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UP Election 2022: राजनीति के क्षेत्र में खूब रहा जोड़ियों का फैशन
इस बार के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी की चर्चा है। इस जोडी ने अब तक कई रैलियां की है।
Lucknow News: इस बार के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और जयंत चौधरी (Jayant chaudhary) की जोड़ी की चर्चा है। इस जोडी ने अब तक कई रैलियां की है। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और चौ अजित सिंह (Chaudhary Ajit Singh) के पुत्रों वाली यह जोडी सत्ताधारी भाजपा (BJP) के नेताओं को कडी टक्कर दे रही है लेकिन जहां तक राजनीतिक जोडियों की बात है यूपी में पहले भी कई राजनीतिक जोडियां अपना राजनीतिक कमाल दिखाती रही हैं।
मुलायम सिंह-बेनी प्रसाद वर्मा
सियासत में बनती बिगडती जोडियों में एक नाम मुलायम और बेनी का भी आता है। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की स्थापना में शामिल रहे बेनी प्रसाद वर्मा मुलायम (Beni Prasad Verma Mulayam) के बेहद करीब हुआ करते थें दोनो की जोडी तीन दशक तक हिट रही। लेकिन 2007 में उन्होेने मुलायम सिंह का साथ छोडकर बेनी प्रसाद वर्मा ने अपनी अलग पार्टी समाजवादी क्रांतिदल का गठन कर लिया। बाद में वह कांग्रेस मेंशामिल होकर केेन्द्रीय मंत्री भी बने। अभी 2016 में बेनी की वापसी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में हुई थी। लेकिन 2017 के चुनाव में उनके पुत्र का टिकट जब पार्टी ने काट दिया तो बेनी फिर नाराज होकर पार्टी से अलग हो गए।
मुलायम सिंह-अमर सिंह
कभी अमर सिंह (Amar Singh) और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की जोड़ी ने भी राजनीति में खूब कमाल दिखाया। लेकिन आजम खां से विवाद के चलते मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) और अमर सिंह (Amar Singh) की राहे 2010 में जुदा हो गयी। बाद में अमर सिंह (Amar Singh) की फिर सपा में वापसी हुई लेकिन तब तक वक्त काफी बीत चुका था और सपा की राजनीति में भी बदलाव आ चुका था। लेकिन 2017 को विधानसभा चुनाव आते आते मामला बिगड गया।
एनडी तिवारी अर्जुन सिंह
कांग्रेस (Congress) के अंदरूनी लड़ाई के दौर में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं एनडी तिवारी और अर्जुन सिंह ने अलग होकर एक नई कांग्रेस का गठन किया। इस दौरान इन नेताओं ने पार्टी के कुछ और नेताओं को लेकर चुनाव कांग्रेस के समानान्तर राजनीति भी शुरू की। तब अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी की जोडी खूब हिट हो चुकी थी लेकिन जब पार्टी जब चुनाव मैदान में उतरी तो अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद धीरे धीरे पार्टी का अस्तित्व भी खत्म हो गया।
कल्याण सिंह-कुसुम राय
कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के नेतृत्व में 1997 में जब भाजपा (BJP) की दूसरी बार सरकार बनी तो लखनऊ की स्थानीय महिला नेत्री कुसुम राय उनके सहयोग के लिए आगे आई। कुछ वर्षाे बाद जब कल्याण सिंह (Kalyan Singh) भाजपा (BJP) से अलग हुए तो कुसुम राय ने भी पार्टी छोड़ दी। 2003 में मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) के नेतृत्व में यूपी में सरकार (UP Government) बनी तो कल्याण के राजनीतिक प्रभाव से कुसुम राय राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी। इसके बाद जब कल्याण सिंह (Kalyan Singh) दोबारा भाजपा (BJP) में आए तो कुसुम राय भी उनके साथ वापस आ गयी। चुनाव के बाद कल्याण सिंह (Kalyan Singh) अपने पुत्र राजबीर को राज्यसभा भेजना चाहते थें लेकिन भाजपा हाईकमान ने कुसुमराय को भेज दिया। कल्याण इससे नाराज हो गये और कल्याण-कुसुम की राजनीतिक जोडी की राहे जुदा हो गयी।
चौ अजित सिंह-अनुराधा चौधरी
जयन्त चौधरी (Jayant Choudhary) के पिता चौ अजित सिंह (Chaudhary Ajit Singh) और अनुराधा चौधरी की जोड़ी बेहद हिट रही। राष्ट्रीय लोकदल (Rashtriya Lok Dal) में अनुराधा चौधरी (Anuradha Choudhary) की इजाजत के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता था। लेकिन 2009 का लोकसभा चुनाव (2009 Lok Sabha Elections) हुआ तो चौ अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी के राजनीति में आने के बाद पार्टी के अंदर अनुराधा चौधरी को लेकर विवाद भीशुरू हो गया। इस बीच चुनाव हुआ तो जयंत चौधरी तो चुनाव जीत गए पर अनुराधा हार गयी। बस, यही से अनुराधा का कद घटना शुरू हो गया और जयंत का कद बढता गया।
मायावती-बाबू सिंह कुशवाहा
यूपी में जब 2007 में मायावती की सरकार (government of mayawati) बनी तो इस सरकार में सबसे ताकतवर कोई था तो वह थें बाबू सिंह कुशवाहा। यदि मायावती से मिलना है तो पहले बाबू सिंह कुशवाहा से मिलना होता था। परन्तु एचआरएम घोटाले में बाबू सिंह कुशवाहा के कारनामों से मायावती बेहद नाराज हो गयी और उन्होंने अचानक 2011 में अपने आवास में उनकी इंट्री बैन कर दी साथ ही मंत्रिमंडल से भी बाहर कर दिया।
मायावती-पीएल पुनिया
मायावती सरकार (government of mayawati) में सचिव रहे पीएल पुनिया उनके सबसे करीबी हुआ करते थें। पुनिया की राजनीतिक ताकत यहां तक थी कि लोग कहते थें कि ''आगे -आगे पुनिया, पीछे सारी दुनिया''। लेकिन ताज कोरीडोर मामला उछलने के बाद मायावती और पुनिया में दूरियां बढ गयी। बाद में पुनिया कांग्रेस में षाामिल हो गए और बाराबंकी से सांसद भी बने।
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