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Up Election 2022: हे भगवान! अपराधियों और माफियाओं से भरे हुए हैं संविधान के मंदिर

Up Election 2022: यूपी इलेक्शन की तैयारियों को लेकर सभी दलों के बड़े नेता इस समय यूपी में मौजूद हैं...

Sandeep Mishra
Report Sandeep MishraPublished By Ragini Sinha
Published on: 12 Sep 2021 1:46 PM GMT (Updated on: 12 Sep 2021 1:47 PM GMT)
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आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसदो- विधायकों से भरे पड़े है सदन

Up Election 2022: इस समय सभी दल उत्तर प्रदेश में होने जा रहे 2022 के विधान सभा की तैयारियों में लग चुके है। इस चुनाव की तैयारियों को लेकर सभी दलों के बड़े नेता इस समय यूपी में मौजूद हैं। हर बार की तरह इस बार भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपराधीकरण का मुद्दा भी चर्चा का विषय है। कुछ दलों के नेताओं ने तो सूबे में इन बाहुबली माफिया डॉन के परिजनों को विधिवत अपने अपने दलों में शामिल करने का सिलसिला भी शुरू कर दिया है।

देश व उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिस तेजी से 80 के दशक के बाद से अपराधी छवि के लोगों का पदार्पण हुआ है, उस के बाद से राजनीति से अधिकांश भले लोगों ने किनारा ही कर लिया है।तेजी से बढ़े राजनीति के इस अपराधीकरण को लेकर न्यायालयों ने समय समय पर गहरी चिंता भी व्यक्त की। देश व प्रदेश की राजनीति में अपराधियों के समावेश को लेकर कई कानून भी बनाये हैं, लेकिन ये कानून भी अब तक राजनीति के अपराधीकरण पर कोई खास विराम नहीं लगा सके हैं।


आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हमारे सांसद-विधायक

इन आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2004 में देश की लोकसभा में जीत कर पहुंचने वाले 24%सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे थे। इसके बाद यह आकंड़ा घटा नहीं बल्कि बढ़ता ही गया। वर्ष 2009 में ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या 30% हो गई। वर्ष 2014 में लोकसभा में पहुंचने वाले ऐसे सांसदों की संख्या भी 30% रही। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सदन में 43% आपराधिक छवि वाले संसद पहुंचे हैं। हमारे उत्तर प्रदेश की कुल 403 सीटों वाली विधान सभा में 143 सीटों पर ऐसे विधायक जमे बैठे हैं,जो आपराधिक मुकद्दमों के बादशाह हैं। इनमें से 101 विधायकगण ऐसे हैं, जिन्हें हम आपराधिक मुकद्दमों का सम्राट भी कह सकते हैं। इन पर तो सूबे के विभिन्न थानों में काफी गंभीर धाराओं के मामले दर्ज हैं।

उन्नाव के विधायक कुलदीप सिंह उम्र कैद की सजायाफ्ता हैं, जो आजकल जेल से अपनी विधायकी चला रहे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की विधानसभा में भाजपा से जुड़े-114, सपा से जुड़े-14, बीएसपी से जुड़े-5 और कॉंग्रेस से जुड़े एक विधायक पर बेहद गम्भीर धराओं में मामले दर्ज हैं।

लखनऊ की इस पवित्र विधान सभा के मंदिर में बैठे रहे हमारे एक विधायक पर तो महिला से छेड़छाड़ के आरोप का मामला दर्ज है। 58विधायकों के खिलाफ भी कई गम्भीर मामलों के मुकद्दमे थानों में दर्ज हैं। आठ विधायकों पर हत्या के मामले दर्ज हैं। 32 विधायकों पर हत्या की कोशिश के मामले दर्ज हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि के बाहुबली नेताओं की सूची में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भइया, एमएलसी कमलेश पाठक, मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, सुशील सिंह, विजय मिश्र, अतीक अहमद, शेखर तिवारी का भी नाम शामिल है।

न्यायालय हमेशा रहीं राजनीति के अपराधीकरण पर चिंतित

विगत वर्ष 1993 में वोहरा समिति व 2002 में राष्ट्रीय आयोग की ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की थी कि गम्भीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की संख्या भारतीय राजनीति में लगातार बढ़ रही है। विगत 2002 में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि संसद, राज्य विधानभाओं या नगर निगम के लिये चुनाव लड़ने वाले हरेक प्रत्याशी को अपनी आपराधिक, वित्तीय व शैक्षिक पृष्ठभूमि की घोषणा करनी होगी।

वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश फिर किया। जिसमें न्यायालय ने कहा कि सांसद,विधायक को किसी भी आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने पर वह चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य होगा। वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने दिए अपने एक आदेश में कहा कि जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 की धारा 8(4)असंवैधानिक है, जो दोषी ठहराया गए सांसदों और विधायकों तब तक पद पर बने रहने की अनुमति देती है,जब तक ऐसी सजा के विरुद्ध की गई अपील का निपटारा नहीं हो जाता।

नोटा भी नहीं लगा सका राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश

विगत 2013 में भारतीय राजनीति में अपराधीकरण पर लगाम लगाने के लिये देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के मतदाता को मतदान में नोटा (none of the above-nota) का भी विकल्प उपलब्ध कराया। फिर वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को मंत्रिमंडल में शामिल न करें जिन पर गम्भीर अपराध के आरोप लगे हों। वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों को त्वरित निस्तारण हेतु विशेष अदालतों के गठन का आदेश दिया था।आज इन एमपी-एमएलए कोर्ट अपने अस्तित्व में हैं।

मतदाताओं व दलीय नेताओं को करना होगा आत्मचिंतन

न्यायालयों के हस्तक्षेप के बाद भी अब तक राजनीति का अपराधीकरण बढा ही है। नोटा को लेकर भी आम मतदाताओं में कोई जागरूकता देखने को नही मिली है। इन्ही मतदाताओं के मत की दम पर वे लोग देश की संसद व विधानभाओं में मौजूद हैं। जिन्हें जेल के सींखचों के पीछे होना चाहिए था। खास तौर पर देश व प्रदेशों में काबिज सरकारें व अन्य राजनीतिक दलों के लोगो को राजनीति में अपराधियों के समावेश पर अपने आत्मचिंतन को काफी बृहत करना होगा। साथ ही आम मतदाता को इस विषय पर जागरूक होने की जरूरत है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं से इस देश व प्रदेश की राजनीति का तनिक भी भला होने वाला नहीं।

Ragini Sinha

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