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Statue of Equality: समानता और सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं संत रामानुजाचार्य
हैदराबाद (Hyderabad) में 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' या 'समानता की मूर्ति 'अपने आप में एक अनोखी चीज है। ये मूर्ति समानता और सामाजिक न्याय की प्रतीक है जो 11वीं सदी के महान संत रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है।
Statue of Equality : हैदराबाद (Hyderabad) में 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' (Statue of Equality) या 'समानता की मूर्ति 'अपने आप में एक अनोखी चीज है। ये मूर्ति समानता और सामाजिक न्याय की प्रतीक है जो 11वीं सदी के महान संत रामानुजाचार्य (sant ramanujacharya) की याद में बनाई गई है। कहा जाता है, कि गहन भक्ति के तहत संत रामानुजाचार्य को मां सरस्वती (Maa Saraswati) के दर्शन प्राप्त हुए। आज सरस्वती पूजा के दिन उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया है।
साल 1017 में तमिलनाडु (Tamil Nadu) के श्रीपेरंबदूर (Sriperumbudur) में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक (Vedic philosopher) और समाज सुधारक (social reformer) रहे हैं। जाति प्रथा को खत्म करने तथा समाज को एक करने के लिए बड़ा अभियान चलाया था। उन्होंने समानता और सामाजिक न्याय की वकालत करते हुए पूरे भारत की यात्रा की थी और भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया। उन्होंने अपने उपदेशों से अन्य भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित किया। उन्हें अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए प्रेरणा माना जाता है। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परंपरा में ही रामानन्द हुए, जिनके शिष्य कबीर, रैदास और सूरदास थे। रामानुज ने वेदान्त दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट अद्वैत वेदान्त लिखा था।
संत यमुनाचार्य के शिष्य
रामानुजाचार्य, संत यमुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज से तीन विशेष काम करने का संकल्प कराया गया था- ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की टीका लिखना। इसके बाद रामानुज ने गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम् के यतिराज नामक संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली। मैसूर के श्रीरंगम् से चलकर रामानुज ने शालिग्राम क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उसके बाद तो उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए पूरे भारतवर्ष का ही भ्रमण किया। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, किन्तु ब्रह्मसूत्र के भाष्य पर लिखे उनके दो मूल ग्रन्थ सर्वाधिक लोकप्रिय हुए- श्रीभाष्यम् और वेदान्त संग्रहम्।
रामानुजाचार्य का दर्शन
रामानुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के संबंध में तीन स्तर माने गये हैं- ब्रह्म अर्थात ईश्वर, चित् अर्थात् आत्म तत्व और अचित् अर्थात प्रकृति तत्व। वस्तुतः ये चित् अर्थात आत्म तत्त्व तथा अचित् अर्थात प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म के ही दो स्वरूप हैं और ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं। वस्तुत: यही रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धांत है। रामानुज के अनुसार भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ या कीर्तन-भजन नहीं बल्कि ध्यान करना या ईश्वर की प्रार्थना करना है।