Dushyant Kumar Award: न्यूजट्रैक के संपादक राजकुमार सिंह के गजल संग्रह 'हर किस्सा अधूरा है' को दुष्यंत कुमार सम्मान

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने न्यूजट्रैक के संपादक को दुष्यंत कुमार सम्मान से नवाजा

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Newstrack NetworkPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 1 Oct 2021 5:17 PM GMT
Rajkumar Singh
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न्यूजट्रैक डॉट कॉम के संपादक राजकुमार सिंह (फोटो-न्यूजट्रैक)

Dushyant Kumar Award: न्यूज़ट्रैक (newstrack) के संपादक राजकुमार सिंह (Rajkumar Singh) को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने उनके गजल संग्रह हर किस्सा अधूरा है (har kissa adhura hai) के लिए ₹75000 के दुष्यंत कुमार पुरस्कार (Dushyant Kumar Award) से नवाजा है। राजकुमार सिंह (Rajkumar Singh) की इस उपलब्धि के लिए न्यूज़ ट्रैक परिवार उनका अभिनंदन करता है।

राजकुमार सिंह (Rajkumar Singh) 1994 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में सक्रिय रहे हैं। जिंदगी को बहुत करीब से देखा है। संवेदनाओं को समेट कर रखा है। प्रिंट में नवभारत टाइम्स लखनऊ में बतौर राजनीतिक संपादक उन्होंने कार्य किया है। लेकिन हिंदुस्तान अखबार के प्रयागराज संस्करण, वाराणसी संस्करण में वह स्थानीय संपादक रहे हैं। लखनऊ संस्करण में भी उन्होंने काम किया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सहारा समय उत्तर प्रदेश और News24 चैनल लखनऊ में वह ब्यूरो चीफ रहे हैं। वायस ऑफ़ इंडिया न्यूज़ चैनल के स्थानीय संपादक रहे हैं।


'हर किस्सा अधूरा है' (har kissa adhura hai) राजकुमार सिंह ने इस गजल संग्रह में बहुत ही सुंदर और सहज ढंग से अपनी भावनाओं को गजल के माध्यम से अभिव्यक्ति दी है। उनकी एक गजल का मतला है जितनी भी मिल जाए कम लगती है, देर से मिली खुशी गम लगती है या फिर यह कि नजर को फिर धोखे बार-बार हुए, यूं जीने के बहाने हजार हुए यह पंक्तियां अपनी सहजता में बिना आपको आतंकित किए आपके साथ हो लेती हैं। यही राजकुमार सिंह (Rajkumar Singh) की कलम की विशेषता है। इस संग्रह में राजकुमार सिंह (Rajkumar Singh) की गजलों के अलावा उनकी कुछ नज्में भी आपको पढ़ने को मिलेंगी।

राजकुमार सिंह (Rajkumar Singh) कहते हैं बड़ी लंबी है ये रात अब सहर आए चुपके चुपके से कोई खुशखबर आए। माना इश्क पर है जमाने की निगाह आए गर वह तो खुद से बेखबर आए। मुसाफिरों आओ मिलकर ये दुआ करें ना सही अपना किसी का तो घर आए। मैं एक काफिर मुझे दोजख है कबूल, वाइज तुझमें तो अब खुदा नजर आए। हम दोनों ही तो जिंदगी के मारे हैं, चलो हममें अब ये जिंदगी नजर आए।

हिंदी गजल अब एक सक्षम विधा बन चुकी है। मौजूदा भारतीय समाज के अनुभव विस्तार में अलग-अलग जगहों पर अनेक शायर हैं जो उर्दू की इस लोकप्रिय विधा को अपने ढंग से बरत रहे हैं। कहीं उर्दू शब्दों की बहुतायत है कहीं खड़ी बोली के शब्दों के प्रयोग हैं तो कहीं आमफहम जबान में जिंदगी के तजुर्बे की अक्कासी की जा रही है। राजकुमार सिंह की गजलें सबकी समझ में आने वाली शब्दावली में बिल्कुल आम मुहावरे को गजल में बांधने की कोशिश हैं। यह रोजमर्रा जीवन के अनुभव, संवेदना को गजल के फार्म में ऐसे पिरो देते हैं कि पढ़ते हुए पता ही नहीं चलता कि आप जिंदगी से किताब में कब आ गए और कब किताब से वापस अपनी जिंदगी में चले गए।

Raghvendra Prasad Mishra

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