधियों की खोज में थानों से निकलेगी तो पेट्रोल व डीजल तो खर्च होगा ही।थाने में यदि अपराधी गिरफ्तार कर लाया जाएगा तो उसके खाने की भी व्यवस्था होनी है। इसलिये अब यह जरूरी है कि सरकारों को थानों को भ्रष्टाचार मुक्त करना है तो चाहे फिर वो देश की मोदी सरकार हो या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उन्हें गम्भीर आत्मचिंतन कर वह बजट तैयार करना होगा, जिससे पुलिस स्टेशन भ्रष्टाचार मुक्त बन सकें।
देश व सूबे की सरकारों को यह गम्भीरता पूर्वक समझना होगा कि पुलिस की कार्यशैली से ही सरकारों की छवि बनती व बिगड़ती है। आज सूबे का कोई भी पुलिस स्टेशन ऐसा नहीं है, जिसके बारे में उत्तर प्रदेश की सरकार भ्रष्टाचार मुक्त होने का दावा कर सके। राजधानी लखनऊ समेत सूबे में कई थाने ऐसे हैं जहां बिना सुविधा शुल्क लिये पीड़ित अपनी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करवा सकते। ये थानों की ये स्थितियां न तो सरकार के हित मे और न ही स्वच्छ लोकतंत्र के ही हित में हैं। भारत की आजादी के बाद से ही देश की आम जनता थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त आ चुकी है। भारत वह देश है जहां आम जनता को थानों से अपने लिये जायज न्याय पाने के लिये भी सुविधा शुल्क देना पड़ता है। इसलिये अब देश की मोदी व सूबे की योगी सरकार को यह गहन आत्मचिंतन करना होगा कि थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिये विभाग के जायज बजट में बढ़ोत्तरी करनी होगी।