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पूर्वांचल की राजनीति में कितना नुकसान होगा तिवारी कुनबे से भाजपा - बसपा को
Lucknow :एक तरफ जहां ब्राम्हणों पर सभी राजनीतिक दल डोरे डालने का काम कर रहे हैं वही हरिशंकर तिवारी के बसपा से अलग होने से जहां समाजवादी पार्टी को इसका बड़ा चुनावी लाभ मिल सकता है।
Lucknow : पूर्वांचल क्षेत्र में हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) का कुनबा हर चुनाव में अपनी बड़ी भूमिका निभाता आ रहा है। लेकिन बदले राजनीतिक माहौल के चलते इस बार सारे राजनीतिक दलों की निगाह परिवार पर टिकी है। कहा जा रहा है कि ताकतवर ब्राम्हण परिवार के बसपा(bsp) से हटने और समाजवादी पार्टी(Samajwadi Party) में शामिल होने जा रहे इस कुनबे ने राजनीति(UP Politics) की दिशा बदलने का काम किया है।
एक तरफ जहां ब्राम्हणों पर सभी राजनीतिक दल डोरे डालने का काम कर रहे हैं वही हरिशंकर तिवारी के बसपा से अलग होने से जहां समाजवादी पार्टी को इसका बड़ा चुनावी (UP Election 2022) लाभ मिल सकता है वहीं बसपा के ब्राम्हण वोटों (Brahmin votes) के सहारे सत्ता हासिल करने की योजना को पलीता लग सकता है। जबकि दूसरी तरफ पूर्वांचल में अपनी तैयारियों को लेकर आगे बढ़ रही भाजपा(BJP) को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
अखिलेश यादव से नजदीकियां बढ़ रही
उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पहले ही बसपा सुप्रीमों मायावती ने इस पूरे कुनबे को केवल इस बात से नाराज होकर पार्टी से बाहर कर दिया, जब उन्हे पता चला कि 'तिवारी कुनबे' की अखिलेश यादव से नजदीकियां बढती जा रही है। एक समय मायावती ने इस परिवार के सहारे ही पूर्वांचल में अपनी पार्टी को मजबूत करने का काम किया था।
यह बात अलग है यह बात अलग है कि मायावती(Mayawati) ने भी इसके बदले परिवार को इसका पारितोषिक देते हुए बेटे कुशल तिवारी को सांसद दूसरे बेटे को विधायक तथा भांजे गणेश शंकर पांडे को विधानपरिषद सभापति बनाने का काम किया।
राजनीति गलियारों में अब इस बात की चर्चा जोरों पर है कि तिवारी परिवार को लग रहा है कि बसपा की ताकत खुद कमजोर हुई है। साथ ही समाजवादी पार्टी की बढती ताकत से इसी पार्टी में आना बेहतर रहेगा। जिसके चलते इस परिवार ने बसपा से किनारा करने का फैसला लिया है।
अस्सी और नब्बे के दशक में बाहुबली कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी की ताकत का अहसास हर राजनीतिक दल को होता रहा और हरिशंकर तिवारी का कद पूर्वांचल क्षेत्र में बढता गया।
तिवारी परिवार समाजवादी पार्टी के साथ
यही कारण है कि 1997 से लेकर 2007 तक वह प्रदेश सरकारों में मंत्री पद से नवाजे जाते रहे फिर चाहे वह कल्याण सिंह की सरकार हो अथवा राजनाथ सिंह या फिर मुलायम सिंह यादव की ही क्यों न हो।
कहा जा रहा है कि पूर्वांचल क्षेत्र में वर्षो से चली आ रही ब्राम्हण -ठाकुर टकराव की राजनीति के चलते ही तिवारी परिवार समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ने जा रहा है। इस पूरे क्षेत्र में ब्राम्हणों में हरिशंकर तिवारी का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। उधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी एक बड़े ब्राम्हण नेता की तलाश काफी दिनों से थी जो अब पूरी होने जा रही है।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि पूर्वांचल में 147 विधानसभा सीटें हैं। 2017 में भाजपा को इस इलाके में 102 सीट मिली थीं। 2012 में अखिलेश यादव की सत्ता का रास्ता भी पूर्वांचल से होकर गुजरा था और 2007 में मायावती के सत्ता पर काबिज होने में पूर्वांचल की भूमिका अहम थी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भाजपा को 2017 में मिली 312 सीटों में इस पूरे क्षेत्र की बड़ी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।