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Kalyan Singh: 10 बार बने थे विधायक, कभी बनाई अपनी पार्टी तो कभी सपा से मिलाया हाथ, ये हैं 12 अनसुनी कहानियां
कल्याण सिंह को हिंदुत्व का बड़ा चेहरा माना जाता है। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में भी अहम भूमिका अदा की थी। साथ ही, उनके जीवन के कई ऐसे किस्से हैं, जिससे आम लोग अंजान हैं। पेश हैं उनके जीवन से जुड़ी 12 अनसुनी कहानियां।
Kalyan Singh: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने 89 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। वह पिछले 48 दिनों से लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) में भर्ती थे। जहां डॉक्टरों द्वारा उनका इलाज चल रहा था। लेकिन, धीरे-धीरे उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। जिसके बाद, शनिवार की रात उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। कल्याण सिंह को हिंदुत्व का बड़ा चेहरा माना जाता है। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में भी अहम भूमिका अदा की थी। साथ ही, उनके जीवन के कई ऐसे किस्से हैं, जिससे आम लोग अंजान हैं। पेश हैं उनके जीवन से जुड़ी 12 अनसुनी कहानियां।
कल्याण सिंह की 12 अनसुनी कहानियां:-
1. यूपी के अलीगढ़ में जन्मे कल्याण सिंह लोध बिरादरी से ताल्लुक रखते थे, अतरौली विधानसभा सीट से उन्होंने पहली बार विधानसभा चुनाव 1962 में 30 साल की उम्र में लड़ा था, लेकिन हार गए थे। 5 साल बाद उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को 4 हजार वोटों से हराकर चुनाव जीता था।
2. अतरौली सीट कल्याण सिंह की परंपरागत और पारिवारिक सीट बनीं। कल्याण खुद इस सीट से 10 बार विधायक बने, तो उनकी बहू प्रेमलता और पौत्र संदीप सिंह भी इसी सीट से चुनाव जीते। संदीप सिंह मौजूदा वक्त में यूपी सरकार में राज्यमंत्री हैं, तो कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह राजू भैय्या एटा से बीजेपी सांसद हैं। खुद कल्याण सिंह 2009 में एटा से निर्दलीय सांसद बने थे।
3. कल्याण सिंह की पहचान लोधी राजपूतों के मुखिया और यूपी में हिन्दूवादी नेता के तौर पर थी, 6 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी विध्वंस के बाद कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। इसी घटना ने उन्हें पूरे देश में हिन्दुओं का बड़ा नेता बना दिया था।
4. कल्याण सिंह को यूपी के लोग नकल अध्यादेश के लिए भी याद करते हैं। अपने शासनकाल में कल्याण सिंह नकल अध्यादेश लेकर आए थे और नकल करने वालों को जेल भेजने के इस कानून ने हड़कंप मचा दिया था। उस वक्त राजनाथ सिंह यूपी के शिक्षा मंत्री थे। नकल करने वालों के लिए कल्याण का ये कानून काल बन गया था।
5. यूपी की राजनीति में एक अनूठा प्रयोग हुआ था। बीएसपी और बीजेपी में समझौता 6-6 महीने के शासन का हुआ था। शर्त के हिसाब से पहले मायावती 21 मार्च 1997 को मुख्यमंत्री बनीं। 6 महीने का कार्यकाल पूरा हुआ और 21 सितंबर 1997 को कल्याण सिंह ने यूपी के सीएम पद की शपथ ली। कल्याण सिंह ने मायावती के कई फैसले बदल दिए। 19 अक्टूबर को मायावती ने कल्याण सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने के लिए 2 दिनों का वक्त दिया।
6. 21 अक्टूबर को बहुमत साबित करने के दिए यूपी विधानसभा में जूते-चप्पल व लात-घूंसे चले। माइक फेंके गए। विपक्ष ने वॉक आउट कर दिया। कल्याण सिंह ने अपना बहुमत साबित किया। उन्हें 222 विधायकों का समर्थन मिला। मायावती के समर्थन वापस लेने और बहुमत साबित होने के बीच 2 दिनों में यूपी में हर दल में तोडफोड़ हुई और इसका मास्टरमाइंड माना गया। कल्याण सिंह ने भी दल छोड़कर लोगों को मंत्री बना दिया। पहली बार देश में 93 मंत्रियों के मंत्रिमंडल ने शपथ ली थी।
7. अपने पहले कार्यकाल में जहां कल्याण सिंह माफियाओं के लिए सिरदर्द थे, वहीं दूसरे कार्यकाल में उन्होंने माफियाओं को मंत्री बनाया। कभी राजा भैया को कुंडा का गुंडा बताने वाले कल्याण सिंह ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया। क्योंकि, उन्होंने मायावती के खिलाफ कल्याण सिंह की मदद की थी।
8. बीजेपी से नाराज होकर कल्याण सिंह ने अपनी पार्टी बनाई, जिसका नाम 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' था। हालांकि, बाद में वह समाजवादी पार्टी के संपर्क में आ गए और उन्होंने अपने बेटे को मुलायम सिंह सरकार में मंत्री बनवा लिया। लेकिन, बाद में वो फिर बीजेपी में आ गए। 2004 में बुलंदशहर से सांसद बने। बीजेपी ने उन्हें 2007 में विधानसभा चुनाव में चेहरा बनाया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। कल्याण सिंह ने एक बार फिर पार्टी छोड़ दी और 2009 में एटा से निर्दलीय सांसद बने।
9. 2009 में निर्दलीय सांसद बनने के बाद चर्चाएं थी कि कल्याण सिंह बीजेपी में आएंगे। लेकिन, उन्होंने नई पार्टी बनाई, जिसका नाम 'जनक्रांति पार्टी' था और अपने बेटे राजवीर सिंह राजू को इसका अध्यक्ष बनाया। इस बीच मुलायम सिंह के मंच पर कल्याण सिंह नजर भी आए। यहां तक उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए माफी भी मांगी। इस माफी और बीजेपी में आने-जाने की शैली के कारण उनकी हिन्दूवादी छवि, हिन्दुओं के दिल में कमजोर हुई।
10. कल्याण सिंह 2013 में फिर बीजेपी में आ गए। बाद में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। 2014 और 2019 में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह 'राजू' एटा जिले से सांसद बने और 2017 में संदीप सिंह (कल्याण सिंह के पौत्र) यूपी सरकार में राज्य मंत्री बने।
11. कल्याण सिंह की सियासी अहमियत को इस बात से समझा जा सकता है कि यूपी में लोधी वोट करीब 6 प्रतिशत हैं और कल्याण सिंह लोधियों के बीच सर्वमान्य नेता रहे।
12. कल्याण सिंह एक और नाम को लेकर चर्चा में रहे। वो नाम था कुसुम राय। कुसुम राय लखनऊ के राजाजीपुरम से पार्षद थीं और कल्याण सिंह की करीबी थी। कहा जाता है कि जब कल्याण सिंह सीएम थे, तो कल्याण सिंह से मिलने के लिए कुसुम राय को परमिशन जरूरी नहीं होती थी। वह यूपी सरकार में मंत्री भी रहीं। राज्यसभा भी गई। कुसुम राय कई फैसलों को बदल देने और बदलवा देने का दम रखती थीं। कुसुम यूपी महिला आयोग की अध्यक्ष भी थीं।