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DGP office में तैनात पैरोकार मानसिक तनाव में, प्रतिमाह 7-8 हजार रुपया उनकी ही जेब का खर्च

DGP office: इन पैरोकारों को पुलिस विभाग की तरफ से की जारी पैरवी का खर्च अपनी ही जेब से ही भुगतना पड़ रहा है।

Sandeep Mishra
Report Sandeep MishraPublished By Ragini Sinha
Published on: 7 Nov 2021 9:41 AM GMT
New UP DGP three IPS officers including Devendra Singh Chauhan
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New UP DGP three IPS officers including Devendra Singh Chauhan

DGP office। सूबे के डीजीपी कार्यालय (DGP office) में तैनात पैरोकारों का आर्थिक व मानसिक शोषण एक लंबे समय से जारी है। इन पैरोकारों को पुलिस विभाग की तरफ से की जारी पैरवी का खर्च अपनी ही जेब से ही भुगतना पड़ रहा है। जब भी अपने इस शोषण के खिलाफ अगर किसी पैरोकार ने आवाज उठाने की कोशिश भी की है तो बजाय उसकी इस जायज समस्या का समाधान करने के बजाय अनुशासन के नाम पर उसके ही खिलाफ जांच के आदेश कर उसका ही मुंह बन्द करवाने की कवायद की जाती रही है।अपने शोषण को लेकर इन पैरोकारों में बेहद असंतोष देखने को मिल रहा है।

सीबीसीआईडी से जुड़े केसों के पैरोकार है

आर्थिक व मानसिक शोषण के शिकार पुलिस विभाग (Police Department) में सीबीसीआईडी (CBCID) की निम्न प्रमुख शाखाएं हैं-सीबीसीआईडी, एंट्रीकरप्शन, EOW आर्थिक अपराध शाखा, विजिलेंस, एसआइटी, व अन्य शाखाएं हैं। इन पैरोकारों का कहना है कि जब से पुलिस मुख्यालय गोमतीनगर (gomitinagar)के किनारे आ गया है तब से दीवानी कचहरी व विभिन्न न्यायालयों की दूरी कम से कम 21 किमी हो गयी है। पुलिस विभाग (police department CBCD wing) की सीबीसीडी विंग में हत्या, गम्भीर आर्थिक अपराध, आर्थिक मामलों के करोड़ों के घोटाले,जैसे संगीन मुकद्दमों की पैरवी हेतु नियुक्त किये गए पैरोकारों को इन मुकद्दमों की पैरवी करने हेतु न्यायालय जाने व आने के लिये सरकारी स्तर पर कोई भी टीए डीए नही दिया जा रहा है। जिस कारण डीजीपी कार्यालय में इन मुकद्दमों से सम्बंधित तैनात पैरोकारों को अपनी जेब से ही सात से आठ हजार रुपया प्रतिमाह खर्च करना पड़ रहा है।जिस कारण से अब इन पैरोकारों में अपने महकमे के अधिकारियों के प्रति आक्रोश बढ़ रहा है।

भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की 9 कोर्ट लखनऊ में है

सूबे की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में आर्थिक भ्र्ष्टाचार के मामलों से सम्बंधित 9 कोर्ट लखनऊ में स्थापित हैं।इन कोर्ट में विगत वर्ष 76-78 तक के मामले अभी भी लंबित हैं।इन सभी मामलों में पेशी के लिये अधिकारी तो जाते नहीं हैं बल्कि हर पेशी में मुकद्दमों की पैरवी के लिये पैरोकार को ही जिम्मेदार बना दिया गया है।इन मुकद्दमों में आरोपी से लेकर गवाहों की तामीली तक की जिम्मेदारी सिर्फ पेरोकार के मत्थे मढ़ दी गयी है। इन सारी कार्रवाही में पेरोकार की ही जेब का धन खर्च हो रहा है।जबकि ये काम तो सरकारी स्तर का है इसलिए पैरोकारों का मानना है कि इन सबका उन्हें सरकारी खर्च मिलना चाहिए।पैरोकारों का कहना है कि कइयों बार तो आरोपी व गवाहों के समय से न्यायालय में पेश न होने पर उन्हें न्यायालय के आदेश पर आरोपियों व गवाहों को सम्मन तामील करवाने के लिये उनके घर तक जाना पड़ता है।अब अगर किसी मुकद्दमे का आरोपी या गवाह ललितपुर रहता है तो आने जाने में एक पेरोकार की जेब का कितना रुपया खर्च हो जाया करता है इसका अनुमान उनके अधिकारी नहीं लगाते हैं।

सभी मुकद्दमे कई-कई वर्षों से लंबित हैं

भ्र्ष्टाचार निवारण अधिनियम से सम्बंधित अधिकारियों के मुकद्दमें विजिलेंस में व एंटी करप्शन में कोर्ट में नॉन गजिस्टेड अधिकारियों के मुकद्दमे लंबित हैं।उत्तर प्रदेश में वर्ष भर में लाखों की संख्या में थानों से मुकद्दमे दर्ज होते हैं लेकिन सभी लंबित रहते हैं।

बस आरोपी के मौत का इंतजार करता है महकमा

गत वर्ष 76-78 के आर्थिक अपराध के मुकद्दमे आज भी लंबित पड़े हुए हैं।ये सभी मुकद्दमे अधिकारियों के ही खिलाफ हैं।जिसमे ज्यादातर रिटायर्ड अधिकारी हैं।कईयों बार हाईकोर्ट ने पुलिस महकमे के अधिकारियों को यह दिशा निर्देश भी दिए हैं कि आर्थिक अपराध से जुड़े इन मामलों को समाप्त करवाने में विभाग अपनी पैरवी में तेजी लाये लेकिन अधिकारियों के कान पर हाई कोर्ट के इन आदेशों की कोई जूं नही रेंगती है।इन मुकद्दमों की पैरवी के लिये डीजीपी कार्यालय में तैनात पैरोकारों का कहना है कि इन मुकद्दमों की न्यायालयों में पैरवी के लिये पेरोकार है जो अपनी जेब का खर्च कर रोज किसी न किसी केस की पैरवी करने न्यायालय जाता ही है। पैरोकारों का तो यही मानना है कि ऐसे मुकद्दमों में आरोपी के मौत का ही इंतजार अधिकारी करते हैं।कई मुकद्दमे इन्ही स्थितियों में ही समाप्त हुये हैं।जब आरोपी मर गया तब मजबूरी में न्यायालय को वह मुकद्दमा बन्द करना पड़ा।

जनपदीय पुलिस के पैरोकारों को मिलता है टीए-डीए

डीजीपी कार्यालय में तैनात पैरोकारों का कहना है कि जनपदों के थानों में तैनात पैरोकारों को 8 km की दूरी से ऊपर मुकद्दमों की पैरवी के लिये जाना पड़ता है तो उन्हें विभाग तरफ से उनके ग्रेड के हिसाब से टीए डीए मिलता है।जैसे थाने में तैनात एसआई रैंक के पैरोकार को 8 घण्टे का 700 रुपया, जबकि नई नियुक्ति के पैरोकारों को 400 रुपए का टीए डीए मिलता है।जबकि डीजीपी कार्यालय के सीबीसीआईडी से जुड़े मुकद्दमों के पैरोकारों को टीए-डीए आखिर क्यो नही दिया जा रहा है? उसकी जेब का 7 से 8 हजार रुपया विभाग क्यो खर्च करवाया रहा है? अपने पैरोकारों की इस समस्या का हल अब तक डीजीपी नहीं खोज पाए हैं।

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Ragini Sinha

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