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Lucknow News : पहले कोर्ट की फटकार, फिर लॉकडाउन की मार, आखिर कैसे जिंदगी चलाएं बंगाली परिवार?
Lucknow News : राजधानी लखनऊ में एक ऐसा गांव भी है जहां हर घर में सांप बिच्छू पहले हुए हैं। और उनके बच्चे भी सांप बिच्छू के साथ ही खेलते हैं। वे लोगों से मांग कर परिवार का पेट पालने को मजबूर हो रहे हैं।
Lucknow News : सांप बिच्छू आदि के नाम से ही हमारा मन सिहर उठता है लेकिन राजधानी लखनऊ में एक ऐसा गांव भी है जहां हर घर में सांप बिच्छू पहले हुए हैं। और उनके बच्चे भी सांप बिच्छू के साथ ही खेलते हैं। हम बात कर रहे हैं लखनऊ के सरोजनी नगर तहसील के अंतर्गत आने वाले सौसीरन खेड़ा गांव की जहां लगभग 60 बंगाली परिवार रहते हैं।
बंगाली परिवारों से जब हमने बात किया तो उनका दर्द छलक उठा उन्होंने बताया कि कैसे पहले कोर्ट के द्वारा सांप बिच्छू आदि के खेल दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया वहीं उसके बाद बची कुची कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी।
भूखे ही सोने को मजबूर बंगाली
सपेरा पृथ्वी नाथ बंगाली ने बताया कि यह सांप बिच्छू दिखाने का खेल वे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से करते आ रहे हैं। वहीं कुछ समय पहले कोर्ट के द्वारा इन सभी दिखाए जाने वाले खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
जिसके बाद वह बड़ी किसी जगह पर या शहरों में जाकर अपना खेल नहीं दिखा पाते थे। लेकिन परिवार की मजबूरी के चलते गांव बात छोटे कस्बों में जाकर सांप बिच्छू का खेल दिखाते थे जिससे वे लोग अपने परिवार को किसी तरह काल पूछ रहे थे।
लेकिन कोरोनावायरस महामारी इन बंगाली परिवारों पर भी कहर बनकर टूटी लॉकडाउन लगने के बाद से ही जो थोड़ा बहुत गुजारा हो रहा था वह भी पूरी तरीके से बंद हो गया। अब किसी तरह से लोगों से मांग कर परिवार का पेट पालने को मजबूर हो रहे हैं।
कई अन्य बंगाली परिवारों से हमने बात किया तो उन्होंने बताया कि किस जद्दोजहद के साथ हुआ अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रहे हैं। ना तो कोई और काम है जिससे वह अपने परिवार का पालन पोषण कर सके और ना ही वह सांप बिच्छू का खेल दिखाने कहीं जा पा रहे हैं।
बंगाली परिवारों की मांग
उनका कहना है कि कभी कबार दिन में एक बार खाना ही नसीब होता है तो कभी बच्चे भूखे ही सोने को मजबूर हो जाते हैं। वहीं इन बंगाली परिवारों में से कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें सरकार द्वारा दिए जा रहे आवास की भी सुविधा नहीं मिली उन्होंने बताया कि जब भी वह अपने आवास की मांग करते हैं तो उनसे कहा जाता है कि आपका नाम लिस्ट में है ही नहीं।
सपेरों ने बताया कि लॉकडाउन और महामारी की वजह से वाह सावन के महीने में मंदिरों में भी नहीं जा सके वहीं वन विभाग के अफसरों के द्वारा उनके सांप को भी जंगलों में छुड़वा दिया गया है।
बंगाली परिवारों का कहना है कि या तो हमें सरकार द्वारा किसी स्वरोजगार योजना से जोड़ा जाए या हमें हमारा पीढ़ियों से चला आ रहा काम करने दिया जाए।
फिलहाल अब यह तो वक्त ही बताएगा कि आखिर इन बंगाली परिवारों को कब सहूलियत मिल पाती है।