×

'जब-जब लोहिया बोलता है...': 'बिंदास बोल' वाले डॉ. लोहिया के जीवन की कई दिलचस्प बातें     

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कई मौकों पर कहते रहे हैं कि डॉ. राम मनोहर लोहिया ही हमारे पार्टी के सबसे बड़े आदर्श हैं। 1967 में पहली बार उन्होंने ही 'नेताजी' को टिकट दिया था, जसवंतनगर विधानसभा सीट से।

aman
Report amanPublished By Deepak Kumar
Published on: 12 Oct 2021 2:17 AM GMT (Updated on: 12 Oct 2021 2:46 AM GMT)
Dr. Ram Manohar Lohia
X

डॉ. राम मनोहर लोहिया। (Social Media)

ucknow: आप किसी भी सरकार के खिलाफ जब विपक्ष की बुलंद आवाज सुनते होंगे तो एक लाइन आपकी कानों में जरूर जाती होगी, 'जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं'।

ये मशहूर पंक्ति डॉ. राम मनोहर लोहिया ने तब कही थी, जब उन्होंने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था। तब, जब कांग्रेस पार्टी सबसे मजबूत स्थिति में थी, उसे उखाड़ फेंकने की बात अगर कोई कर सकता था तो डॉ. लोहिया थे। महज चार साल में भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से झकझोर देने का करिश्मा डॉ राम मनोहर लोहिया ने कर दिखाया था।

भारत में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ही थे। उनकी सोच थी कि दुनियाभर के समाजवादी विचारधारा वाले एकजुट होकर एक मंच पर आएं। लोहिया को भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद का 'शिल्पी' कहा जाता है।

गैर कांग्रेसवाद का 'शिल्पी'

इसे डॉ. राम मनोहर लोहिया का अथक प्रयास ही कहिए, कि वर्ष 1967 में कांग्रेस को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा। यह अलग बात है कि केंद्र में कांग्रेस सत्ता हासिल करने में कामयाब रही। लोहिया का असामयिक निधन 1967 में हो गया। लेकिन उन्होंने गैर कांग्रेसवाद की जो विचारधारा बढ़ाई, उसी की वजह से 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। लोहिया मानते थे कि अधिक समय तक सत्ता में रहकर कांग्रेस अधिनायकवादी हो गई थी। वह उसके खिलाफ संघर्ष करते रहे।

महिलाओं को सती-सीता नहीं, द्रौपदी बनना चाहिए

डॉ. राम मनोहर लोहिया की पहचान उनकी सटीक बोली से थी। चाहे उनका पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रतिदिन 25 हजार रुपए खर्च करने की बात हो, या इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहने का साहस हो। या, फिर यह कहने की हिम्मत कि महिलाओं को सती-सीता नहीं बल्कि, द्रौपदी बनना चाहिए। उत्तर भारत के युवाओं के मन मस्तिष्क पर आज भी लोहियावाद का असर देखने को मिलता है। भले ही उन्होंने लोहिया को ठीक से पढ़ा नहीं हो। लेकिन उन्हें लोहिया की खरी-खरी बोली बेहद पसंद आती है। यही हाल 50 और 60 के दशक में भी था। तब युवा एक नारे का जिक्र बार-बार करते थे, 'जब जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख्ता डोलता है।'

नेहरू के खिलाफ फूलपुर सीट से चुनाव लड़े

लोहिया की जुबान में तल्खी थी, जिसे सहज महसूस किया जा सकता था। आजादी के ठीक बाद जब देश 'नेहरूवाद' से प्रभावित था, तब लोहिया ही थे, जिन्होंने नेहरू को सवालों से घेरना शुरू किया था। नेहरू से उनकी तल्खी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक बार यहां तक कहा था कि 'बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।' यही वजह थी कि 1962 में डॉ. लोहिया उत्तर प्रदेश के फूलपुर सीट पर जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने चले गए। तब उस चुनाव में लोहिया की चुनाव प्रचार टीम में शामिल लोग बताते हैं कि लोहिया कहा करते थे, मैं पहाड़ से टकराने आया हूं। मैं जानता हूं कि पहाड़ से पार नहीं पा सकता। लेकिन उसमें एक दरार भी कर दी तो चुनाव लड़ना सफल हो जाएगा। कहते हैं, इस चुनाव में नेहरू उन-उन क्षेत्रों में पीछे रहे, जहां-जहां लोहिया ने चुनावी सभा को संबोधित किया था।

मुलायम-लालू-रामविलास सभी लोहिया से प्रभावित

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कई मौकों पर कहते रहे हैं कि लोहिया ही हमारे पार्टी के सबसे बड़े आदर्श हैं। 1967 में पहली बार उन्होंने ही 'नेताजी' को टिकट दिया था, जसवंतनगर विधानसभा सीट से। दरअसल, मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक क्षमता को सबसे पहले लोहिया ने ही देखा था। उस दौर के सभी युवा नेता जो लोहिया से प्रभावित थे । बाद के समय में राजनीति के शीर्ष तक गए चाहे वो मुलायम सिंह हों या लालू यादव या फिर रामविलास पासवान। इन सब पर लोहिया का असर दिखा। लेकिन यह भी सच है कि बाद के समय में इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने इन्हें जातिवादी राजनीति के दायरे में बांधकर रख दिया, जिसका लोहिया आजीवन विरोध करते रहे।

निजी जीवन में दखल बर्दाश्त नहीं

डॉ. लोहिया की निजी जिंदगी भी कम दिलचस्प नहीं थी। उनके नजदीकी बताते हैं कि लोहिया अपनी जिंदगी में किसी का दखल बर्दाश्त नहीं करते थे। हालांकि महात्मा गांधी ने एक बार उनके निजी जीवन में ऐसी ही दखल देने की कोशिश की थी। गांधी ने लोहिया से सिगरेट पीना छोड़ने को कहा था। इस पर लोहिया ने बापू को कहा था कि 'सोच कर बताऊंगा।' कहते हैं, तीन महीने के बाद उन्होंने गांधी से कहा था कि मैंने सिगरेट छोड़ दी।

सोच के साथ जीवनशैली भी बिंदास

डॉ. लोहिया जीवन भर रमा मित्रा के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहे। रमा मित्रा दिल्ली के मिरांडा हाउस में प्रोफेसर रहीं। दोनों के एक-दूसरे को लिखे पत्रों की किताब भी प्रकाशित हुई है। कहा जाता है कि लोहिया ने अपने संबंध को कभी छिपाकर नहीं रखा। लोग जानते थे। लेकिन उस दौर में निजता का सम्मान होता था। लोहिया ने जीवन भर रमा मित्रा के साथ अपने संबंध को निभाया। आप सोच सकते हैं कि जो व्यक्ति 1950-60 के दशक में इतने आजाद ख्याल का था, वह कितना बिंदास होगा। लोहिया महिलाओं के आजाद ख्याल और सशक्त भूमिका के पक्षधर थे।

मौत भी कम विवादित नहीं

डॉ. लोहिया की मौत भी कम विवादास्पद नहीं रही। बताते हैं उनका प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ गया था, जिसका ऑपरेशन दिल्ली के सरकारी विलिंग्डन अस्पताल में किया गया था। उनकी मौत के बारे में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'बियांड द लाइन्स' में ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा है, कि 'मैं राम मनोहर लोहिया से अस्पताल में मिलने गया था। उन्होंने मुझसे कहा कुलदीप मैं इन डॉक्टरों के चलते मर रहा हूं।' देखिए, लोहिया की बात सच निकली। डॉक्टरों ने उनकी बीमारी का गलत इलाज कर दिया था। आज वही अस्पताल राम मनोहर लोहिया के नाम से जाना जाता है।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story