Lucknow News: 81 वर्ष के जवान को पुत्र के प्रयास से सेना कोर्ट से मिली दिव्यांगता पेंशन

न्यायाधीश उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने दिव्यांगता पेंशन देने का फैसला सुनाया है।

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Newstrack NetworkPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 5 Sep 2021 12:16 PM GMT
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आर्मी कोर्ट की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

Lucknow News: देवरिया निवासी सच्चिदानंद शुक्ला को 81 वर्ष की उम्र में न्यायाधीश उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने दिव्यांगता पेंशन देने का फैसला सुनाया है। मामला था कि सच्चिदानंद शुक्ला 1963 में सेना में भर्ती हुए और 16 वर्ष देश की सेवा करके 1979 में रिटायर हुए। उसके बाद 1983 में डिफेंस सेक्योरिटी कार्प्स में भर्ती हुए और 9 वर्ष की सेवा के बाद उन्हें मानसिक बीमार बताते हुए बगैर दिव्यांगता पेंशन दिए घर भेज दिया गया।

उन्होंने रक्षा-मंत्रालय और भारत सरकार को इसके बारे में लिखा, लेकिन सरकार ने उसे ख़ारिज कर दिया। उम्र अधिक होने के कारण वह मुकदमे की पैरवी करने में असमर्थ थे। ऐसे में बुजुर्ग पिता के संघर्ष को पुत्र सतीश शुक्ला ने आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई और उन्होंने अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए 2019 में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से सेना कोर्ट लखनऊ में वाद दायर किया। पुत्र सतीश शुक्ला की लड़ाई दिव्यांगता पेंशन से मिलने वाले आर्थिक लाभ के लिए कम, पिता को न्याय दिलाना अधिक था।

न्यायाधीश उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने सुनवाई करते हुए दो वाद बिंदुओं पर विचार किया। क्या वादी की विकलांगता के पीछे सेना का कोई रोल है या नहीं और क्या पेंशन को राउंड फीगर में दिया जा सकता है। वादी के अधिवक्ता विजय पाण्डेय ने जोरदार दलील देते हुए कहा, इतनी लंबी सेवा में बीमारी का होना स्वयं में एक प्रमाण है कि इसके लिए सैन्य सेवा उत्तरदायी है। दूसरा स्पेशलिस्ट मेडिकल टीम ने ऐसा कोई साक्ष्य, सेना के समर्थन में नहीं प्रस्तुत किया है, जिससे यह साबित हो सके कि इसका संबध आनुवाशिकता या वादी की लापरवाही हो। इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट से लेकर विभिन्न अदालतों द्वारा कई निर्णय पारित किए गए हैं।

भारत सरकार के अधिवक्ता ने इसका जोरदार खंडन करते हुए कहा कि इस बीमारी का पता मेडिकल एक्जामिनेशन से नहीं लगाया जा सकता। क्योंकि यह एक आनुवांशिक मानसिक बीमारी है, इसलिए इस मुकदमे को जुर्माने के साथ खारिज किया जाए, लेकिन खण्ड-पीठ ने विपक्षी की दलील को ख़ारिज करते हुए भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी सभी आदेशों को ख़ारिज करते हुए आदेश सुनाया कि बीमारी का लंबी सैन्य सेवा के बाद होना, उसके बारे में मेडिकल बोर्ड को कोई स्पष्ट जवाब न होना और जवाब का गोलमोल होना यह साबित करता है कि इस बीमारी के लिए सेना उत्तरदायी है और वह चार महीने के अंदर वादी को दिव्यांगता पेंशन दें। यदि सरकार नियत समय में ऐसा नहीं करती तो उसे आठ प्रतिशत ब्याज भी वादी को देना होगा। साथ में नए सिरे से वादी का मेडिकल परीक्षण कराकर आगे की पेंशन भी सरकार तय करे।

Raghvendra Prasad Mishra

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