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Smart City Mission: सरकार और जनता साथ मिलकर ही बन सकते हैं 'स्मार्ट'
ऐसे में स्मार्ट सिटी मिशन के बहाने कम से कम बेसिक जरूरतें तो पूरी होने की आस है।
Smart City Mission: देश के शहरों में स्मार्ट सिटी मिशन (Smart City Mission) चलाया गया है। उद्देश्य है जनता का जीवन स्तर सुधारना और जिन्दगी आसान बनाना। इसके लिए कर्र मोर्चों पर काम किये जाने की जरूरत है। पानी, बिजली, कनेक्टिविटी, ट्रांसपोर्ट, साफ़-सफाई, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा वगैरह तो हर शहर की बेसिक जरूरत है। टेक्नोलॉजी के डेवलपमेंट के साथ तमाम अन्य सुविधाएँ भी इसमें जुड़ने लगी हैं। लेकिन अभी भारत के शहर इनसे वंचित हैं।
ऐसे में स्मार्ट सिटी मिशन के बहाने कम से कम बेसिक जरूरतें तो पूरी होने की आस है। जब बेसिक व्यवस्था पूरी हो जायेगी तभी उसके बाद दुनिया के बड़े शहरों से टक्कर लेने वाली व्यवस्था कायम की जा सकती है। भारत में जिस तेजी से शहरीकरण हो रहा है उसको देखते हुए बहुत तेजी से सुविधाएँ डेवलप करने की जरूरत है, नहीं तो शहर किसी बड़े कस्बे या विशाल स्लम में बदलते देर नहीं लगेगी। यूरोप या अमेरिका को छोड़ दें तो एशिया में ही तमाम शहरों की बराबरी पर पहुँचने में लंबा सफ़र तय करना है।
स्वच्छ पर्यावरण
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मुख्यतः पानी, धूप, वातावरण, खनिज, भूमि, वनस्पति और पशु पक्षी शामिल हैं। लेकिन स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रदूषण से मुक्ति जरूरी है। शहरों को स्मार्ट बनाने के क्रम में प्रदूषण से मुक्ति के लिए प्लास्टिक पर बैन, भूजल संरक्षण, कचरा प्रबंधन जरूरी है। कहने को तमाम शहरों में प्लास्टिक बैन है । लेकिन बहुत कम जगहें ऐसी हैं, जहाँ वास्तव में प्लास्टिक बैन लागू है।
स्मार्ट शहर बनने के लिए प्लास्टिक पर पूर्ण बैन यानी प्लास्टिक निर्माण, बिक्री और खरीद पर पूरी रोक होनी चाहिए। ऐसा नहीं चल सकता है कि प्लास्टिक के इस्तेमाल पर बैन हो ।लेकिन उसके और निर्माण और बिक्री पर बैन नहीं है। इसमें सिक्किम का उदहारण लिया जाना चाहिए जहाँ प्लास्टिक बिकती ही नहीं है। अब तो बोतलबंद पानी पर भी बैन है। एक और मसला है रिहाइशी और व्यावसायिक इलाकों का।
अब तो शहरों में दोनों में कोई फर्क ही नहीं रह गया है, सिवाय नई टाउनशिप के। शहरों में बाकी जगह दुकान और मकान बुरी तरफ घुल मिल गए हैं। ये कहीं से भी उचित नहीं है। ऐसे में रिहाइशी इलाकों का स्वरुप बुरी तरह बिगड़ चुका है। एक समस्या पार्किंग की है। जब दुकानें, आफिस, बाजार बनाने की इजाजत दी जा रही है तो पार्किंग की व्यवस्था क्यों नहीं की जाती? तरह तरह के कमर्शियल काम्प्लेक्स बनते चले जा रहे हैं । लेकिन पर्याप्त पार्किंग कहीं नहीं होती।
जल संरक्षण
पानी की किल्लत भी हर जगह की समस्या है। पहले भरपूर पानी मिले उसके बाद ही साफ़ पानी का नंबर आता है। दुर्भाग्य से पानी का कुप्रबंधन सर्वव्यापी है । चाहे वो बंगलुरु हो या इंदौर या लखनऊ। पानी का कुप्रबंधन से मतलब है पानी की बर्बादी। जल संचयन और जल संरक्षण का क्रियान्वयन नहीं है, जो जल बर्बादी का बहुत बड़ा कारण है।
जल संचयन को सख्ती से और सबके लिए बराबरी से लागू करना होगा। लोगों को भी पानी का बुद्धिमानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अगर पानी का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हमें थोड़े से पानी के लिए भी तरसना पड़ेगा। शहरों में साफ़ पानी की किल्लत बढ़ती ही जा रही है। जल संरक्षण के लिए भूगर्भ जलदोहन को कंट्रोल करना होगा, जल संचयन के उपायों को सख्ती से लागू करना होगा।
शहरी ट्रांसपोर्ट
स्मार्ट शहर के लिए सिर्फ मेट्रो से काम नहीं चलने वाला है । इसके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट के सभी साधनों को मजबूत करना होगा ताकि लोगों को अपनी गाड़ी निकालनी ही न पड़े। स्मार्ट सिटी योजना के तहत सिटी बस सेवाएँ शुरू की गयी हैं । लेकिन ये भरोसेमंद नहीं हैं। सड़कों पर बस, ऑटो - टेम्पो - ई रिक्शा आदि सब कुछ चल रहा है। निजी वाहनों की रेलमपेल भी है। ऐसे में स्मार्ट शहर कैसे बन सकता है। सभी चीजों को साथ लेकर काम नहीं बन सकता है। लखनऊ का ही उदहारण लें तो जिस रूट पर मेट्रो चलती है, उसी रूट पर ई रिक्शा से लेकर बस तक चलती है। यानी व्यवस्था वही की वही कायम है। शहरों में ट्रैफिक सिग्नल हैं । लेकिन आधे से ज्यादा काम नहीं करते या उनका एन्फोर्समेंट नहीं है। भीड़ वाले इलाकों में निजी वाहनों के प्रवेश पर न प्रतिबन्ध है और न कोई भारी शुल्क है।
पौधरोपण
शहरों में स्वच्छ पर्यावरण के लिए हरियाली जरूरी है। इसके लिए जितना संभव हो सके उतने पेड़ लगाएँ। तभी हर दिन जो पेड़ कट रहे हैं, उनकी भरपाई हो सकेगी। पेशेवर खेती में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए कोशिश करें कि घर पर ही सब्जियां उगायें। पर्यावरण संरक्षण, लोगों के स्वास्थ्य और उत्पादकों की भलाई के लिए जैविक खेती को संरक्षण देना जरूरी है। सिक्किम ने जैविक खेती को बढ़ावा देकर न सिर्फ नाम कमाया है । बल्कि उत्पादकों की आमदनी बढ़ाई है,। मिट्टी को बचाया है । पर्यावरण का संरक्षण किया है। सरकार को रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी देनी पड़ती है। जैविक खेती में ये सब्सिडी बचेगी, केमिकल रहित फसल होने से मिट्टी की रक्षा होगी। सबसे बड़ी बात ये कि लोगों को केमिकल फ्री उत्पाद मिलेंगे।
सीवर व्यवस्था
शहरों में दसियों साल से भूमिगत पाइपलाइन डाली जा रही हैं ताकि बरसात का पानी और नाले-नालियों का पानी सुगमता से निकल जाए। यह एक बेसिक सी बात है । लेकिन इसके बावजूद शहरों में ज़रा सी बारिश के बाद जल भराव हो जाता है। इसका मतलब है कि ड्रेनेज व्यवस्था में खराबी बनी हुई है। इस तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। शहरों में बहुत से इलाके ऐसे होते हैं, जहाँ ड्रेनेज सिस्टम बना ही नहीं है। इस गड़बड़ी को दूर करना होगा।
लगातार और तीव्रता से काम करने की जरूरत
टेक्नोलॉजी का डेवलपमेंट जिस रफ़्तार से हो रहा है , उससे बराबरी बनाये रखने के लिए बहुत तेजी से और लगातार कम किये जाने की जरूरत है , नहीं तो एक बार पिछड़ गए तो पिछड़ते ही जायेंगे। विश्व के तमाम देशों में जो शहरी सुविधाएँ और व्यवस्थाएं हैं । उनको पाने में ही अभी कई बरस लग जायेंगे। तब तक वो शहर और आगे निकल चुके होंगे।टेक्नोलॉजी का डेवलपमेंट जिस रफ़्तार से हो रहा है उससे बराबरी बनाये रखने के लिए बहुत तेजी से और लगातार काम किये जाने की जरूरत है , नहीं तो एक बार पिछड़ गए तो पिछड़ते ही जायेंगे।