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Lucknow News: चुनाव के पहले कल्याण सिंह की छवि को बदलने पर आमादा भाजपा

कभी हिन्दूवादी नेता कहे जाने वाले कल्याण सिंह के निधन के बाद अब उनकी छवि एक पिछडे़ नेता के तौर पर बनाने की भाजपा रणनीति..

Shreedhar Agnihotri
Report Shreedhar AgnihotriPublished By Deepak Raj
Published on: 25 Aug 2021 4:45 PM IST
Kalyan Singh Untold Story
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Kalyan Singh Untold Story

Lucknow News: कभी हिन्दूवादी नेता कहे जाने वाले कल्याण सिंह के निधन के बाद अब उनकी छवि एक पिछडे़ नेता के तौर पर बनाने की भाजपा रणनीति तैयार कर रही है। भाजपा अपनी स्थापना काल के बाद से ही लगातार सवर्णो की पार्टी कही जाती रही पर 1990 के आसपास जब मंडल की राजनीति पर कमंडल भारी पड़ा तब यह ठप्पा साफ हो सका। उस दौर में कल्याण सिंह से लेकर उमाभारती विनय कटियार और साक्षी महाराज आदि सभी नेता पिछडों के नेता न होकर हिन्दूवादी नेता कहे जाते थे।


कल्याण सिंह , फोटो- न्यूजट्रैक नेटवर्क


लेकिन अब पहली बार ऐसा हो रहा है कि कल्याण सिंह की छवि को पिछड़े नेता के तौर पर उभार उभरा जा रहा है। पार्टी की इस सारी रणनीति के पीछे आगामी विधानसभा चुनाव को माना जा रहा है। भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी इस बात को स्वीकार करते हैं कि अयोध्या आंदोलन के कारण बाबूजी की छवि हमेश हिन्दुत्ववादी नेता की ही रही है। यह पहली बार हो रहा है कि उन्हें पिछड़ों का नेता बताया जा रहा है। वह स्वीकार करते हैं कि इसके पीछे पार्टी की पिछड़ा वोट बैंक हासिल करने की रणनीति छिपी है।

कल्याण सिंह लोघी समुदाय के सबसे बडे़ नेता रहे हैं

दरअसल भाजपा यह भली भांति जानती है कि अपने हिन्दुत्वादी एजेंडे के कारण उसका सवर्ण वोट बैंक कहीं छिटकने वाला नहीं है। लेकिन पिछड़ा वोट बैंक हासिल करने के लिए इससे बेहतरीन मौका नहीं मिल सकता है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कल्याण सिंह लोघी समुदाय के सबसे बडे़ नेता रहे हैं। मध्य यूपी में कानपुर इटावा फर्रूखाबाद औरेया से लेकर अलीगढ मुरादाबाद बुलंदशहर आदि में इस समुदाय की बड़ी संख्या है। यादव और कुर्मी जाति के बाद पिछड़ों में यही सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है।

प्रदेश की भाजपा सरकार ने हाल ही में स्व. कल्याण सिंह के नाम पर छह सडकों का नामकरण कराया। साथ ही प्रदेश के कई जिलों में कल्याण सिंह की मूर्ति लगाने की भी योजना है। इसके बाद अस्थि कलश यात्रा का भी आयोजन किया जाना है। यही नहीं भाजपा विधानसभा चुनाव के पहले पिछड़ा सम्मेलन कराना चाहती है। इन सम्मेलनों के माध्यम से पार्टी पिछड़ी जातियों को यह बताने का प्रयास करेगी कि भाजपा ही उनकी सबसे हितैषी पार्टी है। साथ ही केन्द्र सरकार पर बढ़ते जा रहे जातीय जनगणना के दबाव को भी कम कर सकेगी।

दरअसल पूर्वांचल की छोटी पार्टियों का समर्थन भी भाजपा के पास नहीं है। यह जाति आधारित पार्टियां सत्ताधारी दल भाजपा की लगातार खिलाफत कर रही हैं। जबकि पूर्वांचल क्षेत्र इस समुदाय का कब्जा है। यहां पर लगभग 100 सीटें ऐसी हैं जिसे लेकर समाजवादी पार्टी कांग्रेस और बसपा की पैनी निगाह लगी हुई है। उधर लोक सभा में अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित 127वां संविधान संशोधन बिल दो तिहाई बहुमत से पारित होने के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग की लिस्ट तैयार करने का अधिकार राज्यों को मिल गया है। अभी तक यह अधिकार केंद्र सरकार के पास ही था। इसलिए कहा जा रहा है कि जल्द ही प्रदेश की योगी सरकार पिछड़ो को लेकर कोई बडी घोषणा कर सकती है।

Deepak Raj

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