कोरोना काल का निगेटिव असरः मोबाइल क्रांति ने नाबालिग बच्चों का बढ़ाया अपराध की तरफ रुझान

Lucknow News: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट (Report)बताती है कि 2017 के आंकड़ों के तहत नाबालिग बच्चों के यूपी में आपराध करने के मामले 19 हजार 145 मामले सामने आए हैं।

Sandeep Mishra
Written By Sandeep MishraPublished By Monika
Published on: 12 Dec 2021 9:59 AM GMT (Updated on: 12 Dec 2021 10:08 AM GMT)
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नाबालिग बच्चों का बढ़ाया अपराध की तरफ रुझान (फोटो : सोशल मीडिया )

Lucknow News: अचानक नाबालिग बच्चों (minor children) के अपराध के प्रति रुझान के आंकड़ों के बढ़ने से सबसे ज्यादा उनके अभिभावक ही चिंतित हैं और उनका चिंतित होना लाजिमी है क्योंकि जिस उम्र में उनके बच्चों को अपनी शिक्षा व अपने करियर को संवारने में गम्भीर होना चाहिए, उस उम्र में वे अपने जीवन को क्राइम (crime)की दुनिया की तरफ झोंकने में लगे हैं।

नेशनल क्राइम ब्यूरो (National Crime Bureau) के आंकड़े पर अगर ध्यान दें तो उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश नाबालिग बच्चों के क्राइम की तरफ बढ़ रहे रुझान की तरफ अव्वल रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट (Report) बताती है कि 2017 के आंकड़ों के तहत नाबालिग बच्चों के यूपी में आपराध करने के मामले 19 हजार 145 मामले सामने आए हैं। जबकि मध्यप्रदेश में ये आंकड़े 19038 हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देश मे भर में नाबालिग बच्चों के खिलाफ हर दिन 350 मामले दर्ज हुए हैं। एनसीआरबी के इन आंकड़ों से लखनऊ में अपराध के प्रति नाबालिग बच्चों के रुझान को कम करने व उन्हें अपने करियर के प्रति सजग करने वाली कई सरकारी संस्थाएं अपने भरपूर प्रयास कर रहीं हैं। लखनऊ की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन रविन्द्र सिंह जादौन का साफ कहना है कि अचानक बच्चों के क्राइम के प्रति रुझान के लिये उनके अभिभावक भी दोषी हैं।

लखनऊ के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन ने कही ये बात

लखनऊ के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन रविन्द्र सिंह जादौन ने बताया कि नाबालिग बच्चों यानि किशोरों के अचानक क्राइम की तरफ अग्रसर होने के पीछे दो साइंटफिक बातें हैं। पहला करण तो यह है कि हमारा जो जेनेटिक है वो इसका बहुत बड़ा कारण है और दूसरा जो कारण है वो ऑर्गनाइजेशन का कारण है। जो हमारे यहां शहरीकरण हो रहा है, तो भी अव्यवस्थिक ढंग से हो रहा है। अगर ये शहरीकरण व्यवस्थित ढंग से हो तो वह सही दिशा में जाते, लेकिन जो अव्यस्थित ढंग से होता है तो वो फिर कहीं भी कोई जा सकता है। इसलिए हमारे किशोर या किशोरियां हैं वे सही स्ट्रक्चर-वे की तरफ नही जा रहे हैं।

अभी कोरोना आया सरकार ने इस पर बिना कोई अध्ययन किये यह आदेश कर दिए कि किशोरों व किशोरियों के स्मार्ट फोन के जरिये ऑन लाइन क्लासेज लिए जाएँ। ये हम सभी जानते हैं कि 15 मिनट भी हम अपना मोबायल चलाते हैं और एप को डाउनलोड करते हैं तो उसमे ऑटोमेटिकली पोपस आ जाते हैं। जब हमारे किशोरियों व किशोरों के मोबायल पर रोजाना पोपस आते रहेंगे तो आप एक दिन नहीं देखेंगे, दो दिन नहीं देखेंगे, तीन दिन नहीं देखेंगे चार दिन नहीं देखेंगे लेकिन हमारा यह ह्यूमन नेचर है कि पांचवे दिन हमारे किशोर व किशोरियां उसे जरूर देखने लगते हैं इस जिज्ञासा से कि आखिर ये आते क्यों है इन्हें देखा जाए। तो संक्षेप अगर यह कहा जाये कि देश या उत्तर प्रदेश में इंटरनेट की जो क्रंति आयी है इस फैक्टर की वजह से भी हमारे किशोर व किशोरियां क्राइम की तरफ अपना दिमाग लगाने लगे।श्री जादौन जी का कहना है कि यह हमारा ह्यूमन नेचर है कि इंटरनेट पर अच्छी साईटों की अपेक्षा हम ग़लत साईटों ज्यादा देखने का प्रयास करते हैं, बस यही हमारी इसी नेचर के शिकार हमारे किशोर व किशोरियां हो रहे हैं।

बच्चों के अच्छे दोस्त उसके माता पिता नहीं बल्कि यू ट्यूब

देश व उत्तर प्रदेश में जो इंटरनेट (internet ) की क्रांति आयी उससे अब किशोरियों व किशोरों को लगने लगा है कि ये दुनिया तो खोखली है। उन्होंने बताया कि अब बच्चों के सबसे अच्छे दोस्त उसके माता पिता नहीं बल्कि यू ट्यूब है। आज पांच साल के बच्चे को अपनी टेबिल नही पता है लेकिन वह यूट्यूब इतनी आसानी से ऑपरेट करता है जिसका विश्वास नहीं किया जा सकता है। तो मैंने जो आज के किशोरों व किशोरियों के बीच रहकर जो गहन अध्ययन किया है उससे यह इंटरनेट मीडिया किशोरों व किशोरियों को मानसिक रूप से क्षति पहुंचा रहे हैं।

लखनऊ के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन रविन्द्र सिंह जादौन ने बताया कि हमारे किशोर व किशोरियों का क्राइम की तरफ रुझान न बढ़े उसके लिये इस समय जो अचानक साइबर क्राइम की ग्रोथ बढ़ गई है उसके पोपस कम से कम किशोर व किशोरियों के मोबायल पर नहीं आने चाहिए। खास तौर पर बच्चों के मोबाइल पर। हम सभी ,बच्चों के अभिभावकों को उन एप्स वालों से एप्रोच करना होगा कि जो एप बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए बना रहे है उनसे पोपस न डालें।

दूसरी रीजन यह भी है कि अभिभावक अपने बच्चों को गाइड करने की बजाय उसे डिसाइड करने लगे हैं क्योंकि बच्चे आपकी प्रॉपर्टी नहीं हैं बल्कि देश का भविष्य है। इसलिए अभिभावकों को बच्चों को गाइड करना चाहिए न कि उनके बारे में डिसाइड करें। तीसरा सबसे बड़ा प्रकोशन है उनका शारीरिक विकास। बच्चों का मोबायल की दुनिया से ध्यान हटा कर उनका दिमाग आउटडोर गेम में अभिभावकों को लगाना चाहिए। जब बच्चे आउटडोर गेम में जाएंगे तो हम सभी जानते हैं कि एनर्जी कन्वर्ट होती है। जब बच्चा फिजिकल मेहनत करेगा तो उसका दिमाग भी ठीक रहेगा।और उसका एकांतवास भी छूटेगा। जब से इंटरनेट की क्रांति आयी है तब से किशोर व किशोरियां एकांतवास ने ज्यादा रहने लगे है जो किशोर व किशोरियों के मानसिक व शारीरिक विकास के डवलप के लिये यह एकांतवास एक श्राप बन गया है। कोरोना की वजह से एक लंबे समय से एकांतवास में रहते रहते किशोरों व किशोरियों में एक तरह का मानसिक दवाब भी है।

किशोरों व किशोरियों का अपराध बढ़ने का बहुत बड़ा कारण ये

लखनऊ में बच्चों व किशोर व किशोरियों के क्षेत्र में काम कर कर रही आशा ज्योति केंद्र की चेयरपर्सन अर्चना सिंह (Archana Singh, chairperson of Asha Jyoti Kendra) का कहना है कि अपराध की तरफ किशोर व किशोरियों का अचानक से रुझान बढ़ना यह हम लोगों के लिए भी काफी चिंता का विषय बन रहा है। कोरोना की वजह से परिवारों ने जो फायनेंशियल कमी (financial crunch) आयी है यह भी किशोरों व किशोरियों का अपराध बढ़ने का बहुत बड़ा कारण है। माता पिता कोरोना काल से लेकर अब तक अपने बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

अब खर्चे तो हमारे वही रहे बल्कि कोरोना काल मे तो खर्चे और बढ़ गए हैं लेकिन हमारी कमाई का स्रोत कम हो गया है।तो कहीं न कहीं किशोरों व कि शोरियों के मस्तिष्क पर घर की फायनेंशियल कमी भी प्रभाव डाल रही है। दूसरा यह है कि कोरोना काल के चलते कोशोरों किशोरियों की सोशल एक्टिविटी पर भी असर पड़ा है। वे घर से काफी समय से बाहर नहीं निकल पाए है। तीसरा कहीं न कहीं ये भी कारण है कि कोविड के चलते परिवार का एकाकीपन। पहले हम एक सयुंक्त परिवार में रहते थे लेकिन कोविड के कारण से अब हर व्यक्ति अकेला ही रहना चाहता है। अब परिवारों के इस एकाकीपन में बच्चों को एकाकीपन की आजादी बहुत मिल रही है और बच्चे इस एकाकीपन की आजादी में गलत साइटों को ज्यादा देख रहे हैं जो उनके मनमस्तिष्क पर गलत प्रभाव डाल रहे है। तो इसका कारण सोशल मीडिया भी है।

Monika

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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