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मजाज़ लखनवी: वो शायर जो ता'उम्र मोहब्बत करता रहा, मग़र मोहब्बत उसे नसीब न हुई

Majaz Lakhnavi : मजाज़ ने अपनी पूरी ज़िंदगी में जो शे'र, नज़्में या ग़ज़लें लिखी, उनको उन्होंने पहले जिया, फ़िर उन्हें हर्फ़ों के ज़खीरे संग संजोकर लफ़्ज़ का रूप दिया।

Shashwat Mishra
Report Shashwat MishraPublished By Vidushi Mishra
Published on: 19 Oct 2021 5:19 PM IST
Majaz Lucknowi
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मजाज़ लखनवी (फोटो- कांसेप्ट)

Majaz Lakhnavi : जब-जब मोहब्बत को पढ़ा, लिखा या नये तरह से गढ़ने की कोशिश की जायेगी, तब-तब मजाज़ लखनवी (Majaz Lakhnavi) का ज़िक्र करना लाज़िमी हो जाएगा। मजाज़ का जन्म (Majaz Lakhnavi Ka Janam) उत्तर प्रदेश के रुदौली में 19 अक्टूबर, 1911 को हुआ था। मजाज़ (Majaz Lakhnavi Ka Pura Naam) का पूरा नाम असरारुल हक़ था। मजाज़ बाक़ी शायरों (majaz lakhnavi shayari) से अलग क्यों थे? आख़िर क्यों मजाज़ की लिखावट में इश्क़ ही इश्क़ है? इन सारी बातों का जवाब है 'उल्फ़त और वफ़ा।'

मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद

उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई

मजाज़ ने अपनी पूरी ज़िंदगी में जो शे'र, नज़्में (majaz ki nazmen) या ग़ज़लें (Majaz Lakhnavi Ki Gazal) लिखी, उनको उन्होंने पहले जिया, फ़िर उन्हें हर्फ़ों के ज़खीरे संग संजोकर लफ़्ज़ का रूप दिया। बस, इसीलिए मजाज़ औरों से हटकर हैं। अलग पहचान रखते हैं। मजाज़ के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह दिलफेंक किस्म के नहीं थे, बल्कि एक ही लड़की के प्यार में पूरी ज़िंदगी गुज़ार देने वालों में थे।

यह बात सच भी है कि मजाज़ लखनवी (Majaz Lakhnavi Ne Apni Poori Zindagi Ek Haseena Ke Naam) ने अपनी पूरी ज़िंदगी एक हसीना के नाम कर दी। उसी की याद में गीत लिखते रहे। उसी की मदहोशी में शब-ओ-सहर बिताये।

मजाज़ लखनवी (फोटो-सोशल मीडिया)

जितनी ज़िंदगी जी, उसी का नाम लेकर जिये। उसी की यादों में डूबना पसंद करते थे, इसलिए दिन भर मय का प्याला हाथों में लिये लखनऊ की सड़कों पर भटका करते थे। मजाज़ (Majaz Lucknowi Rekhta) अपनी नाज़नीं को ही यादकर क़भी ख़ुश तो क़भी ख़ामोश रहते थे।

दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को

और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं

मजाज़ के कुछ किस्से बड़े मशहूर हैं। जैसा कि सभी जानते हैं कि मजाज़ तरक्कीपसंद थे। उन्हें लोगों द्वारा ख़ूब प्यार मिला। उनकी रचनाओं को ख़ूब शोहरत भी मिली। उनके चाहने वाले अखंड भारत के अलग-अलग कोनों में ज़रूर मिलेंगे। बॉलीवुड अदाकारा नरगिस भी मजाज़ लखनवी की मुरीद (Nargis Majaz Lakhnavi Ki Mureed) थी।

किस्सा कुछ ऐसा है कि, एक बार नरगिस 'शहर-अदब-ओ-तहज़ीब' में किसी सिलसिले से आती हैं, तो उनकी मुलाकात मजाज़ से होती है। वह मजाज़ से आटोग्राफ की दरख़्वास्त करती हैं और उस वक़्त उन्होंने अपने सिर को सफेद रंग के दुपट्टे से ढ़क रखा था। फ़िर, मजाज़ उनकी डायरी में लिखते हैं-

'तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन,

तू इस आंचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।'

ऐसा ही एक किस्सा मजाज़ का जोश मलीहाबादी (Majaz Ka Josh Malihabadi) के साथ है। दरअसल, कुछ शायर मजाज़ की शराब की लत (Majaz ki sharab ki lat) को लेकर फिक्रमंद रहते थे। एक बार जब जोश मलीहाबादी ने उन्हें सामने घड़ी रखकर पीने की सलाह दी तो जवाब मिला, 'आप घड़ी रख के पीते हैं, मैं घड़ा रख के पीता हूं।' इस पर उनका एक मशहूर शे'र याद आता है।

"उस मेहफिले कैफो मस्ती में, उस अंजुमने इरफानी में

सब जाम बक़फ बैठे ही रहे, हम पी भी गये छलका भी गये"

मजाज़ को दिल्ली (Majaz Ka Delhi Dard) से बहुत दर्द मिला। यह कहना जायज़ है कि क्योंकि उन्हें शराब की लत यहीं से लगी। यहीं पर उन्हें उससे मोहब्बत हुई, जिसकी याद में वह ता'उम्र रहे। ज़ोहरा से उनकी मोहब्बत को मुक़ाम न मिला, जिसकी वह चाहत रखते थे।

अलीगढ़ से पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1935 में मजाज़ दिल्ली पहुंचे थे। यहां पर वो 'ऑल इंडिया रेडियो' में असिस्टेंट एडिटर होकर आए थे। मगर, इस शहर ने नाकाम इश्क का दर्द दे दिया और इस इश्क़ ने उन्हें बर्बाद करके ही दम लिया। यहां उन्हें शराब की ऐसी लत लगी कि लोग कहने लगे- 'मजाज़ शराब को नहीं, शराब मजाज़ को पी रही है।' दिल्ली से विदा लेते हुए उन्होंने कहा..

"रूख्सत ए दिल्ली! तेरी महफिल से अब जाता हूं मैं

नौहागर जाता हूं मैं नाला-ब-लब जाता हूं मैं"

मजाज़ का इंतकाल (Majaz Lakhnavi Death) 44 वर्ष की उम्र में 5 दिसंबर, 1955 को हुआ था। अब तक वह शराब छोड़ चुके थे। लेकिन इस शाम उनके कुछ दोस्त उन्हें एक जाम पकड़ाकर नशे की हालत में लखनऊ के एक शराबखाने की छत पर छोड़कर चले आए। सुबह हुई और अस्पताल पहुंचने तक वे इस दुनिया से जा चुके थे। मजाज़ एक जिंदादिल और तरक्कीपसंद शायर थे। इस पर उनकी एक नज़्म याद आती है।

मजाज़ लखनवी की नज्म

"ये रूपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल

जैसे सूफी का तसव्वुर, जैसे आशिक़ का ख़याल

आह लेकिन कौन समझे, कौन जाने दिल का हाल

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं

रास्ते में रुक के दम लूं, ये मेरी आदत नहीं

लौट कर वापस चला जाऊं मेरी फ़ितरत नहीं

और कोई हमनवा मिल जाए ये क़िस्मत नहीं

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं।"

मजाज़ लखनवी के कुछ उम्दा शे'र:-

इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है

हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए

हुस्न को शर्मसार करना ही

इश्क़ का इंतिक़ाम होता है

हाए वो वक़्त कि जब बे-पिए मद-होशी थी

हाए ये वक़्त कि अब पी के भी मख़्मूर नहीं

तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया

बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं


डुबो दी थी जहाँ तूफ़ाँ ने कश्ती

वहाँ सब थे ख़ुदा क्या ना-ख़ुदा क्या

कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं

ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं

कब किया था इस दिल पर हुस्न ने करम इतना

मेहरबाँ और इस दर्जा कब था आसमाँ अपना

छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर

अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है



Vidushi Mishra

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