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कल्याण का सटीक अनुमान: कहते थे - 'इसे टिकट मिलना भी निश्चित है और इसका हारना भी सुनिश्चित है'

चुनाव को लेकर प्रत्याशियों को टिकट मिलने और उनकी हार-जीत को लेकर कल्याण सिंह सटीक अनुमान लगाते थे। चुनाव परिणाम आने पर उनकी भविष्यवाणियां सही भी साबित होती थीं।

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Report amanPublished By Deepak Kumar
Published on: 10 Oct 2021 4:33 AM GMT
कल्याण का सटीक अनुमान: कहते थे - इसे टिकट मिलना भी निश्चित है और इसका हारना भी सुनिश्चित है
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Lucknow: उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) होने हैं। इसे लेकर पार्टियों की सरगर्मियां तेज हो गई हैं । एक तरफ जहां विभिन्न पार्टियां सत्ता के समीकरण से जुड़ी हर दांव-पेंच में अभी से जुट गई हैं, वहीं टिकट पाने वालों की भी धड़कनें तेज हो रही हैं। टिकट की जुगत में अभी से प्रत्याशी पार्टियों के दफ्तर और शीर्ष नेताओं के घरों के चक्कर काटने शुरू कर चुके हैं।

जब सियासी बातें होती हैं। तब सरकार बनने और गिराने की बातें होती हैं, टिकट मिलने और कटने के किस्से होते हैं। ऐसे ही कुछ किस्से हम पाठकों के लिए सियासी गलियारों से ला रहे हैं। तो आज बातें सूबे के पूर्व सीएम कल्याण सिंह (Former Cm Kalyan Singh) की। प्रत्याशियों को टिकट मिलने और उनकी हार-जीत को लेकर कल्याण सिंह सटीक अनुमान लगाते थे। चुनाव परिणाम आने उनकी भविष्यवाणियां सही भी साबित होती थीं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दिग्गज नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का हाल ही में निधन हो गया था। कल्याण सिंह बीजेपी के उन गिने-चुने नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने पार्टी की अखिल भारतीय छवि बनाने में अहम भूमिका अदा की। कल्याण सिंह स्वभाव से बेहद मिलनसार, लोकप्रिय और सख्त प्रशासक थे। उन्हें जमीन से जुड़ा नेता कहा जाता था। इसी वजह से कल्याण सिंह यूपी की सियासत को बखूबी समझते थे।


हर सीट का रखते थे ब्यौरा

कल्याण सिंह (Former Cm Kalyan Singh) पूरे प्रदेश में घूमते और जनसभाएं करते रहते थे। उन्हें राज्य की एक-एक सीट के बारे में सब पता होता था। वह इस बात तक की भी भविष्यवाणी कर देते थे कि किस सीट से बीजेपी का कौन सा प्रत्याशी जीतेगा। कल्याण सिंह के बारे में बात मशहूर थी, वह उम्मीदवार के बारे में कहते थे,"इसे टिकट मिलना भी निश्चित है। इसका हारना भी सुनिश्चित है।" किसी उम्मीदवार और सीट के बारे में इतनी पक्की बात अगर कल्याण सिंह कह देते तो इसे हल्के में लेना भारी पड़ जाता था। कल्याण सिंह के पास उस विधानसभा सीट का पूरा ब्योरा होता था। वह पहले से ही जान रहे होते थे कि किसी सीट पर पार्टी का कौन सा प्रत्याशी जीत सकता है या नहीं।

'कंटेम्प्ट ऑफ गॉड' होगा

कल्याण सिंह (Former Cm Kalyan Singh) बेबाकी से अपनी बात रखते थे। जो बात उन्हें सही लगती थी, वह उसे स्पष्ट बोल देते थे। ऐसे ही एक वाकये का जिक्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करते हुए कहते हैं, "मुझे याद है कल्याण सिंह जी ने राम मंदिर मुद्दे पर एक टिप्पणी की थी। तब कहा गया था कि यह 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट' हो सकता है। इस पर कल्याण सिंह का जवाब था । अयोध्या करोड़ों लोगों की आस्था का तीर्थ स्थल है। मैं भी उनमें से एक हूं। अगर श्री राम मंदिर नहीं बना तो 'कंटेम्प्ट ऑफ गॉड' होगा।" शिवराज सिंह चौहान यूपी के पूर्व सीएम को याद करते हुए कहते हैं कल्याण सिंह भारतीय संस्कृति के सच्चे पूजक और रक्षक थे।


चुनाव हारकर भी समर्थकों में लड्डू बंटवाए

एक अन्य किस्से में कल्याण सिंह के बेटे और सांसद राजवीर सिंह बताते हैं, "चुनाव में हारने के बाद अमूमन लोगों का चेहरा उतर जाता है। लेकिन कल्याण सिंह चुनाव हारकर भी मस्त थे। ये बात 1980 की है, जब कल्याण सिंह दूसरी बार कांग्रेस प्रत्याशी से चुनाव हार गए थे। लेकिन ये उनकी जिंदादिली ही थी कि उन्होंने हार को भी सेलिब्रेट किया। हार के बाद घर लौटने पर उन्होंने हलवाई के यहां से लड्डू और बताशे मंगवाए, जिसे समर्थकों में बांट दिया।" कल्याण सिंह कहते थे, "हर हार कुछ सबक सिखाती है। उन्होंने कुछ सीखा है। इसके बाद 1985 से उनके जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह सालों-साल चलता रहा।"

कल्याण सिंह ने अलीगढ के अतरौली से चुनाव लड़कर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। इस सफर में कई पड़ाव आए। वह गिरे, फिर उठे और चले। लेकिन कभी हताश नहीं हुए। जीवन के हर पड़ाव को हंसते हुए पार किया।

आज बात होगी 188 विधान सभा सुल्तानपुर की, जिस सीट पर समाजवादी पार्टी से लगातार दो बार विधायक चुने गए 2007 और 2012 में अनूप संडा ।बहरहाल 2017 की भाजपाई बयार में ये चुनाव हार गए थे।जिनका पूरा परिवार राजनीतिक रहा है खुद उनके पिता भी पुराने समाजवादी रहे है और जनपद को जानी मानी शख्सियत रहे हैं जिनको लोग संडा बाबू कहते थे हालाकि इनका पूरा नाम त्रिभुवन नाथ संडा था। और एक अहम बात ये भी की खानदान जानामाना जिले का व्यवसायी रहा है।


न्यूजट्रैक से पूर्व विधायक ने कई खास मुद्दों और व्यक्तिगत लाइफ शेयर की।

न्यूजट्रैक ने इनके राजनीतिक सफर की शुरुआत की बात जाननी चाही तो इन्होंने बताया कि इनकी पृष्टभूमि ही राजनीतिक रही है इसलिए शुरुआती दौर से ही इनका रुझान समाजसेवा की तरफ था जिसका सही माध्यम राजनीति ही थी सो इन्होंने भी राजनीति को ही अपना करियर बना लिया।

1984 के सिख दंगों के बाद हुए सक्रिय

बातों बातों में पूर्व विधायक ने बताया कि जब 1984 में इंदिरा गांधी (Former PM Indira Gandhi) की हत्या के बाद सिख दंगा हुआ जिससे ये काफी मर्माहत हुए और इन्होंने समाज को जोड़ने के लिए सदभावना मंच का गठन किया था। राजनीतिक सफर की शुरुआत पूर्व विधायक अनुप संडा ने लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी से की थी जिसकी स्थापना रघु ठाकुर ने की थी।

इनका पहला चुनाव 2006 में नगर पालिका का था इन्होंने राजनीतिक पारी की शुरुआत के तौर पर अध्यक्ष नगर पालिका का चुनाव लड़ा था हालांकि ये चुनाव हार गए लेकिन समाज मे आम आदमी का नेता के तौर पर छवि बनाने में कामयाब रहे। कौन है राजनीतिक गुरु इस सवाल का जवाब में अनूप संडा ने बिल्कुल साफ तौर पर कहा कि उनके राजनीतिक गुरु रघु ठाकुर हैं जिन्होंने उन्हें राजनैतिक पाठ पढ़ाया है। अनूप संडा की लाइफ का खूबसूरत लम्हा आज भी उनके ज़ेहन में ताजा है

बात उन दिनों की है जब वो अपना पहला। चुनाव नगर पालिका के हारे थे और अपनी गाड़ी से घर की तरफ जा रहे थे सड़क पर जाम लगा था उनकी गाड़ी जाम में फसी थी तभी गाड़ी के बगल एक मोटरसाइकिल रुकती है जिसपर एक पुरुष और एक पर्दानशीं महिला बैठी थी उस महिला ने इनकी ओर देखकर कहा कि आप जल्द विधायक बनेंगे और हुआ भी वही पहली बार सपा के टिकट से 2007का चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीत विधान सभा में प्रवेश किया ये उनकी ज़िंदगी का हसीन लम्हा रहा है।

सेकुलर छवि के नेता माने जाते हैं अनूप संडा

पूर्व विधायक की छवि बिल्कुल सेकुलर की रही है अनछुए पहलू भी इन्होंने शेअर किये जिसमें इन्होंने अपनी पसंद और नापसन्दीदा चीज़े भी बताई जैसे इन्हें वेज और नॉन वेज दोनों खाना इन्हें पसंद है लेकिन अरहर की दाल घी के साथ कुछ ज़्यादा ही पसंद है।

पहनावा बिल्कुल सादा है राजनिति की शुरुआत से ही इन्हें खादी पसन्द है और अधिकतर कुर्ता पायज़मा ही पहनते हैं। पढ़ने में विशेष रुचि है साहित्य और धामिक पुस्तको के अलावा इन्हे जीवनी पढ़ना पसन्द है खाली समय का उपयोग ये किताबो पर ही करते हैं।

एक सवाल की उनके जीवन का क्या है दुःखद पहलू

इस पर अनूप संडा ने बड़ा मार्मिक जवाब दिया उन्होंने कहा जब पहली बार मैं विधायक बना तो उनकी माता जी से किसीने कहा कि आपका बेटा विधायक बन गया कैसा लग रहा इसपर उनकी माता जी ने जो जवाब दिया वो उन्हें आज भी नही भुला है माताजी नेकहा की बेटा विधायक तो बन गया लेकिन मैंने बेटा खो दिया। पूर्वविधायक अनूप संडा के दो बेटियां और एक बेटा है जिसको उन्होंने उच्च शिक्षा दिलाई है और उन्होंने कहा कि अगर बच्चों की इक्षा होगी राजनिति में आने की तो वो सपोर्ट करेंगे।

वर्तमान राजनीति में क्या बदलाव चाहते हैं ये था हमारा सवाल जिसका जवाब पूर्वविधायक ने कुछ इस तरह से दिया उन्होंने कहा कि आज नेता ज़मीन से नही जुड़ पा रहे हैं ये जुड़ाव होना चाहिए।सोशल मीडिया में नेगेटिविटी ज़्यादा हो गई है जो कि राजनैतिक छवि को प्रभावित कर रही है इसको बदलना चाहिए सकारात्मक सोच होनी चाहिए। और ये भी की आज हर व्यक्ति खास तौर से नेता अपनी लकीर बड़ी न करके दुसरों की लक़ीर को छोटा करने में लगे हैं।

पूर्व विधायक को भी रहा है पत्रकारिता का शौक हालाकि उनका ये शौक पूरा नही हो सका और आज वो राजनीति में चौके छक्के मार रहे हैं। अपने कार्यकाल में कुछ चीज़ें न करने का मलाल भी उनको है जैसे कि उन्होंने पटरी गुमटी कर रहे लोगों को स्थापित करने की बात कही थी वो नही उसको पूरा कर पाए। यहां ये बताना आवश्यक है कि प्रारम्भिक दौर में अनूप संडा इन्ही पटरी गुमटी वालों की।लड़ाई लड़ कर सुर्खियों में आये थे। फिलहाल अब 2020 सामने है औरपूर्व विधायक फिर से एक बार विधायक बनने की तैयारी में जुट गए हैं।

Deepak Kumar

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