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9 अगस्त 1925 काकोरी कांडः जीपीओ स्थल से गहराता नाता है इस कांड के सपूतों का
9 August 1925 Kakori Kand: काकोरी आज भी लखनऊ का एक पिछड़ा इलाका है क्योंकि आम बेल्ट में होने के कारण इसका बहुत अधिक विकास नहीं हो सका है। यह एक नगर पंचायत है।
9 August 1925 Kakori Kand: हालांकि अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) 9 अगस्त 1942 से पूरे देश में फैला लेकिन इससे 17 साल पहले ही उत्तर प्रदेश और लखनऊ (Lucknow) के क्रांतिकारियों ने इस दिन को ऐतिहासिक बनाते हुए लखनऊ और उसके काकोरी क्षेत्र का नाम इतिहास के पन्नों ने अमिट अक्षरों में दर्ज करा दिया था। काकोरी (Kakori) आज भी लखनऊ का एक पिछड़ा इलाका है क्योंकि आम बेल्ट में होने के कारण इसका बहुत अधिक विकास नहीं हो सका है। यह एक नगर पंचायत है। इसका रेलवे स्टेशन आज भी छोटा सा ही है। कल्पना कीजिए आज से लगभग सौ साल पहले कितना निरजन और पिछड़ा रहा होगा। लेकिन एक घटना ने काकोरी को इतना प्रसिद्ध कर दिया गया कि इस नगर की स्मृति को बनाए रखने के लिए मंगल ग्रह के एक प्रमुख क्रेटर नाम काकोरी रख दिया गया। आज हम इसी काकोरी कांड की चर्चा करेंगे जिसकी योजना क्रांतिवीर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल (Pandit Ramprasad Bismil) ने बनाई थी जो उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मे थे। इनका जन्म जेठ माह की निर्जला एकादशी को हुआ था।
कौन है रामप्रसाद बिस्मिल (Ramprasad Bismil Kaun Hai)- राम प्रसाद अपने माता पिता मूलमती और मुरलीधर की दूसरी संतान थे। रामप्रसाद की जन्म-कुण्डली व दोनों हाथ की दसो उँगलियों में चक्र के निशान देखकर ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी "यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि सम्भावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पायेगी।''
यही लड़का आगे चलकर क्रांति का अग्रदूत बना और एक साहित्यकार के रूप में जो साहित्य सृजन किया उन पुस्तकों की बिक्री से मिले पैसे से क्रांति यज्ञ की समिधा हथियार खरीदे और इतने पर भी पैसे कम पड़े तो डकैतियां डालीं इनसे भी विशेष धन नहीं मिला तो 7 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में इनके घर पर हुई एक आपात बैठक में निर्णय लेकर काकोरी कांड की योजना बनी।
काकोरी कांड कब हुआ (Kakori kand kab hua tha)
9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग, जिनमें अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), मुरारी शर्मा (वास्तविक नाम मुरारी लाल गुप्त) तथा बनवारी लाल शामिल थे, ८ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए। इन सबके पास पिस्तौलों के अतिरिक्त जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल भी थे जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से वह छोटी स्वचालित राइफल की तरह लगता था और सामने वाले के मन में भय पैदा कर देता था।
लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन (Kakori Railway Station) पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। उसे खोलने की कोशिश की गयी किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गये। मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश माउजर का ट्रिगर दबा दिया जिससे छूटी गोली अहमद अली नाम के मुसाफिर को लग गयी। वह मौके पर ही ढेर हो गया। शीघ्रतावश चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने में एक चादर वहीं छूट गयी। अगले दिन अखबारों के माध्यम से यह खबर फैल गयी। ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लिया और डी॰ आई॰ जी॰ के सहायक (सी॰ आई॰ डी॰ इंस्पेक्टर) मिस्टर आर॰ ए॰ हार्टन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सबसे तेज तर्रार पुलिस को इसकी जांच का काम सौंपा गया।
काकोरी कांड से हिला ब्रिटिश हुकूमत
काकोरी कांड ने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया था। वह इस कांड के किसी दोषी को छोड़ना नहीं चाहते थे। इस कांड में घटनास्थल पर छूटी चादर अहम सबूत साबित हुई। चादर में लगे धोबी के निशान से पता चल गया कि चादर शाहजहाँपुर के ही किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसी लाल की है। बनारसी लाल से मिलकर पुलिस ने सारा भेद प्राप्त कर लिया। यह भी पता चल गया कि 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर से उसकी हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के कौन-कौन लोग शहर से बाहर गये थे और वे कब-कब वापस आये? जब खुफिया तौर से इस बात की पुष्टि हो गयी कि राम प्रसाद बिस्मिल, इसके लीडर थे। सभी क्रांतिकारी पकड़ लिए गए। इन्हें लखनऊ जिला जेल, जो उन दिनों संयुक्त प्रान्त (यू॰पी॰) की सेण्ट्रल जेल कहलाती थी जहां इस समय इको गार्डेन है की 11 नम्बर बैरक में रखा गया और हजरतगंज चौराहे के पास जहां अब जीपीओ (GPO) है।
रिंग थियेटर नाम की एक आलीशान बिल्डिंग में अस्थाई अदालत का निर्माण किया गया। रिंग थियेटर नाम की यह बिल्डिंग कोठी हयात बख्श और मल्लिका अहद महल के बीच हुआ करती थी जिसमें ब्रिटिश अफसर आकर फिल्म व नाटक आदि देखकर मनोरंजन किया करते थे। इसी रिंग थियेटर में लगातार 18 महीने तक किंग इम्परर वर्सेस राम प्रसाद 'बिस्मिल' एण्ड अदर्स के नाम ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया। ब्रिटिश हुक्मरानों के आदेश से यह बिल्डिंग भी बाद में ढहा दी गयी और उसकी जगह सन 1929-32 में जी॰ पी॰ ओ॰ (मुख्य डाकघर) नाम से एक दूसरा भव्य भवन बना दिया गया। 1947 में जब भारत आजाद हो गया तो यहाँ गांधी जी की भव्य प्रतिमा स्थापित कर दी गई। 1977 में यहाँ पर काकोरी स्तम्भ बना।