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UP Election 2022: क्या UP में कभी 'किंग' रहा ब्राह्मण, आज 'किंगमेकर' बन गया

Y-Factor Yogesh Mishra: उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक सत्ता की कमान ब्राह्मणों के हाथों में रही है। यूपी में नारायण दत्त तिवारी इस समुदाय के आखिरी ब्राह्मण चेहरा थे। एक दौर था जब प्रदेश की राजनीति में सवर्णों, खासकर ब्राह्मणों का वर्चस्व था।

Yogesh Mishra
Report Yogesh Mishra / aman
Published on: 27 Jan 2022 5:59 PM IST (Updated on: 24 Feb 2022 6:17 PM IST)
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Y-Factor Yogesh Mishra: उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक सत्ता की कमान ब्राह्मणों के हाथों में रही है। यूपी में नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) इस समुदाय के आखिरी ब्राह्मण चेहरा थे। एक दौर था जब प्रदेश की राजनीति में सवर्णों, खासकर ब्राह्मणों का वर्चस्व था। आजादी के बाद से साल 1989 उत्तर प्रदेश छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री ने सत्ता की कमान संभाली। ये क्रमशः गोविंद वल्लभ पंत (Govind Vallabh Pant), सुचेता कृपलानी (Sucheta Kriplani), कमलापति त्रिपाठी (Kamalapati Tripathi), हेमवती नंदन बहुगुणा (Hemvati Nandan Bahuguna), श्रीपति मिश्र (Shripati Mishra) और नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) थे। इनमें से एनारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) तीन बार मुख्यमंत्री बने।

इतिहास में जिस ब्राह्मण समाज (Brahmin Samaj) के चेहरे सत्ता के शिखर तक गए। आज प्रदेश में वही मात्र 'वोट बैंक' बनकर रह गए हैं। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की कुल आबादी करीब 12 प्रतिशत है। बीते तीन विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के नतीजे बताते हैं कि इस समाज का साथ जिस पार्टी को एकमुश्त मिला, सरकार उसी की बनी। आगामी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) के मद्देनजर सभी दलों ने ब्राह्मण राजनीति को साधने की तैयारी शुरू कर दी है। इससे तो यही प्रतीत होता है कि यूपी की सत्ता में लम्बे समय तक 'किंग' की भूमिका में रहने वाला ब्राह्मण, आज 'किंगमेकर' की भूमिका में दिख रहा है।

2017 में कुल 58 में से 46 बीजेपी विधायक

साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2017) में जीतकर आने वाले विधायकों में ब्राह्मणों की संख्या 58 है। इनमें सत्ताधारी दल बीजेपी के ही 46 एमएलए हैं। इनमें नौ ब्राह्मण विधायकों को योगी सरकार (Yogi Government) में मंत्री बनाया गया है। 2017 में बीजेपी को करीब 80 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे, जबकि 2012 में यह आंकड़ा 38 प्रतिशत था। इसी तरह साल 2007 विधानसभा में बीजेपी को 40 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट किया था।

2012 में सपा की टिकट से 21 ब्राह्मण विधायक बने

साल 2012 में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने 224 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इनमें 21 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इन्हीं में से एक थे माता प्रसाद पांडेय, जिन्हे तत्कालीन सपा सरकार में विधानसभा का स्पीकर बनाया गया था। अभिषेक मिश्रा और पवन पांडेय जैसे विधायकों को अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल में जगह भी दी थी। आज भी ये ब्राह्मण चेहरे सपा से जुड़े हैं और काम कर रहे हैं।

सतीश चंद्र मिश्रा बसपा का ब्राह्मण फेस

आंकड़ों की मानें तो यूपी के कई ब्राह्मण बहुल आबादी वाले इलाकों में इस जाति का वोट प्रतिशत 20 फीसदी से भी अधिक है। इसी को भुनाते हुए साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही थी। 2007 के विधानसभा चुनाव (2007 assembly elections) में बसपा (BSP) ने 56 ब्राह्मण चेहरों को टिकट दिया था, जिसमें 41 जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) में सबसे बड़ा ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्रा का है। इनके अलावा नकुल मिश्रा और राम शिरोमणि शुक्ल जैसे नाम भी पार्टी से जुड़े हैं।

जो कल सत्ता पलटते थे, आज महज वोट बैंक

आगामी 2022 विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) से पूर्व प्रदेश में एक बार फिर 'ब्राह्मणों' की बात जोर-शोर से उठी है। ऐसा लग रहा है जैसे तीन दशक बाद ब्राह्मणों को उभरते देखा जा रहा है। बीजेपी जैसे पार्टी जो सत्ता में है और बसपा, सपा जैसी पार्टियां जो राज्य की सत्ता में आना चाहती है, एक बार फिर ब्राह्मणों को रिझाने में जुटी है। लेकिन अब यह सोचने की बात है कि आखिर बदला क्या? नजर दौड़ाएं, तो ब्राह्मण पहले भी सत्ता हासिल करने में बड़े भागीदार थे। समय के साथ धीरे-धीरे सत्ता से इनकी पकड़ ढ़ीली होती चली गई। अब एक बार फिर इनका उभार देखने को मिल रहा है। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि कल जो ब्राह्मण सत्ता पलटने की ताकत रखते थे, आज वो महज एक वोट बैंक बनकर रह गए हैं।

मंडल कमीशन ने किया बंटाधार

उत्तर प्रदेश की राजनीति को अगर समझना है तो उसे दो हिस्से में बांटकर देखने की जरूरत है। पहला भाग है 1990 से पहले और दूसरा 1990 के बाद का। दरअसल, यह वो कालखंड था जब मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की गई। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में सत्ता की कमान जो अब तक ब्राह्मणों और राजपूतों के हाथ में थी रातोंरात दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों के हाथ में चली गई। मंडल-कमंडल की राजनीति ने सत्ता के केंद्र में रहने वाले ब्राह्मणों को हाशिए पर धकेल दिया। अब ब्राह्मण कांग्रेस से छिटककर कभी समाजवादी पार्टी तो कभी बहुजन समाज पार्टी (UP Assembly Election 2022) तो कभी बीजेपी के पाले में आये, गये। इस समय यह सबसे बड़ा फ़्लोटिंग वोट बैंक है।

कब-कब किस पार्टी से कितने ब्राह्मण विधायक सदन पहुंचे:

वर्तमान में उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी की बात करें तो वर्ष 1993 में 17, 1996 में 14, 2002 में आठ, 2007 में तीन और 2012 में 6 ब्राह्मण विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन 2017 में तो बीजेपी के टिकट से रिकॉर्ड 46 विधायक जीतकर सदन पहुंचे। बहुजन समाज पार्टी (UP Assembly Election 2022) के टिकट पर 1993 में एक भी ब्राह्मण विधायक विधानसभा नहीं पहुंच पाया। जबकि, 1996 में दो, साल 2002 में चार, 2007 में 41 और 2012 में 10 ब्राह्मण विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। 2017 में भी बसपा ने 66 ब्राह्मणों को टिकट दिया था।

वहीं, सपा की बात करें तो वर्ष 1993 में मात्र दो विधायक, 1996 में तीन, 2002 में 10 विधायक, 2007 में 11 एमएलए और 2012 में 21 ब्राह्मण विधायक जीतकर सदन पहुंचे थे। जबकि, कांग्रेस पार्टी से साल 1993 में पांच विधायक, 1996 में चार, 2002 में सिर्फ एक, 2007 में दो और वर्ष 2012 में तीन ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।

सिर्फ वोट प्रतिशत ही सबकुछ नहीं

चुनाव आते ही सभी आंकड़ों की भाषा में ही बात करते हैं जबकि सामाजिक तौर पर हकीकत उससे अलग भी होती है। यूपी की सियासत में भले ही ब्राह्मणों का वोट प्रतिशत 10 से 12 प्रतिशत तक सिमटा दिख रहा हो। लेकिन यह भी सच है कि ब्राह्मणों का सामाजिक प्रभाव इससे कहीं अधिक है। ब्राह्मण समाज (brahmin samaj) प्रभुत्वशाली होने की वजह से राजनीतिक माहौल बनाने में भी सक्षम है। 1990 से पहले तक प्रदेश में सत्ता की कमान अधिकतर ब्राह्मण चेहरों के हाथों में रही थी, लेकिन अब राजनीतिक पार्टियां उन्हें सिर्फ वोट बैंक समझ रही है। लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह ब्राह्मण को लुभाने की कोशिश हो रही है, वो कुछ और ही सच्चाई बयां कर रही है।

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Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

Founder & Editor in Chief - Newstrack.com & Apnabharat.org

Journalism for Yogesh Mishra is not a profession but a mission. In his career, spanning over 26 years, he has served just not as journalist but an educationist and literary as well. Looking at journalism as an instrument of change, he has also highlighted corruption and problems faced in various sectors like education, health, water, sanitation and agriculture. The exposes to his credit which deserve mention include largest tax evasion in the country by Hasan Ali and the fraud committed by 25 Indians, while he was working for the Outlook magazine as the UP Bureau Head. The amount involved was whopping Rs 18,000 crores. He was the first to report the PMO’s involvement in the ‘2G Spectrum Scam’, during the UPA regime. Another commendable work by him is exposing the Commonwealth Games Scam along with the video footage of a meeting before the beginning of the tournament. The issue of banning the video is sub judice. His news item, “Uttar Pradesh ke sau gaon bhi Nirmal Gram Pusaraskar ke layak nahi” exposed how the state government wrongly claimed prizes for 1,269 villages. It led to the cancellation of the prizes. Even UNICEF research testified and led to discontinuation of the NIRMAL GRAM AWARDS. He is, presently Member of Fee Review committee set up by the government of Uttar Pradesh to fight menace of arbitrary fee structure in private schools across the state. Many of his suggestions concerning electoral reforms have been adopted and implemented by the Election Commission of India. He was a member of the ‘Navoday Vidyalaya Samiti’, review committee constituted by Govt. of India for the implementation of Sarv Siksha Abhiyaan in UP. Besides writing in national and international newspapers and magazines, he has taken up teaching assignments and served as a visiting faculty in about a dozen universities. Author of ten books, he has also received prestigious Madhu Limaye and Yash Bharti awards. His new goal is to set up a new media house. A beginning has been already made as he has launched a multi-lingual news portal and a weekly magazine, Apna Bharat.

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