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Army Court Decision: तीस वर्ष से भगोड़ा घोषित सैनिक को एक महीने के अंदर, सेना के सामने समर्पण का आदेश

Army Court Decision: अंबेडकर नगर (Ambedkar Nagar) निवासी सिपाही दिलीप कुमार सिंह (Constable Dilip Kumar Singh) को सेना के सामने समर्पण करने का आदेश जारी किया।

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Newstrack NetworkPublished By Shweta
Published on: 16 Sep 2021 1:58 PM GMT (Updated on: 16 Sep 2021 2:44 PM GMT)
कॉन्सेप्ट फोटो
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Army Court Decision: सशस्त्र-बल अधिकरण,लखनऊ के न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे (Justice Umesh Chandra Srivastava and Abhay Raghunath Karve) की खण्ड-पीठ ने तीस वर्ष से भगोड़ा घोषित अंबेडकर नगर (Ambedkar Nagar) निवासी सिपाही दिलीप कुमार सिंह (Constable Dilip Kumar Singh) को सेना के सामने समर्पण करने का आदेश जारी किया l दिलीप कुमार 1996 में आर्मी सप्लाई कोर में भर्ती हुआ। वर्ष 2011 में पन्द्रह दिन के आकस्मिक अवकाश पर घर आया। लेकिन व्यक्तिगत समस्याओं की वजह से वह समय से ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर सका l

जैसे ही वह समस्याओं से निजात पाया ड्यूटी ज्वाइन करने का प्रयास करने लगा लेकिन काफी प्रयास के बावजूद ड्यूटी ज्वाइन नहीं कराया गया, क्योंकि वह पेंशन योग्य पन्द्रह साल की सैन्य-सेवा पूरी कर चुका था इसलिए उसने यह कहते हुए अपील की कि या तो उसे सर्विस पर रखा जाए या सर्विस पेंशन दी जाए। लेकिन उसकी अपील को ख़ारिज कर दिया गया l

अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय (Advocate Vijay Kumar Pandey) के माध्यम से वादी ने 2017 में सेना कोर्ट लखनऊ (Lucknow) में वाद दायर किया । जिसमें 30 अक्टूबर, 2017 को न्यायालय ने सेना को आदेशित किया कि याची को नौकरी ज्वाइन कराया जाए। लेकिन सेना ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वादी सेना से भगोड़ा घोषित है, वह निर्धारित सेवा शर्त की अवधि पूर्ण कर चुका है, न तो हम उसे सेवा से डिसमिस कर सकते हैं और न डिस्चार्ज। क्योंकि भगोड़ा घोषित होने के दस वर्ष बाद ही ऐसा किया जा सकता है। लेकिन वादी के मामले में सेना दस साल बाद भी ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उसने अपनी सेवा शर्त पूरी कर ली है l

वादी का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि नौकरी से भगोड़ा घोषित होने मात्र से "मास्टर" और "सर्वेंट" का संबंध स्वतःसमाप्त नहीं हो जाता। इसे कानूनी आदेश के बगैर समाप्त नहीं किया जा सकता। जबकि भारत सरकार और सेना द्वारा अभी तक मेरे मुवक्किल को न तो सेना से डिसमिस किया गया है और न डिस्चार्ज। इसलिए वह संबंध अब भी बना हुआ है। दूसरी तरफ यदि पुलिस अधीक्षक अंबेडकर नगर घर पर मौजूद सैनिक को कागजी कार्यवाही में लापता दिखा रहे हैं तो इसके लिए वादी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता l

दोनों पक्षी की दलीलों और दस्तावेजों के अवलोकन के बाद खण्ड-पीठ ने कहा कि रिकार्ड पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि वादी द्वारा ड्यूटी ज्वाइन करने का प्रयास किया गया। यदि उसे कोई बीमारी थी तो उसे प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने के बजाय मिलिट्री हॉस्पिटल में इलाज कराना चाहिए था। इसलिए उसे दुबारा ड्यूटी ज्वाइन कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता। लेकिन सेना और वादी को निर्देशित करते हुए आदेश जारी किया कि वादी एक महीने के अंदर आर्मी रुल 123 के तहत आत्म-समर्पण कर दे और सेना वादी का स्वतंत्र और निष्पक्ष ट्रायल कर जल्दी से जल्दी निर्णय करने के लिए स्वतंत्र होगी l

Shweta

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