×

Lucknow News: यूपी चुनाव 2022 में ब्राह्मणों को रिझाकर जीत का फार्मूला निकाल रहे राजनीतिक दल

विपक्षी पार्टियां ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई हैं।

Network
Newstrack NetworkPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 8 Sep 2021 5:01 PM GMT
Mayawati in seminar
X

मायावती की फाइल तस्वीर (फोटो-न्यूजट्रैक)

Lucknow News: यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीति दलों ने कमर कस ली है। सभी सरकार की नीतियों को लेकर भाजपा को घेरने की कोशिश में लगे हुए हैं। वहीं इस बार चुनाव से पहले ब्राह्मण सभी दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गया है। सभी दल ब्राह्मणों को रिझाने में लगे हुए है। ब्राह्मणों को रिझाने के पीछे कारण भी है। कानपुर के बिकरू गांव कांड से कुछ सियासी दलों को लग रहा है कि ब्राह्मण वर्ग भाजपा से नाराज चल रहा है। ऐसे में विपक्षी पार्टियां ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई हैं। इस मामले में बसपा सबसे आगे दिख रही है। हालांकि ब्राह्मणों का एक बड़ा तबका किसी अपराधी के साथ खड़े होने को तैयार नहीं है। और वह भाजपा के अलावा किसी को बेहतर भी नहीं मान रहा है। फिर भी कोशिशें और प्रचार जारी हैं।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की तरफ से प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत की गई है।, जिसका नेतृत्व पार्टी राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र कर रहे हैं। वहीं सपा भी अभिषेक मिश्र को आगे करके ब्राह्मणों को सम्मान दिलाने की बात कर रही है। ज्ञात हो कि वर्ष 2007 में बसपा प्रमुख ने ब्राह्मण दांव चला था और प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब भी हुई थीं। ऐसे में उसे यह लग रहा है कि वह अगर ब्राह्मणों को रिझाने में सफल होती है, तो उसे सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता।

फिलहाल सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए ब्राह्मणों का साथ होना जरूरी है यह बात हर दल को पता है। तभी तो सारे दल ब्राह्मणों को रिझाने में लगे हुए हैं। हालांकि बदलते परिवेश में ब्राह्मणों का वर्चस्व कम हुआ है। इसका अंदाजा चुनावी परिणामों से लगाया जा सकता है। एक समय था जब उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण तय करते थे कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी। उस समय प्रदेश में भी मुख्यमंत्री ब्रा​ह्मण ही हुआ करते थे। लेकिन काफी समय गुजर गया है, प्रदेश में कोई ब्राहमण चेहरा मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। ब्राह्मण आज भी सरकार बनाने में अहम रोल निभा रहे हैं, लेकिन वह केवल अब सियासी मोहरा बन गए हैं।

यहां पिछड़ों और दलितों को भी रिझाकर सत्ता हासिल किया जा चुका है। वहीं इस बार सभी दलों के लिए ब्राह्मण जरूरी हो गए हैं। यह कितना जरूरी हैं यह तो चुनाव बाद पता चलेगा। फिलहाल बसपा प्रमुख मायावती ने 7 सितंबर को राजधानी लखनऊ में पार्टी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा है कि 2007 की तरह अगर ब्राह्मण वोटर्स गुमराह न हुए तो 2022 में बसपा की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता।

लेकिन इस सबके बावजूद ब्राह्मण इस सारी कोशिश में मौन दिख रहा है। ब्राह्मण खुलकर किसी दल के साथ खड़ा नहीं हो रहा है। ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उसके मन में क्या है। ब्राह्मणों की नजर मुस्लिम ध्रुवीकरण पर भी है। साथ ही हिन्दू और हिन्दुत्व को भी परख रहा है। फिलहाल मोदी का कोई विकल्प न होना भी उसे पता है। ऐसे में वह किधर जाएगा इसे आसानी से समझा जा सकता है।

Raghvendra Prasad Mishra

Raghvendra Prasad Mishra

Next Story